नई दिल्ली: छात्र राजनीति से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में एक अलग पहचान रखने वाले राजनेता का नाम शरद यादव है. बिहार की राजनीति में जब बात बड़े नाताओं की होती है तो यह मुकाम जिनको सबसे पहले हासिल होता है उनमें शरद यादव का नाम हैं. शरद यादव ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में अपना राजनीतिक परचम लहराया और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे. सात बार लोकसभा में पहुंचे. इस बार लोकसभा चुनाव में वह आरजेडी के प्रत्याशी हैं और मधेपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं. बिहार के यादव बहुल मधेपुरा संसदीय क्षेत्र में उभरे तीन यादवों के बीच इस बार मुकाबला है और इसलिए इस बार जातीय गणित के आकड़े किसी को ठीक से समझ नहीं आ रही है.


राजनीतिक सफर

1 जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में एक गांव में किसान परिवार में जन्म हुआ. पढ़ाई के समय से ही राजनीति में दिलचस्पी रही और 1971 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज, जबलपुर मध्यप्रदेश में छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. छात्र राजनीति के साथ वह पढ़ाई में भी अव्वल रहे और B.E. (सिविल) में गोल्ड मेडल जीता. ए


डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रेरित होकर राजनीति में कदम रखा. एक सक्रिय युवा नेता के तौर पर कई आंदोलनों में हिस्सा लिया और MISA के तहत 1969-70, 1972 और 1975 में हिरासत में लिए गए. मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने वाले में अहम भूमिका भी निभाई


साल 1974 में मध्य प्रदेश की जबलपुर सीट से चुनाव लड़कर शरद यादव पहली बार लोकसभा पहुंचे. इसके बाद साल 1977 में भी उन्होंने इसी सीट से लोकसभा चुनाव जीता. 1989 में उन्होंने यूपी के बदायूं सीट से लोकसभा का चुनाव जीता. इसके बाद शरद यादव ने बिहार का रुख किया. उन्होंने बिहार के मधेपुरा लोकसभा सीट से साल 1991, 1996, 1999 और 2009 में जीत दर्ज की.

बता दे कि आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद अब जो जगह एक वरिष्ठ नेता की पार्टी में खाली है उसको शरद यादव भर चुके हैं. इस चुनाव में अगर वहव मधेपुरा से जीतते हैं तो उनका कद पार्टी में और बढ़ेगा.


मधेपुरा लोकसभा सीट आरजेडी का गढ़


बता दें कि बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट आरजेडी का गढ़ मानी जाती है. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद स्वयं यहां से 1998 और 2004 में सांसद निर्वाचित हो चुके हैं. इनसे पहले 1989 में जनता दल के टिकट पर रमेंद्र यादव रवि और 1991 और 1996 में जनता दल के टिकट पर ही पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद सांसद निर्वाचित हुए. जनता दल का विघटन होने के बाद से औरजे़ी और जेडीयू मधेपुरा की राजनीति की दो धुरी बन गए. 1998 के चुनाव से मधेपुरा सीट पर आरजेडी और जेडीयू के बीच ही मुख्य मुकाबला होता आ रहा है. 1998 से 2014 के बीच हुए छह चुनावों में चार बार आरजेडी और दो बार डेजीयू के प्रत्याशी को जीत हासिल हुई है.


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