'इंडिया अलायंस की बैठक में अच्छा चाय-नाश्ता', जयंत चौधरी ने बताई NDA में शामिल होने की वजह
Lok Sabha Election: इंडिया गठबंधन छोड़ एनडीए का हिस्सा बनने वाले जयंत चौधरी ने कहा कि जब आप विपक्ष में होते हैं तो आपको आक्रमक होना पड़ता है.
Lok Sabha Election 2024: राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गए. बीजेपी ने आरएलडी को यूपी में दो लोकसभा सीट और 1 राज्य सभा की सीट ऑफर की है. हालांकि, एनडीमें शामिल होने से पहले आरएलडी यूपी में इंडिया अलायंस के साथ गठबंधन में थी और अखिलेश यादव नें उन्हें 7 सीटों की पेशकश की थी.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर वह 7 सीटों मिलने के बावजूद इंडिया अलायंस का साथ क्यों छोड़ गए. इस सवाल का जवाब अब जयंत चौधरी ने खुद दिया है. उन्होंने टाइम्स नाउ नवभारत को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि वह बेंगलुरु और दिल्ली में इंडिया अलायंस की दोनों बैठक में शामिल हुए थे, उसमें चाय-नाश्ता अच्छा हुआ था, लेकिन सीट शेयरिंग और चुनाव के मुद्दों को लेकर कोई बात नहीं हुई थी.
'नहीं बनाया गया था कोई साझा कार्यक्रम'
उन्होंने कहा, "सीट शेयरिंग दिसंबर से पहले हो जानी चाहिए थी, लेकिन नहीं हुई. कोई साझा कार्यक्रम नहीं तैयार किया गया. मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव को लेकर भी उम्मीद थी कि हमारा कोई साझा कार्यक्रम होगा और एक मंच साझा करके जो बात बंद कमरे में हुई उन्हें जनता के सामने लाया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ."
आरएलडी नेता ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल जीतने के लिए चुनाव लड़ता है. सभी दल सत्ता में रहना चाहते हैं. मेरे दिमाग में भी कहीं न कहीं था हम गलत रास्ते में हैं और हमे राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहिए.
'विपक्ष में आक्रमक रहना होता है'
जयंत चौधरी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि बीजेपी ने 10 साल में कोई काम नहीं किया या किसानों की अनदेखी की है तो यह गलत होगा, जब आप विपक्ष में रहते हैं तो आपको आक्रमक रहना पड़ता है और आरएलडी ने यह भूमिका बेखूबी निभाई और पार्टी ने कई आंदोलनों में भाग भी लिया.
किसानों पर बोले जयंत चौधरी
उन्होंने कहा कि वह सरकार के सामने किसानों के पक्ष की वकालतल करेंगे. वह चाहेंगे कि केंद्र सरकार किसानों के लिए कुछ अतिरिक्त कदम उठाए. आरएलडी नेता ने कहा, "जब किसानों की फसल को नुकसान हो जाता है, तो कमी के कारण फसल के दाम बढ़ जाते हैं. इसके चलते सरकार कंज्यूमर के हित और महंगाई को ध्यान में सब्सिडाइज कर देती है, लेकिन जब किसी फसल के दाम अचानक से कम हो जाते हैं तो सरकार उसमें हस्तक्षेप नहीं करती."
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