नई दिल्ली: कई बार चुनाव के नतीजे आने के बाद आपने एक बात सुनी होगी कि फलाने प्रत्याशी की तो 'जमानत जब्त' हो गई. आपके दिमाग में यह सवाल जरूर आता होगा कि आखिर यह 'जमानत जब्त' होना होता क्या है. आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि आखिर कब किसी उम्मीदवार की 'जमानत जब्त' हो जाती है.
क्या होती है जमानत राशि
दरअसल नियम के मुताबिक सभी प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए चुनाव आयोग के सामने एक निश्चित राशि जमा करनी होती है. अगर नतीजे आने पर वह प्रत्याशी निश्चित मत प्रतिशत नहीं हासिल करता है तो उसकी जमानत राशि जब्त कर ली जाती है.
कितनी राशि जमानत के तौर पर चुनाव आयोग के पास जमा करवाना पड़ता है
जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक नामांकन दाखिल करने के समय प्रत्येक उम्मीदवार को लोकसभा चुनाव के लिए 25,000 रुपये की जमानत राशि जमा करनी होती है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को एक रियायत मिलती है. उन्हें जमा के रूप में केवल आधी राशि यानि 12,500 रुपये का भुगतान लोकसभा चुनाव के लिए करना होता है.
वहीं, विधानसभा चुनाव में यह जमानत राशि सामान्य प्रत्याशियों के लिए 10 हजार रुपये और एससी-एसटी के लिए 5 हजार रुपये है. सुरक्षा जमा राशि नामांकन के पहले सेट को दाखिल करते समय या उससे पहले किया जाना चाहिए.
कब होती है जमानत राशि जब्त
यदि कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं जीतता और जिस सीट से वह लड़ रहा है वहां मतों की संख्या के छठे भाग से अधिक मत प्राप्त करने में असफल होता है तब चुनाव आयोग उसकी जमानत राशि को जब्त कर लेती है. वह राशि चुनाव आयोग की हो जाती है. उदाहरण के लिए अगर किसी सीट पर 1 लाख वोटिंग हुई तो जमानत बचाने के लिए प्रत्येक प्रत्याशी को छठे भाग से अधिक यानि करीब 16 हजार 666 वोटों से अधिक वोट हांसिल करना होगा.
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