'19 के खिलाड़ी': लालू की राजनीतिक विरासत बचाने की जिम्मेदरी तेजस्वी के कंधो पर, क्या जीत पाएगा 'महागठबंधन'
साल 2019 में अगर बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर महागठबंधन जीतती है तो तेजस्वी यादव के राजनीतिक नेतृत्व पर बिहार की जनता का और भरोसा जागेगा. साथ ही विपक्ष के इस बड़े नेता को आने वाले समय में बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर भी देखा जाने लगेगा.
नई दिल्ली: चारा घोटाला मामले में सजा काट रहे लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद से ही बिहार की राजनीति में जो सबसे बड़ा सवाल था वह यह था कि क्या अब उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का भविष्य भी अंधेरे में है. इस सवाल का जवाब जल्द मिल गया जब पिता की अनुपस्थिति में छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने पार्टी की कमान संभाली और देखते-देखते बिहार के सबसे चर्चित नेताओं में एक बन गए. उन्होंने पिता के राजनीतिक विरासत को खूब संभाला और लोकसभा चुनाव 2019 से पहले केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में लग गए. बिहार में उन्होंने महागठबंधन बनाया और कांग्रेस समेत सभी अन्य राजनीतिक दलों को साथ लेकर चले.
बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं और इन 40 सीटों का बेहद अहम रोल है. साल 2014 में इन 40 सीटों में 31 सीटों पर एनडीए में शामिल राजनीतिक पार्टियों ने जीत दर्ज की थी. इस बार बिहार 40 सीटों में आरजेडी के पास 19 सीटें, कांग्रेस के पास नौ सटे, आरजेडी के पास ये 19 सीटें, आरएलएसपी- 5 सीटें, हम- 3 सीटें, वीआईपी- 3 सीटें और सीपीआई (एमएल) के पास आरा सीट है.
अगर इस बार तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार में महागठबंघन इस लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती है तो निश्चित तौर पर उनका कद और बढेगा. साथ ही अगले विधानसभा चुनाव में अगर उनकी पार्टी या महागठबंधन जीतती है तो उनके बिहार के मुख्यमंत्री की दांवेदारी पर भी किसी को कोई शक नहीं होगा. इस वक्त वह बिहार में विपक्ष के सबसे बड़े नेता हैं. राजनीति में आक्रमण की सुरक्षा का सबसे बड़ा हथियार है और तेजस्वी ने यह साबित भी किया है. उन्होंने राज्य में नीतीश सरकार और केंद्र की मोदी सरकार पर लगातार हमला बोला है. अपने तेवर से उन्होंने इस बात को सही साबित कर दिया कि लालू की विरासत को वह सही से संभाल रहे हैं
ऐसे में 2019 के बड़े खिलाड़ी साबित हो सकते हैं तेजस्वी यादव. आइए एक नजर डालते हैं उनके राजनीतिक करियर पर..
9 नवंबर 1989 को लालू यादव के परिवार में उनके छोटे बेटे के रुप में जन्म लेने वाले तेजस्वी यादव ने महज 29 साल में ही क्रिकेटर से लेकर राजनीति के पिच तक का सफर तय किया है. क्रिकेट की दुनिया में खास उपलब्धि नहीं मिलने के बाद तेजस्वी यादव का सफर राजनीति की तरफ बढ़ा और उन्होंने खुलकर साल 2010 में राजनीति करना शुरु कर दिया. अपने पिता के साथ रैली में शामिल होने वाले तेजस्वी यादव पूरी तरह राजनीति में अपनी पकड़ नहीं बना पा रहे थे फिर भी वह ट्विटर और सोशल मीडिया के जरिए राजनीति में एक्टिव रहते थे हालांकि उन्हें राजनीति में पहचान साल 2015 के विधानसभा चुनाव में मिली जब वह पार्टी के गढ़ माने जाने वाले वैशाली जिले के राघोपुर से पहली बार विधायक चुने गए और बिहार के डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठे. वहीं डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद डेढ़ साल तक उन्होंने अपना पद संभाला लेकिन उनके ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और घोटाले के मामले को लेकर जब विपक्ष ने निशाना साधना शुरू किया तो उनकी पार्टी सत्ता से बेदखल हो गई और तब से तेजस्वी यादव प्रखर नेता के रूप में नजर आ रहे हैं, वो खुलकर राज्य सरकार और सीएम नीतीश कुमार पर हमला बोलते हैं.
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