VIP Candidate: कभी मुलायम के साए में रहे शिवपाल फिरोजाबाद से भतीजे के खिलाफ मैदान में, जानें उनका सियासी सफर
मुलायम यादव की शुरुआती राजनीति के दिनों में शिवपाल यादव उनके साथ साए की तरह रहते थे. शिवपाल के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पिछले पांच चुनावों में वो लगातार जीतकर विधानसभा पहुंच रहे हैं.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर इस बार बेहद रोचक और रोमांचक लड़ाई देखने को मिलेगी. इस सीट पर सिर्फ दो विरोधियों की लड़ाई नहीं बल्कि यहां मुकाबले में चाचा और भतीजा आमने सामने हैं. समाजवादी पार्टी ने जहां इस सीट पर अक्षय यादव को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं उनका मुकाबला अपने चाचा शिवपाल यादव से हैं. शिवपाल यादव अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से मैदान में हैं. अक्षय यादव शिवपाल यादव के बड़े भाई और अखिलेश यादव के बेहद करीबी रामगोपाल यादव के बेटे हैं. रामगोपाल यादव इस वक्त राज्यसभा के सदस्य हैं. चाचा भतीजे के अलावा फिरोजाबाद से बीजेपी के डॉक्टर चंद्रसेन जादौन भी मैदान में हैं. अपनी वीआईपी कैंडिटेट सीरीज़ में आज हम आपको फिरोजाबाद से उम्मीदवार शिवपाल यादव के सियासी सफर के बारे में बता रहे हैं.
31 साल पहले शुरू हुई राजनीति, मुलायम के साथ साए की तरह रहते थे सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव का राजनीतिक सफर 31 साल पहले शुरू हुआ था. साल 1988 से लेकर 1991 तक शिवपाल जिला सहकारी बैंक इटावा के अध्यक्ष रहे, इसके बाद 1993 में एक बार फिर इस पद के लिए चुने गए. को-ऑपरेटिव से अपनी राजनीति को धार देने वाले शिवपाल ने इसी के जरिए समाजवादी पार्टी को हर जिले मे मजबूत करने का काम किया. साल 1994 से 1998 के बीच शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड के अध्यक्ष भी रहे. 64 साल के शिवपाल यादव पांच बार से इटावा की जसवंत नगर सीट से विधायक हैं. बताते हैं कि मुलायम यादव की शुरुआती राजनीति के दिनों में शिवपाल यादव उनके साथ साए की तरह रहते थे.
शिवपाल यादव ने अपना पहला विधानसभा चुनाव साल 1996 में जीता था, बता दें कि इसी साल मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई थी. शिवपाल के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पिछले पांच चुनावों में वो लगातार जीतकर विधानसभा पहुंच रहे हैं. मुलायम सिंह यादव की सरकार में मंत्री रहे शिवपाल यादव ने सरकार जाने के बाद सदन में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई. इसके बाद साल 2012 में जब अखिलेश यादव की सरकार आई तब शिवपाल यादव को फिर कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदार मिली.
वर्चस्व की लड़ाई में मिली हार, पार्टी से निकाले गए भतीजे अखिलेश के साथ समाजवादी पार्टी में वर्चस्व की लंबी लड़ाई के बाद शिवपाल यादव ने आखिरकार अपनी पार्टी बनाने का फैसला किया. इसके बाद उन्होंने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाई. दरअसल 2017 में कांग्रेस के साथ विधानसभा चुनाव में उतरे अखिलेश यादव को उम्मीद से भी बुरी असफलता हाथ लगी. इसके बाद समाजवाजी पार्टी और अखिलेश के परिवार दोनों में विवाद और बिखराव शुरू हो गया. समाजवादी पार्टी में दो खेमे बन गए, एक खेमा अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव की ओर था और दूसरा खेमा खुद अखिलेश संभाल रहे थे. अखिलेश के साथ उनके एक और चाचा रामगोपाल यादव भी थे. अखिलेश यादव से नाराज तत्कालीन पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया. लंबे सियासी ड्रामे के बाद आखिरकार मुलायम सिंह यादव जीत अखिलेश खेमे के हाथ लगी. मुलायम को पार्टी का संरक्षक बनाया गया और अखिलेश राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. इस तरह कभी शिवपाल यादव जिस पार्टी में नंबर दो की कुर्सी पर थे उसी से बाहर कर दिए गए.
शिवपाल यादव का व्यक्तिगत जीवन शिवपाल यादव का जन्म 6 अप्रैल 1955 को इटावा जिले के सैफई में हुआ. साल 1974 में 12वीं की परीक्षा पास करने वाले शिवपाल यादव ने बाद में 1977 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीपीएड किया. शिवपाल यादव की पत्नी का नाम सरला यादव है, उनकी एक बेटी अनुभा यादव और एक बेटा आदित्य यादव है. पेशे से डॉक्टर अनुभा यादव की शादी तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी अजय यादव से हुई है, वहीं शिवपाल के बेटे आदित्य यादव प्रादेशिक को-ऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड के चेयरमैन रह चुके हैं.
फिरोजाबाद लोकसभा सीट के बारे में जानिए... फिरोजोबाद सीट का मिजाज हर चुनाव में बदलता रहा है, फिररोजाबाद लोकसभा सीट टूंडला, जसराना, फ़िरोज़ाबाद, शिकोहाबाद और सिरसागंज विधानसभा को मिलाकर बनी है. साल 1957 में यहां पहली बार चुनाव हुए. इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार ब्रजरात सिंह ने जीत हासिल की. 1962 में इस सीट पर चुनाव नहीं हुआ और ब्रज राज सिंह का कार्यकाल बन गया. 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के शिवचरण लाल सिंह जीते. साल 1971 इस सीट पर कांग्रेस ने अपना खाता खोला और छत्रपति अंबरेश यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे.
साल 1991 के चुनाव में यहां से बीजेपी उम्मीदवार प्रभु दयाल कठेरिया बने जिन्होंने हैट्रिक लगाई. 1999 में सपा के टिकट पर चुनाव लड़े राम जी लाल सुमन ने प्रभु दयाल कठेरिया को मात दी. 2009 के चुनाव में अखिलेश यादव ने कन्नौज के साथ इस सीट से भी चुनाव लड़ा. अखिलेश दोनों जगहों से जीते लेकिन बाद में उन्होंने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी. 2009 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव यहां से राजब्बर के खिलाफ मैदान में उतरीं लेकिन जीत राजब्बर की झोली में आई. 2014 के चुनाव में रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव यहां से चुनाव लड़े और बीजेपी के साथ कांटे की टक्कर के बाद जीत दर्ज की.