नई दिल्ली: राज्य की राजनीति हो या केंद्र की राजनीति एक नाम जो बड़े नेताओं में गिना जाता है वह शरद पवार है. चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे शरद पवार का नाम इस बार प्रधानमंत्री के तौर पर विपक्ष के लिए एक विकल्प भी है. हालांकि उनके पीएम बनने की संभावना एक बार पहले भी थी लेकिन तब पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने और उन्हें रक्षामंत्री के पद से संतोष करना पड़ा था.
दरअसल शरद पवार की छवि अलग-अलग राजनीतिक दलों को करीब लाने की रही है. उनका विपक्ष के सभी पार्टियों के साथ संबंध अच्छा है इसलिए इस बार भी सरकार बनाना हो या पीएम बनाना शरद पवार की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी. बीते दिनों में दिल्ली हो या पश्चिम बंगाल हो, विपक्षी दलों की रैली में शरद पवार ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से शरद पवार के अच्छे रिश्ते हैं.
शरद पवार की छवी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह राजनीति में नरेंद्र मोदी के लिए लंच होस्ट कर चुके हैं तो राहुल गांधी, ममता बनर्जी और मायावती के लिए डिनर भी. अगर किसी को बहुमत नहीं मिला, तो शरद पवार ही एक ऐसे नेता हैं जिनके संबंध सभी दलों से अच्छे ही रहे हैं और उनके नाम पर समझौता होना आसान है.
शरद पवार राजनीति में कई वर्षों से हैं और अब उनका परिवार आ गया है. दरअसल युवाओं को आगे लाने के लिए पवार ने पिछला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था. परंपरागत सीट बारामती पर उनकी बेटी सुप्रिया सुले सांसद हैं. वह इस बार भी इसी सीट से चुनावी मैदान में हैं. जबकि बेटा पार्थ पवार भी मावल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
शरद पवार का जन्म 12 दिसम्बर 1940 में महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था. उनके पिता गोविंदराव पवार बारामती के कृषक सहकारी संघ में काम करते थे और उनकी माता शारदाबाई पवार परिवार के काम की देख-रेख करती थीं. शरद पवार ने पुणे विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ब्रिहन महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ कॉमर्स से अपनी पढ़ाई पूरी की.
राजनीतिक सफर
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण को शरद पवार का राजनैतिक गुरु माना जाता है. साल 1967 में शरद पवार कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बारामती विधान सभा क्षेत्र से चुनकर पहली बार महाराष्ट्र विधान सभा पहुंचे. सन 1978 में पवार ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में एक गठबंधन सरकार बनाई. इस गठबंधन की वजह से वे पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए.
साल 1983 में पवार, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) के अध्यक्ष बने और अपने जीवन में पहली बार बारामती संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीता. उन्होंने साल 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की और राज्य की राजनीति में ध्यान केन्द्रित करने के लिए लोकसभा सीट से त्यागपत्र दे दिया. विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) को 288 में से 54 सीटें मिली और शरद पवार विपक्ष के नेता चुने गए.
1987 में शिवसेना के महाराष्ट्र में उभार और कांग्रेस कल्चर को महाराष्ट्र में सशक्त बनाने का कारण बताकर वह फिर कांग्रेस में लौट आए. जून 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण को केंद्रीय वित्त मंत्री बनाने का निर्णय लिया और शरद पवार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए. 04 मार्च 1990 को चुनाव के बाद वह फिर तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.
राजीव गांधी की हत्या होने के बाद शरद पवार ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा. 26 जून 1991 को वह नरसिंहाराव की सरकार में रक्षा मंत्री बने. 1998 में वह बारामती से लोकसभा का चुनाव जीते. 12वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दायित्व निभाया.
कांग्रेस से हुए अलग
जून 1999 में एक बार फिर पवार की राजनीति ने करवट लिया और वह इटली मूल की सोनिया गांधी का मुद्दा उठाते हुए पीए संगमा, तारिक अनवर के साथ कांग्रेस से अलग हो गए. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन कर लिया. 2004 में शरद पवार की पार्टी एनसीपी यूपीए में शामिल हुई. उन्हें कृषि मंत्री बनाई गई.2012 में उन्होंने 2014 का चुनाव न लड़ने का ऐलान किया ताकि युवा चेहरों को मौका मिल सके.