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भारत की राजनीति में क्या है वंशवाद की ताकत, बीजेपी पर क्यों लग रहे परिवारवाद के आरोप? आंकड़ों से समझिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जमुई में अपने भाषण मे एक बार भी परिवारवाद का जिक्र नहीं किया. गरीबी, अपराध, भ्रष्टाचार, विकास और अर्थव्यवस्था जैसे शब्द कई बार बोले, लेकिन परिवारवाद एक बार भी नहीं आया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी बिहार में कदम रखते हैं, चुनाव का केंद्र बिंदु परिवारवाद पर जाकर टिक जाता है. 2 मार्च को मोदी के बिहार दौरे के बाद लालू प्रसाद यादव ने 3 मार्च को प्रधानमंत्री के परिवार पर सवाल उठाकर इस मुद्दे को हवा दी थी. एक महीने बाद गुरुवार (4 अप्रैल) को पीए मोदी फिर बिहार में थे. उनके दौरे से ठीक पहले, लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने राजनीति में वंशवाद को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और पीएम मोदी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था. पीएम मोदी बिहार के जमुई में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) के प्रत्याशी और राम विलास पासवान के दामाद अरुण भारती के समर्थन में रैली की, लेकिन तेजस्वी यादव ने जमुई पीएम मोदी की रैली से पहले एक ट्वीट किया

तेजस्वी यादव ने लिखा, 'प्रधानमंत्री मोदी जी आज बिहार में प्रथम चरण की चार सीटों के लिए प्रचार करने आएंगे. चारों सीटों पर विशुद्ध 100 फीसदी परिवारवादी उम्मीदवार हैं. इनमें से 2 कथित क्षेत्रीय परिवारवादी पार्टियों के और 2 उम्मीदवार देश की सबसे बड़ी परिवारवादी और वंशवादी नेताओं से भरी पड़ी बीजेपी पार्टी के हैं.' परिवारवाद के मुद्दे पर तेजस्वी यादव के इस काउंटर अटैक के बाद, चुनाव के पहले चरण से ठीक पहले राजनीति में वंशवाद का मुद्दा फिर से गरम हो गया है.

जमुई में क्यों परिवारवाद पर नहीं बोले पीएम मोदी?
प्रधानमंत्री मोदी जब भी बिहार जाते हैं, वंशवादी राजनीति के लिए लालू यादव के परिवार की मिसाल देते हैं, लेकिन इस बार जमुई में प्रधानमंत्री ने जो भाषण दिया, उसमें एक बार भी परिवारवाद का जिक्र नहीं किया. 28 मिनट लंबे भाषण में पीएम  मोदी ने गरीबी, अपराध, भ्रष्टाचार, विकास और अर्थव्यवस्था जैसे तमाम शब्द कई बार बोले, लेकिन पूरे भाषण के दौरान परिवारवाद एक बार भी नहीं आया.

पीएम मोदी का परिवारवाद से किनारा लोगों को अखर रहा है. वो इसका कारण जानना चाहते हैं. इसे जानने के लिए भारत का परिवारवादी नक्शा देख लेते हैं. शुरुआत जम्मू कश्मीर से करते हैं. जम्मू कश्मीर की राजनीति 2 परिवारों के इर्द गिर्द घूमती रही. पहला है अब्दुल्ला परिवार, दूसरा है मुफ्ती परिवार.

हिमाचल, पंजाब और यूपी में कितने परिवारों का दबदबा
अब हिमाचल का रुख करते हैं. यहां की राजनीति में भी 2 राजनीतिक परिवारों का दबदबा दशकों से रहा. पहला -राजा वीरभद्र सिंह का परिवार, जिनकी पत्नी प्रतिभा सिंह और बेटे विक्रमादित्य. वीरभद्र की कांग्रेसी राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं. दूसरी धूमल फैमिली है. प्रेम कुमार धूमल हिमाचल के सीएम रहे. बेटे अनुराग ठाकुर केंद्रीय मंत्री हैं. हालांकि, इस बार धूमल विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े.

