लोकसभा चुनाव में सियासी पारा मौसम के मुताबिक चढ़ा हुआ है. आरोप-प्रत्यारोप, वादों की सुरीली धुन, दल-बदल के साथ दिल बदलने की झलक और सियासत में नई एंट्री दिखने लगी है. राजे रजवाड़ों की धरती से भी राज्य के मुखिया अशोक गहलोत के बेटे ने सियासत में एंट्री मार ली है. वैभव गहलोत को कांग्रेस ने जोधपुर से उम्मीदवार बनाया है.


अशोक गहलोत की सफल सियासी पारी को देखकर पता चलता है कि वो राजस्थान की राजनीति का वो चेहरा हैं जिसका जादू वोटरों पर खूब चलता है. राजस्थान की राजनीति में वह कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं और उनका दखल केंद्र की राजनीति में भी है. लेकिन भारत की राजनीतिक पार्टियों में परिवारवाद की जड़ें भी काफी मजबूत हैं. चुनावी मौसम के दौरान पार्टियों के भीतर का परिवारवाद ज्यादा तेजी से उभर कर सामने आता है. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में भी अब अशोक गहलोत के बाद गहलोत परिवार के दूसरे सदस्य की एंट्री हो गई है.


वैभव काफी वक्त से कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं. पहले भी वैभव गहलोत के डेब्यू की खबरें आई हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी उनके सवाई माधोपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की खबरें थीं. लेकिन जोधपुर में जीत या हार का असर वैभव से ज्यादा अशोक गहलोत पर पड़ेगा. अपने गृह जिले में गहलोत किसी कीमत पर हारना नहीं चाहते. इसलिए हम इस कड़ी में सबसे पहले अशोक गहलोत के बारे में समझते हैं.


अशोक गहलोत का अनुभव
* अशोक गहलोत तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं.
* पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं.
* इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिंहा राव की सरकार में मंत्री रहे हैं.
* कांग्रेस के महासचिव रह चुके हैं.


गहलोत के पूर्वजों का पेशा जादूगरी था
अशोक गहलोत माली जाति से आते हैं. कम ही लोग जानते हैं कि उनके पूर्वजों का पेशा जादूगरी था. उनके पिता भी जादूगर थे. गहलोत ने जादू सीखा भी और कुछ दिन इसे पेशे के तौर पर अपनाया भी. लेकिन अशोक गहलोत का असली जादू सियासत के मैदान में चला.


गहलोत की राजनीति को समझने के लिए बहुत पीछे जाना होगा. सियासत में उतरने की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से की थी. 1973 से 1979 में वह एनएसयूआई राजस्थान के अध्यक्ष रहे. करीब 1977 का वक्त रहा होगा जब इमरजेंसी के बाद कांग्रेस विभाजन के संकट से जूझ रही थी. इसी दौरान पहली बार आगे बढ़कर गहलोत ने टिकट मांगा था. तब उनकी उम्र सिर्फ 26 साल थी. इसके बाद से उन्हें ना तो टिकट मांगने की जरूरत पड़ी और ना ही पद.


1980 में आया गहलोत के लिए बड़ा मौका
गहलोत के लिए बड़ा मौका 1980 में आया जब जोधपुर लोकसभा का चुनाव लड़ने से सीनियर नेता पीछे हट गए. इस तरह गहलोत का राजनीति में दाखिल होने का रास्ता खुल गया. उस वक्त उनके दोस्त रघुवीर सैन का सैलून चुनावी कार्यालय बन गया. गहलोत बाइक पर बैठकर प्रचार किया करते थे. इंदिरा की लहर में वो संसद में दाखिला पा गए और फिर उन्होंने पलट कर कभी नहीं देखा.


1998 से गहलोत की राजनीति का केंद्र राजस्थान ही हो गया. 1998 में उन्होंने तमाम बड़े नेताओं की चुनौती के बीच सीएम पद संभाला. इसे अशोक गहलोत का जादू ही कहा जाएगा कि वो तीसरी बार राजस्थान के सीएम का पद संभाल रहे हैं.


गहलोत की राजनीति की ताकत क्या है?
गहलोत के साथ सबसे बड़ी बात ये जुड़ी है कि उनकी छवि बेदाग है. अपनी छवि को लेकर वो सजग भी रहते हैं. साथ ही विवादित बयानों से कोसों दूर रहते हैं. अशोक गहलोत दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके थे और केंद्र में मजबूत होने के बाद भी उन्होंने राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ा. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की और गहलोत को तीसरी बार सीएम पद की जिम्मेदारी सौंपी.


इस बार बेटे को जिताना गहलोत के लिए बड़ी चुनौती
बीजेपी ने जोधपुर सीट से केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री और वर्तमान सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को फिर से अपना उम्मीदवार बनाया है. राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिये जोधपुर उनका गढ़ माना जाता है. इस चुनाव में केंद्रीय मंत्री के खिलाफ उनके पुत्र का चुनाव जीतना प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है. इस चुनाव में एक बात तो तय है कि अगर वैभव गहलोत जीतते हैं तो यह अशोक गहलोत की जीत होगी. लेकिन अगर वैभव चुनाव नहीं जीत पाते तब भी यह हार अशोक गहलोत की हार होगी. अब आखिरी फैसला तो जनता करेगी और 23 मई को ही पता चलेगा कि जोधपुर में किसका जलवा कायम रहेगा. जोधपुर सीट पर चौथे चरण में 29 अप्रैल को मतदान होगा.


विधानसभा सीटों के मुताबिक जोधपुर का समीकरण
विधानसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक जोधपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस काफी मजबूत नजर आती है. विधानसभा चुनाव में जोधपुर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली आठ विधानसभा सीटों में 6 पर कांग्रेस के एमएलए जीते थे, जबकि बीजेपी के खाते में सिर्फ दो सीटें गई थी. जोधपुर की सरदारपुरा विधानसभा सीट से ही अशोक गहलोत विधायक हैं. राजपूत और जाट बहुल जोधपुर लोकसभा क्षेत्र में 19.5 लाख मतदाता हैं.


2014 में ये थे जोधपुर लोकसभा सीट के नतीजे
जोधपुर लोकसभा सीट राजस्थान के मारवाड़ इलाके में आती है. 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के गजेन्द्र सिंह शेखावत ने 7 लाख 13 हजार 515 वोट हासिल किये थे और 4 लाख 10 हजार 051 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी. जोधपुर लोकसभा सीट पर दूसरे स्थान पर कांग्रेस पार्टी की चंद्रेश कुमारी रही थी जिन्होंने 3 लाख 03 हजार 464 वोट हासिल किये थे. NOTA 15 हजार 085 वोट पाकर तीसरे तो बहुजन समाज पार्टी के गोपाराम 13 हजार 511 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे थे.