UP Bypoll 2023: भारत की 18वीं लोकसभा के लिए आमचुनाव 2024 में होने हैं. नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) आगामी लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रहा है. वहीं दूसरी ओर इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलायंस (INDIA) उसे रोकने को तैयार है. महासमर के पहले उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा सीट पर इंडिया अलायंस का पहला लिटमस टेस्ट होने जा रहा है. बीजेपी के साथ-साथ एनडीए के लिए भी यह उपचुनाव बड़ी चुनौती हैं. इस एक चुनाव से कई समीकरण सही और गलत साबित होने वाले हैं, जानें कैसे?


बीजेपी ने यहां दारा सिंह चौहान पर दांव लगाया है. दारा सिंह अभी हाल ही में सपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. उनके सामने समाजवादी पार्टी ने पूर्व विधायक सुधाकर सिंह को खड़ा किया है. कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी न लड़ाकर सपा का साथ देने का मन बनाया है. यूपी की एक अन्य प्रभावशाली पार्टी मायावती की बीएसपी ने भी अपना प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारने का फैसला किया है. इसके कारण बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.


पूर्वाचल में बीजेपी को लोकसभा चुनाव 2019 में हुआ था काफी नुकसान


पूर्वाचल में बीजेपी को पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में काफी नुकसान इस क्षेत्र में उठाना पड़ा था. बीजेपी घोसी, लालगंज, गाजीपुर, आजमगढ़ और जौनपुर सीटें हार गई थी. इस लिहाज से बीजेपी के घोसी उपचुनाव में जीत दर्ज करने के कई मायने हैं. इसलिए बीजेपी ने इस उपचुनाव में उपमुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रियों की फौज प्रचार के लिए उतारी है.


इसके अलावा 5 सितंबर को होने वाले इस चुनाव के नतीजे से यह भी तय होगा कि बीजेपी ने सुभासपा यानी ओमप्रकाश राजभर को एनडीए में शामिल करके सही किया या गलत. दारा सिंह और राजभर दोनों ही इस बेल्ट में सपा के मजबूत स्तंभ रहे हैं.


समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए इस उपचुनाव का महत्व       


इंडिया का प्रमुख हिस्सा कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के लिए भी इस उपचुनाव में जीत का खास महत्व है. यूपी में कांग्रेस यहां के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी से महा गठबंधन के तहत कुछ अधिक सीटों की अपेक्षा रखती है. इसलिए उसने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए सपा के समर्थन में अपना प्रत्याशी नहीं उतारने का निर्णय लिया है.


इतना ही नहीं यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने भी अपने प्रदेश के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को सपा प्रत्याशी का समर्थन करने का निर्देश दिया है. वहीं सपा का प्रत्याशी जीतता है तो सीटों के गठबंधन में उसका महत्व बढ़ जाएगा.


मऊ की घोसी विधानसभा सीट का जातीय समीकरण


प्रारंभ में घोसी सीट पर वामपंथी सियासत का प्रभाव था. इस सीट पर मुस्लिम और अनुसूचित जाति के वोटरों का अधिक प्रभाव रहता है. इसके अलावा यादव, राजभर और चौहान भी चुनावी समीकरण बदलने की स्थिति में हैं. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यहां कुल 4.20 लाख मतदाता हैं. जिनमें से 85 हजार सर्वाधिक मुस्लिम हैं. इसके अतिरिक्त दलित 70 हजार, यादव 56 हजार, राजभर 52 हजार और चौहान करीब 46 हजार वोटर हैं.


इनका रहा है इस सीट पर सर्वाधिक प्रभाव


चुनावी गणित बताता है कि फागू चौहान का इस सीट पर लंबे समय तक दबदबा रहा. वह 2017 में भी यहां से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे. फागू चौहान कुल 6 बार यहां से जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे थे. पहली बार 1985 में लोकदल से, इसके बाद 1991 में जनता दल से, फिर 1996 और 2002 में बीजेपी से और 2007 में बीएसपी के टिकट से चुनाव जीत चुके हैं.


2017 में चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने उन्हें बिहार का राज्यपाल बना दिया था. इसके बाद 2019 में हुए उपचुनाव में बीजेपी के विजय राजभर यहां से विजयी हुए थे. घोसी में पहला विधानसभा चुनाव 1957 में हुआ था. यहां पर वामपंथी झारखंडे राय लगातार तीन बार चुनाव जीते थे.


कुल मिलाकर देखा जाए तो इस सीट से सीपीआई और बीजेपी 4-4 बार, तीन बार कांग्रेस, दो बार बीएसपी और एक बार सपा चुनाव जीती थी. 2019 के उप चुनाव में बीजेपी के विजय राजभर ने सपा के सुधाकर सिंह को 1773 वोटों से हराया था. इस कांटे के चुनाव में विजय राजभर को 68,371 वोट, सुधाकर सिंह को 66,598 वोट और बीएसपी के अब्दुल कय्यूम अंसारी को 50,775 वोट मिले थे.   


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