अखिलेश जहां हुए फेल, वहां कर दिया नया खेल, इस सीट पर टिकट बदलने के पीछे ये है पूरा कैलकुलेशन
Lok Sabha Elections 2024: बदायूं लोकसभा सीट का सियासी समीकरण समझें तो यहां सबसे ज्यादा वोटर यादव है, वहीं मुस्लिम वोटर्स की संख्या दूसरे नंबर पर है.
Lok Sabha Election Live 2024: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने तीसरी लिस्ट में बदायूं सीट से उम्मीदवार बदल दिया. पहले अखिलेश यादव ने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया था. अब उनकी जगह शिवपाल यादव को उम्मीदवार बनाया गया. सवाल ये कि समाजवादी पार्टी ने टिकट क्यों बदला, जवाब आपको यहां से मिलेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार (19 फरवरी) को कल्कि धाम मंदिर का शिलान्यास करने संभल पहुंचे थे. पीएम ने पूजा पाठ के साथ संभल की धरती से इस इलाके में चुनावी शंखनाद किया और पीएम के इस दौरे का सियासी असर ये हुआ कि अगले ही दिन यानी मंगलवार (20 फरवरी) को समाजवादी पार्टी ने संभल से सटे बदायूं लोकसभा सीट पर अपना उम्मीदवार बदल दिया.
सिर्फ बदायूं नहीं अखिलेश यादव का मकसद
बदायूं लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने पहले धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया था. धर्मेंद्र यादव इस सीट से दो बार चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन अखिलेश यादव ने भाई धर्मेंद्र यादव का टिकट बदलकर चाचा शिवपाल यादव को उम्मीदवार बना दिया. शिवपाल यादव की इलाके में अच्छी पकड़ है, लिहाजा चाचा के टिकट के जरिये अखिलेश यादव की कोशिश बदायूं और आसपास की सीटों पर असर डालने की है. अपनी उम्मीदवारी के ऐलान से शिवपाल यादव खुश हैं और पार्टी के फैसले का स्वागत कर रहे हैं.
2019 में सपा से छिन गई अपने गढ़ की सीट
बदायूं सीट पर 1996 से 2019 तक समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है. इस सीट पर 6 बार समाजवादी पार्टी जीत चुकी है. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने यहां समाजवादी पार्टी को हराया था. बीजेपी की संघमित्रा मौर्य बदायूं की फिलहाल सांसद हैं. बीजेपी संघमित्रा मौर्य को फिर से उम्मीदवार बनाएगी या नहीं ये तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन मौजूदा राजनीतिक पिक्चर में संघमित्रा मौर्य की दावेदारी मजबूत बन रही है. वैसे भी संघमित्रा के पिता स्वामी प्रसाद मौर्य समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ चुके हैं.
बदायूं सीट पर कितने यादव कितने मुस्लिव वोटर
जहां तक बदायूं के जातीय समीकरण का सवाल है तो यहां सबसे ज्यादा 4 लाख यादव वोटर हैं. मुस्लिम वोटरों की संख्या भी 3.5 लाख से ज्यादा है. यहां गैर यादव ओबीसी वोटर करीब 2.5 लाख हैं. वैश्य और ब्राह्मण वोटरों की संख्या भी करीब यहां 2.5 लाख है. इसके अलावा दलित वोटरों की संख्या पौने दो लाख के आसपास है.
बीजेपी के इस दांव के खिलाफ फेल हुए थे अखिलेश
2019 के चुनाव में बीजेपी ने सोशल इंजीनयरिंग करते हुए गैर यादव ओबीसी उम्मीदवार उतारा था. बीजेपी की ये रणनीति सफल रही और यादव-मुस्लिम समीकरण के खिलाफ बाकी ओबीसी और सवर्ण जातियों ने मिलकर समाजवादी पार्टी गठबंधन के उम्मीदवार को हरा दिया. वो भी उस सियासी माहौल में जब एसपी और बीएसपी का गठबंधन था. इस बार समाजवादी पार्टी और बीएसपी अलग-अलग हैं.
अखिलेश ने बनाया कौन सा सियासी समीकरण
शिवपाल को चुनावी अखाड़े में उतारकर पार्टी की रणनीति यादव और मुस्लिम समाज को एकसाथ रखकर गैर यादव पिछड़े वोट बैंक में सेंध लगाने की है, क्योंकि माना जाता है कि शिवपाल यादव की सियासी पकड़ यादवों के साथ ही गैर यादव पिछड़े वोटरों में भी है. हालांकि ये कोशिश कितनी कारगर साबित होगी ये तो वक्त बताएगा फिलहाल अपनी अपनी जीत के लिए हर दल रणनीति बनाने में जुटा है.
ये भी पढ़ें- इकरा हसन कौन? लंदन से लौटी सपा कैंडिटेट के लिए कैसा है कैराना का सियासी खेल, जानें इस सीट पर कितने मुस्लिम वोटर