Lok Sabha Election 2019: राजनीतिक रूप से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कमान संभाल चुके अखिलेश यादव एक बार फिर मैदान में हैं. कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है. यूपी किसी की भी किस्मत बना और बिगाड़ सकती है. राज्य में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं. जिसने यहां बाजी मार ली उसके दिल्ली तक पहुंचने की राह आसान हो जाती है. अखिलेश इसी कवायद में लगे हुए हैं. मायावती और अखिलेश यादव मिलकर यूपी में बीजेपी को रोकने में जुटे हैं. दोनों ने कांग्रेस को किनारे कर दिया है.


अब मायावती से गठबंधन करने का अखिलेश यादव का फैसला सही या गलत साबित होता है ये तो 23 मई को आने वाले नतीजे बताएंगे लेकिन इतना तो तय है कि अखिलेश यादव इस बार बड़े खिलाड़ी की भूमिक में होंगे. अखिलेश यादव और मायवाती का जो अपना वोट बैंक है वो महागठबंधन के उम्मीदवारों के पक्ष में ट्रांसफर होता है या नहीं और अगर होता है तो किस हद तक होता है, महागठबंधन की हार जीत का ये सबसे बड़ा फैक्टर माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव की नजर यूपी की कुर्सी पर हैं और मायावती की नजर दिल्ली की सत्ता पर है. दोनों नेताओं की किस्मत का फैसला इस चुनाव में होना है.


साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की सत्ता पर काबिज अखिलेश यादव की पार्टी को तगड़ा झटका. ‘मोदी लहर’ में सपा महज पांच सीटों पर सिमट गई, जबकि 2009 में समाजवादी पार्टी ने 23 सीटें जीती थीं. इसके बाद साल 2017 में हुए राज्य के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को एक बार और तगड़ा झटका लगा और बीजेपी ने उन्हें राज्य की सत्ता से भी बेदखल कर दिया. राज्य की कुल 403 विधानसभा सीटों में से सपा को महज 47 सीटें मिलीं. तब अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरे थे लेकिन कांग्रेस तो सात सीटों पर ही सिमट कर रह गई. अखिलेश यादव को एक के बाद एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा. उधर राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की हालत बीजेपी ने खराब कर दी थी और बहुजन समाज पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल सकी थी.


पहले लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव में यूपी की कमान संभाल चुके दो नेताओं की हालत बीजेपी ने खराब कर दी. अखिलेश यादव और मायवती दोनों के पास वापसी की चुनौती आकर खड़ी हो गई. चुनौती इतनी बड़ी और मुश्किल थी कि दो धुर विरोधी पार्टियों को अपने सभी पुराने रार को भुलाकर साथ आने पर मजबूर कर दिया. इस तरह से अखिलेश यादव और बीएसपी के बीच गठबंधन हुआ.


महागठबंधन से 'महापरिवर्तन' के रास्ते में नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए अखिलेश खुद भी मैदान में हैं. इस वो आजमगढ़ से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. बीते लोकसभा चुनाव में इस सीट पर उनके पिता मुलायम ने साइकिल दौड़ाई थी.


बीसएपी के साथ हुए गठबंधन के तहत सपा को 38 सीटें मिलीं. अपने हिस्से की एक सीट अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय लोक दल को दी है. इस तरह 37 सीटों पर समाजवादी पार्टी इस बार चुनाव लड़ रही है. भारत की राजनीति में 37 का आंकड़ा भी खासा महत्वपूर्ण है. देश की 29 में 24 राज्यों में लोकसभा की कुल सीटें 37 से कम हैं.


अखिलेश यादव यूपी के सबसे बड़े सियासी घराने से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता मुलायम सिंह यादव भी यूपी के मुख्यमंत्री रहे. इसके अलावा वे एचडी देवेगौड़ा और आई के गुजराल की सरकार में रक्षामंत्री भी रहे. ऐसे में सियासत अखिलेश यादव के कोई नई बात नहीं थी. साल 2000 में जब अखिलेश यादव की उम्र 26 साल थी तब उन्होंने यूपी की कन्नौज लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में जीत दर्ज की और इस तरह से उनकी राजनीति में एंट्री हुई. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.


साल 2004 और 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट से लगातार दो बार जीत दर्ज की. इसके बाद साल 2012 में यूपी में विधानसभा चुनाव हुए. इसमें समाजवादी पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया. कुल 403 विधानसभा सीटों में से सपा ने 224 सीटों पर जीत दर्ज की. इस जीत के साथ ही अखिलेश यादव 15 मार्च 2012 को देश के सबसे बड़े सूबे यूपी के 20वें मुख्यमंत्री बने. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी ने सत्ता से बेदखल कर दिया.


अब जिस रणनीति और समीकरण को ध्यान में रखते हुए अखिलेश यादव ने मायावती के साथ गठबंधन किया है, अगर वो सफल होता है तो देश और यूपी की राजनीति में बहुत कुछ देखने को मिल सकता है. राजनीति मे कब किसकी किस्मत बदल जाए, ये कोई नहीं कह सकता. अखिलेश यादव की साइकिल मंजिल तक भी पहुंचेगी, इसका इंतजार है.