अब पंजाब का रूख करते हैं. यहां भी 2 राजनीतिक परिवारों का दबदबा है. पहला परिवार प्रकाश सिंह बादल का है. प्रकाश सिंह बादल कई बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे. उनकी राजनीतिक विरासत को उनके बेटे सुखवीर बादल ने आगे बढ़ाया. सुखवीर बादल पंजाब के डिप्टी CM रहे. सुखवीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल मोदी सरकार में मंत्री भी रहीं. दूसरा परिवार है कैप्टन अमरिंदर सिंह का, जिनकी पत्नी और बेटी राजनीति में हैं. अब बात करते हैं हरियाणाकी. यहां चौटाला, हुड्डा और विश्नोई फैमिली का राजनीतिक दबदबा रहा. इसे लालों के लाल की राजनीति कहते हैं. देवीलाल,भजनलाल और बंसीलाल. 

अब देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की बात करते हैं. यहां कितने राजनीतिक परिवारों का दबदबा है ये भी जानिए. पहला-मुलायम सिंह यादव का परिवार. परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में एंट्री कर चुकी है. दूसरा चौधरी चरण सिंह का परिवार, जिसकी तीसरी पीढ़ी यानी जयंत चौधरी सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. तीसरा परिवार संजय निषाद का है. बेटे प्रवीन निषाद पिता की राजनीतिक विकासत को आगे बढ़ा रहे हैं. चौथा परिवार ओम प्रकाश राजभर का है. इसके अलावा और कई परिवार हैं जिसमें सोनेलाल पटेल का भी परिवार शामिल है, जिनकी बेटी केंद्र सरकार में मंत्री हैं. मयावती के भतीजे भी पार्टी संभाल रहे हैं.

बिहार, झारखंड और ओडिशा की राजनीति में कितने परिवार
अब आपको बिहार लेकर चलते हैं, जहां से 2024 के चुनाव में परिवारवाद का दंगल शुरू हुआ. यहां परिवारवादी राजनीति के नक्शे पर तीन बड़े परिवारों का नाम है. पहला है लालू प्रसाद यादव का परिवार. लालू यादव के 2 बेटे और 2 ही बेटियां उनकी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ा रही हैं. पत्नी रावड़ी देवी भी सीएम रह चुकी हैं. दूसरा राम विलास पासवान का परिवार है. बेटे चिराग पासवान पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. तीसरा है जीतन राम मांझी का परिवार. उनके बेटे संतोष मांझी पिता के राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं. 

झारखंड में सोरेन फैमिली का दबदबा रहा. पूर्व सीएम शिवू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन पिता की सियासी विरासत को संभाले हैं. महाराष्ट्र में 2 बड़े राजनीतिक परिवारों का दबदबा है. पहला है बाल ठाकरे परिवार. उनके बेटे उद्धव ठाकरे भी मुख्यमंत्री रहे और पोते आदित्य ठाकरे मंत्री. दूसरा है पवार परिवार. इसका कुनबा काफी बड़ा है. शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. बेटी सुप्रिया सुले सांसद हैं. भतीजे अजित पवार महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम हैं.

ओडिशा की बात करें तो यहां पटनायक फैमिली का सियासी दबदबा रहा. बीजू पटनायक मुख्यमंत्री थे. फिर बेटे नवीन पटनायक ने पिता की राजनीति को आगे बढ़ाया और वह भी मुख्यमंत्री हैं. कर्नाटक में देवेगोड़ा फैमिली का राजनीतिक दबदबा रहा. देवेगौड़ा प्रधानमंत्री रहे. उनके बेटे एचडी कुमार स्वामी मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. परिवार के और सदस्य भी  राजनीति में हैं. आगे तमिलनाडु की बात करें तो एम करें तो एम करुणानिधि मुख्यमंत्री रहे और अब उनके बेटे एमके स्टालिन सत्ता में हैं. स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन भी राज्य सरकार में मंत्री हैं.

