नई दिल्ली: यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी इस बार भी अपनी परंपरागत सीट रायबरेली से चुनाव लड़ रहीं हैं. सोनिया गांधी इस सीट से मौजूदा सांसद हैं. कांग्रेस पार्टी का गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है लेकिन तस्वीर 23 मई को नतीजे आने के बाद ही साफ हो पाएगी.
दरअसल हमारे देश में राजनीति में 'बाहरी लोगों' को आसानी से स्वीकृति नहीं मिलती.सोनिया गांधी भारत की राजनीति का एक ऐसा नाम हैं, जिसे बाहरी होने के बाद भी सम्मान से स्वीकार किया गया.
इटली के विसेन्जा से कुछ दूर एक छोटे से गांव लूसियाना में 9 दिसंबर 1946 को उनका जन्म हुआ. इसके बाद वो 1964 में इंग्लैंड चली गईं. जहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने इंग्लिश लैंगुएज की पढ़ाई की. इसी दौरान उनकी मुलाकात भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से हुई. दोनों में प्यार हुआ और जिंदगी के सफर में सोनिया गांधी परिवार की बहू बनकर भारत आ गईं.
भारत ने जैसे उन्हें अपनाया वैसे ही सोनिया गांधी ने भी भारत को अपना लिया. सोनिया गांधी कभी नहीं चाहती थीं कि राजीब गांधी राजनीति में आएं लेकिन इंदिरा गांधी के मौत के बाद उन्हें राजनीति में आना पड़ा ठीक उसी तरह जब आत्मघाती हमले में राजीब गांधी की मृत्यु हुई तो न चाहते हुए भी सोनिया गांधी को राजनीति में आना पड़ा.
सोनिया गांधी का सियासी सफर
सोनिया गांधी पहली बार 1999 में सांसद बनीं. उन्होंने यूपी की अमेठी सीट से चुनाव जीता और वो लोकसभा में विपक्ष की नेता चुनी गईं. इसके बाद 2004 के आम चुनावों में उनकी अगुवाई में कांग्रेस ने एनडीए को करारी शिकस्त दी. वो खुद इस चुनाव में सांसद बनीं. 23 मार्च 2006 को सांसद पद से इस्तीफा देकर उन्होंने उपचुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 2009 में भी वो रायबरेली से जीतीं और 2014 में फिर एक बार वह अपनी सीट पर जीतने में कामयाब रहीं. इससे पहले 2004 में बात जब प्रधानमंत्री बनने की आई तो सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया. इसके बाद 2009 में भी उन्होंने यूपीए सरकार को मनमोहन सिंह का नेतृत्व दिया.
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