(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Lok Sabha Election 2024: न अतीक न मुख्तार, बिना बाहुबली होगा उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव!
Lok Sabha Election: उत्तर प्रदेश इस बार ऐसे चुनाव का गवाह बनने जा रहा है, जहां कोई भी माफिया और बाहुबली चुनाव लड़ने के काबिल नहीं बचा है.
Lok Sabha Election 2024: उत्तर प्रदेश और खास तौर से पूर्वी उत्तर प्रदेश माफिया-बाहुबलियों की पनाहगाह रही है, जिसने उन्हें विधानसभा से लेकर लोकसभा तक का रास्ता दिखाया है. बात चाहे हरिशंकर तिवारी की हो या फिर मुख्तार अंसारी की. कोई भी चुनाव इनके प्रभाव से अछूता नहीं रहा है, लेकिन अब जब 2024 के लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं तो उत्तर प्रदेश की राजनीति के इतिहास में शायद ये पहला मौका है, जब कोई भी बाहुबली चुनाव लड़ने के काबिल नहीं बचा है.
पूर्वी यूपी का जिला गोरखपुर और वहां की भी चिल्लूपार विधानसभा ऐसी जगह है, जिसे माफिया बनाने की फैक्ट्री कहा जा सकता है. वहां के सबसे बड़े नेता और पूर्वी यूपी के सबसे बड़े माफिया में शुमार हरिशंकर तिवारी का निधन हो चुका है. उनके बेटे भीष्म शंकर तिवारी और विनय शंकर तिवारी राजनीति में सक्रिय हैं, विधायक-सांसद भी रहे हैं, लेकिन उनके ऊपर अपने पिता की तरह बाहुबली का ठप्पा नहीं लगा है.
अमरमणि त्रिपाठी को उम्र कैद
16 मई 2023 को हरिशंकर तिवारी की मृत्यु ने गोरखपुर में बने अपराध और राजनीति के कॉकटेल को खत्म कर दिया है. बाकी कहानी तो गोरखपुर के ही बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी की भी है, जिसको मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में उम्र कैद की सजा हो चुकी है और सियासत के साथ ही उसका बाहुबल भी अब पूरी तरह से जमींदोज हो चुका है.
जेल में मुख्तार अंसारी
गाजीपुर और मऊ में माफिया मुख्तार अंसारी का अच्छा-खासा दखल है. उसे पूर्वांचल के सबसे बड़े माफिया के तौर पर देखा जाता है. खुद भी कई बार विधायक रहा है, भाई को भी विधायक-सांसद बनवाया है, बेटा भी विधायक रहा है, लेकिन बीजेपी नेता कृष्णानंद राय की हत्या के बाद से ही मुख्तार अंसारी पर कानून का शिकंजा इतना सख्त कस गया है कि वे अब कभी शायद ही जेल से बाहर आ पाएगा, चुनाव लड़ना तो दूर की बात है.
चुनावी राजनीति से दूर धनंजय सिंह
इसी मुख्तार अंसारी के साथ बृजेश सिंह की अदावत के किस्से पूर्वांचल के बच्चे-बच्चे की जुबान पर हैं और यही इकलौते हैं, जो चाहे तो चुनाव लड़ सकते हैं. जौनपुर में धनंजय सिंह की बादशाहत चलती थी. लेकिन सात साल की सजा होने के बाद धनंजय सिंह भी चुनावी राजनीति से दूर हो गया है. आजमगढ़ में रमाकांत यादव की तूती बोलती थी. पांच बार विधायक चार बार सांसद रहा, लेकिन वो भी जेल में है.
विजय मिश्रा भी 15 साल की जेल
तीन बार के विधायक और एक बार मछलीशहर से सांसद रहे उमाकांत यादव की भी गिनती बाहुबलियों में होती है, लेकिन उसे भी उम्रकैद की सजा हो चुकी है. तो वो भी चुनाव नहीं लड़ पाएगा. भदोही का बाहुबली नेता और चार-चार बार विधायक रहा विजय मिश्रा भी 15 साल की जेल की सजा काट रहा है.
बाहुबली मुक्त प्रयागराज
प्रयागराज तो जैसे अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ के बिना कोई चुनाव देख ही नहीं पाता था. लेकिन इन दोनों भाइयों की हत्या ने प्रयागराज को भी बाहुबली मुक्त कर दिया है. प्रतापगढ़ के कुंडा से विधायक राजा भैया अब भी एक अपवाद हैं, जिनकी छवि तो बाहुबली की है, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ एक भी अपराध साबित नहीं हो पाया है और वो चुनावी राजनीति में सक्रिय हैं.
वहीं, उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड वाला पूरा इलाका माफिया तो नहीं लेकिन डकैतों के चंगुल में जरूर रहा है. ददुआ से लेकर ठोकिया और बलखड़िया तक बुंदेलखंड में किसी की भी जीत-किसी की हार तय करते आए थे, किन अब इनमें से एक भी ज़िंदा नहीं बचा है. सब के सब डकैत या तो पुलिस एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं या फिर जेल में हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में डीपी यादव की बादशाहत हुआ करती थी. लेकिन अब वक्त के साथ उनकी भी हालत इतनी कमजोर है कि वो खुद तो चुनाव नहीं ही लड़ सकते.