नई दिल्ली: इस बार लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर की अनंतनाग लोकसभा सीट अपने आप में खास है. इसकी वजह पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती का यहां से चुनाव लड़ना है. महबूबा मुफ्ती ने 37 साल की उम्र में सियासत की दुनिया में कदम रखा था. साल 1996 में वो कांग्रेस के टिकट पर साउथ कश्मीर के बिजबेहरा से विधानसभा चुनाव लड़ीं और जीत भी हासिल की. इस जीत के बाद से ही महबूबा ने सियासी हलको में अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी थी. कहा जाता है कि फारूक अब्दुल्लाह की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस को जम्मू कश्मीर की सत्ता से बेदखल करने में सबसे बड़ा हाथ महबूबा मुफ्ती का ही था.
महबूबा मुफ्ती जम्मू कश्मीर की सबसे ताकतवर महिला नेता हैं. भले ही उनका राजनीतिक सफर काफी उतार चढ़ाव भरा रहा हो, लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपनी पार्टी ‘पीपल्स डेमोक्रेटिक एलायंस’ की शुरुआत की और सत्ता की दलहीज़ तक पहुंचाया, उससे उनके सियासी कद के बारे में पता चलता है. उन्होंने धीरे धीरे कश्मीर के लोगों के दिलों को जीता और फिर साल 2002 में कांग्रेस के साथ मिलकर पहली बार पीडीपी की सरकार बनाने में कामयाब रहीं. इसके साथ ही सालों से कश्मीर की सत्ता पर काबिज़ होने की मुफ्ती मोहम्मद सईद की ख्वाहिश भी पूरी हो गई थी.
इस बार वह एक बार फिर अनंतनाग सीट से उम्मीदवार हैं. इस सीट पर पीडीपी अध्यक्ष सहित कुल 18 उम्मीदवार मैदान में हैं. ऐसे में आइए जानते हैं उनके राजनीतिक करियर के बारे में सबकुछ
महबूबा मुफ्ती का सियासी सफर
कांग्रेस के टिकट पर 1996 में महबूबा मुफ्ती ने बिजबेहरा विधानसभा का चुनाव जीता था. लेकिन 3 साल के बाद ही 1999 में पिता मुफ्ती मुहम्मद सईद के साथ मिलकर उन्होंने अपनी नई पार्टी पीडीपी का एलान कर दिया. मुफ्ती मोहम्मद सईद पार्टी के अध्यक्ष बनें और महबूबा मुफ्ती वाइस प्रेसिडेंट बनीं. 1999 के लोकसभा चुनाव में महबूबा उमर अब्दुल्लाह के सामने श्रीनगर से चुनावी मैदान में उतरीं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा, हालांकि तब तक उन्होंने राजनीतिक ज़मीन तैयार कर ली थी. 2002 के राज्यसभा चुनाव में पहलगाम सीट पर अहमद मीर के खिलाफ दक्षिण कश्मीर में अपनी जीत दर्ज की और बाद में वे लोकसभा अनंतनाग सीट से साल 2004 और 2014 में चुनी गई. 2014 में हुए चुनावों में वह अनंतनाग सीट से 44,735 मतों के अंतर के साथ नेशनल कांफ्रेंस के मिर्जा महबूब बेग को हराया. इसके बाद साल 2016 में उनके पिता की मृत्यु के बाद वह राज्य की मुख्यमंत्री बनी.
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