नई दिल्ली: तमिलनाडु की राजनीति में करुणानिधि का कद बहुत बड़ा था. इसका फायदा उठाते हुए उन्होंने अपने कई सगे-संबंधियों के लिए राजनीति के रास्ते खोले. अब करुणानिधि खुद तो नहीं हैं लेकिन उनकी बेटी कनिमोझी और बेटे एमके स्टालिन पर करुणानिधि पर उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है.


करुणानिधि का राजनीतिक विरासत कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह तमिलनाडु के 5 बार मुख्यमंत्री रहे हैं. अपने राजनैतिक गुरु डीएमके संस्थापक सी एन अन्नादुराई और वैचारिक आदर्श ‘पेरियार’ की कदमों पर करुणानिधि सालों से दक्ष‍िण भारत के दिग्गज नेता बने रहे. करुणानिधि जब पहली और दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं, तीसरी बार मुख्यमंत्री बने तो प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, चौथी बार मुख्यमंत्री बने तो प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे. इसी बात से यह आसानी से समझा जा सकता है कि करुणानिधि का राजनीतिक करियर कितना लंबा रहा. अब इस विरासत को और पार्टी की जिम्मेदारी एमके स्टालिन ने संभाल ली है. वहीं उनकी बहन कनिमोझी इस बार तूतीकोरिन लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं.


कनिमोझी तूतीकोरिन लोकसभा सीट से लड़ रही है चुनाव


तमिलनाडु के तूतीकोरिन लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही कानिमोझी का राजनीतिक सफर काफी लंबा नहीं है लेकिन प्रभावशाली जरूर है. 01 जनवरी 1968 को चेन्नई में जन्मी कनिमोझी, डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के पूर्व सीएम करुणानिधि और उनकी तीसरी पत्नी रजति अम्मल की बेटी हैं. वो राज्यसभा सांसद, कवयित्री और पत्रकार हैं. उनकी प्रारंभिक शिक्षा चर्च पार्क के प्रजेंटेशन कान्वेंट स्कूल से हुई, उसके बाद उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय के एथिराज महिला कॉलेज से अर्थशास्त्र में परास्नातक किया था. वह कविताएं भी लिखती है. उन्होंने तमिल भाषा में कई कविताएं लिखी हैं और बहुत सारी तमिल कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है.


व्यक्तिगत जीवन


कनिमोझी का जन्म चेन्नई में 1968 में हुआ था. वे कवियित्री भी हैं और पत्रकारिता में भी उन्हें अच्छा अनुभव रहा है. वे अंग्रेजी अखबार हिन्दू में भी काम कर चुकी हैं. 1989 में उन्होंने शादी की थी लेकिन उनका तालाक हो गया. 1997 में उन्होंने तमिल लेखक अरविंदन से शादी की.


राजनीतिक सफर


मई, 2007 में डीएमके ने कनिमोझी को राज्यसभा का सदस्य बनाया और 2013 में वह फिर से राज्यसभा सदस्य चुनी गईं. वह राज्यसभा में तमिलनाडु का एक तरह से चेहरा हैं और अक्सर राज्य के मसले उठाती रही हैं. वह हिंदू नेशनल प्रेस यूनियन के अध्यक्ष पद पर चुनी जाने वाली पहली महिला थीं. वह डीएमके की वीमेन विंग की सचिव हैं


एमके स्टालिन पर DMK का खोया करिश्मा लौटाने की जिम्मेदारी


इस चुनाव में एमके स्टालिन पर भी बड़ी जिम्मेदारी है. इस लोकसभा चुनाव में द्रमुक का खोया करिश्मा लौटाने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है. 2014 में द्रमुक को एक भी सीट नहीं मिली थी. स्टालिन छह बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि उन्होंने अभी तक कोई लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है. उनके राजनीतिक सफर की बात करें तो साल 1967 में उन्होंने पहली बार विधान सभा चुनाव में प्रचार किया. उस वक्त स्टालिन की उम्र 14 साल की थी. इमरजेंसी के दौरान मीसा एक्ट में वह जेल भी गए थे. तमिलनाडु की थाउजेंड लाइट्स चुनाव क्षेत्र से 1984 में वह पहली बैृार विधानसभा चुनाव लड़ा और हार गए, हालांकि 1989 से लेकर अब तक स्टालिन 4 बार यहां से जीतते रहे. 1996 में चेन्नई शहर के पहले ऐसे मेयर बने जो बिना किसी इलेक्शन के चुने गए. उनको डायरेक्ट अपॉइंट किया गया था. इसके बाद साल 2008 में उन्हें डीएमके का कोषाध्क्ष चुना गया. साल 2009 से 2011 तक वह तमिलनाडु के उप-मुख्यमंत्री रहे. साल 2011 में स्टालिन ने कोलाथुर विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीते. इसके बाद साल 2016 में भी इसी सीट से जीते थे.


साल 2013 को करूणानिधि ने ये एलान कर दिया कि उनकी मौत के बाद पार्टी के प्रमुख स्टालिन होंगे. करुणानिधि की मृत्यु के बाद करुणानिधि की राजनीतिक विरासत को लेकर लंबे समय तक चले संघर्ष में स्टालिन बड़े भाई एमके अलागिरी पर भारी पड़े. वे अलागिरी से ज्यादा पढ़े-लिखे होने के साथ ही कूटनीति में भी माहिर हैं. खुद करुणानिधि भी चाहते थे कि उनके बाद स्टालिन पार्टी संभालें. अगस्त 2018 में द्रमुक की कमान स्टालिन के हाथों में चली गई.