भारतीय राजनीति में परिवारवाद की ताकत
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी सासंद हैं. भारतीय राजनीति में परिवारवाद के इस दबदबे के मायने होते क्या हैं, इसके लिए 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजों से जुड़े आंकड़े देखते हैं. पंजाब की 13 सीटों में से 62 फीसद सीटों पर पॉलिटिकल परिवारों का कब्जा था. अरुणाचल प्रदेश की 50 फीसद और मेघालय की भी 50 परसेंट सीट राजनीतिक परिवार की जीत हुई. बिहार की 40 सीटों में से करीब आधी, यानी तैंतालिस फीसद सीटों पर पॉलिटिकल फैमिली के मेंबर जीत गए. महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में 42 प्रतिशत सीटों पर राजनीतिक घराने जीत गए.

कर्नाटक की 28 सीटों में से 39 फीसदी पर राजनीतिक वंशवाद की विजय हुई. आंध्र प्रदेश में 25 सीटों पर 2019 में 36 परसेंट पॉलिटिकल परिवारों की जीत हुई. आंध्र में अभी सरकार भी एक पॉलिटिकल  परिवार ही चला रहा है. तेलंगाना की 17 सीटों में 35 प्रतिशत पर वंशवाद की जीत हुई. ओडिशा की 21 सीटों में 33 फीसद पर राजनीतिक परिवार जीते. राजस्थान की 25 सीटों पर 32 फीसद पॉलिटिकल फैमिली की जीत हुई. हरियाणा की 10 सीट पर  30 फीसद राजनीतिक परिवार जीते. यूपी की 80 सीट पर 28 फीसद राजनीतिक परिवार जीते. हिमाचल की 4 सीट पर 25 फीसद राजनीतिक परिवार जीते.  

बीजेपी पर लग रहे परिवारवाद के आरोप सही या गलत?
तेजस्वी यादव ने बीजेपी पर विशुद्ध परिवारवाद के आरोप गढ़े. इनकी टेस्टिंग के लिए कुछ आंकड़े हमने जुटाए हैं, जिनसे क्लियर हो जाएगा कि बीजेपी पर लग रहे परिवारवाद के इल्जाम सही हैं या गलत? हरियाणा में लोकसभा की 10 सीट हैं.
बीजेपी ने 10 में से 4 टिकट राजनीतिक परिवारों के कैंडिडेट्स को दिए हैं. एवरेज निकालें तो करीब 40 फीसद टिकट पॉलिटिकल बैकग्राउंड वाले कैंडिडेट के पास हैं. हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की 4 सीट हैं और बीजेपी ने 4 में से 1 सीट राजनीतिक परिवार के प्रत्याशी को दी. यानी कुल टिकट का 25 प्रतिशत. उत्तराखंड में लोकसभा की 5 सीट हैं. 5 में से 1 सीट बीजेपी ने राजनीतिक परिवार के उम्मीदवार को दी है. इस हिसाब से कुल टिकट का 20 फीसद हिस्सा.

झारखंड में लोकसभा की 13 सीट हैं. बीजेपी ने 13 में 2 सीट राजनीतिक परिवार के कैंडिडेट को दी हैं. यानी कुल टिकट का 15 फीसदी. कर्नाटक में लोकसभा की 25 सीट हैं. यहां 25 में से 9 सीट बीजेपी ने राजनीतिक परिवारों के कैंडिडेट को दी हैं. यानी कुल सीट का 36 फीसद हिस्सा राजनीतिक परिवारों को बांटा गया. परिवारवाद का मुद्दा बीजेपी के लिए कैसे गले की हड़्डी बन गया है. जो न निगलते बन रहा है ना ही उगलते बन रहा है. अब उत्तर प्रदेश की बात करते हैं. घोसी लोकसभा सीट से ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर चुनाव लड़ रहे हैं. अरविंद राजभर प्रचार के लिए मऊ में थे. मंच पर यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक मौजूद थे. सामने नाराज बीजेपी के कार्यकर्ता बैठे हुए थे, जो ओपी राजभर के पुराने बयानों से नाराज थे. बीजेपी कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए, ब्रजेश पाठक ने अरविंद राजभर से घुटनों पर बैठकर माफी मांगने को कहा और ओपी राजभर के बेटे को बीजेपी कार्यकर्ताओं के सामने करीब-करीब मुर्गा बना दिया.

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