वाराणसी: पीएम नरेंद्र मोदी के नामांकन के लिए वाराणसी पहुंचने से पहले ही कांग्रेस ने अटकलों पर विराम लगा दिया है. चर्चा यह थी कि प्रियंका गांधी वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी. लेकिन अब कांग्रेस ने एक बार फिर अजय राय पर भरोसा जताया है. अजय राय 2014 के लोकसभा चुनावों में पीएम मोदी के खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार थे. अजय राय नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल के बाद तीसरे नंबर पर आए थे और उनकी जमानत जब्त हो गई थी. ऐसे में कांग्रेस का फैसला चौंकाने वाला है.

19 अक्टूबर 1969 को वाराणसी में जन्में अजय राय लगातार पांच बार विधायक रह चुके हैं. वर्ष 1996 में बीजेपी ज्वाइन करने के बाद से वे 2007 तक विधायक रहे. इसके बाद बीजेपी आलाकमान से मतभेद के चलते उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था. वर्ष 2009 में उन्होंने मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ सांसदी का चुनाव लड़ा और हार गए थे. इसके बाद यहां भी ज्यादा दिन नहीं रहे और निर्दलीय ही पिंडरा से उप-चुनाव जीतकर विधायक बने. बाद में उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली. अजय राय के बारे में कहा जाता है कि वे वह अपने बल पर चुनाव जीतते हैं और पार्टी को इसका लाभ होता है. लेकिन पिछले कुछ चुनावों में वे लगातार हार का सामना करते आए हैं. पूर्वांचल के भूमिहार समाज में उनकी अच्छी पैठ मानी जाती है. शायद यही सोचकर कांग्रेस ने उन पर एक बार फिर भरोसा जताया है.

पूर्वांचल के बाहुबली नेताओं में शुमार होता है अजय राय का नाम
अजय राय की मां का नाम पार्वती देवी राय और पिता का सुरेन्द्र राय है. अजय राय का परिवार मूलत: गाजीपुर जिले का रहने वाला है. अजय राय का नाम पूर्वांचल के बाहुबली नेताओं में शुमार होता है. अजय राय कभी माफिया बृजेश सिंह के करीबी माने जाते थे. वर्ष 1994 में उनके बड़े भाई अवधेश राय की हत्या कर दी गई थी. अवधेश राय की हत्या का इल्जाम पूर्वांचल के अन्य बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी पर लगा. मुखतार अंसारी और बृजेश सिंह की अदावत काफी पुरानी है. वर्ष 2104 में मुख्तार अंसारी ने घोसी से चुनाव लड़ा था और कांग्रेस ने उनका समर्थन किया था. उसके बदले मुख्तार अंसारी ने कांग्रेस को वाराणसी में समर्थन दिया था. इसके चलते भूमिहार समाज में यह संदेश चला गया कि अजय राय ने अपने भाई के हत्यारे से हाथ मिला लिया और इस समाज में उनकी लोकप्रियता पर असर भी पड़ा.

अजय राय पर हैं ये आरोप और मुकदमे

अजय राय पर बिहार के माफिया शहाबुद्दीन से भी आपराधिक सांठ-गांठ करने के भी आरोप हैं. वर्ष 2003 में बिहार के तत्कालीन डीजीपी एके ओझा ने एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें इन दोनों का नाम आया था. उस रिपोर्ट में कहा गया था कि अजय राय के पास शहाबुद्दीन के जरिए एके47 पहुंची थी. शहाबुद्दीन ने 1996 में कश्मीर से भेजी गई एके-47 खेप में से कुछ अपने पास मंगाईं थीं, जिसमें से एक अजय राय के पास पहुंची थी.

अजय राय पर वाराणसी के कैंट थाने में अपराध संख्या 350/89 आईपीसी की धारा 323, 504, 506 के तहत, थाना कैंट में ही अपराध संख्या 424 /91 आईपीसी की धारा 147,148,149, 307, 307 के तहत, चंदौली में 109/94 आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 307, 118/94, 109 A/96 के तहत वाराणसी के चेतगंज थाने में अपराध संख्या 169/04 आईपीसी धारा 147,148,149, 323, 452, 504, 506, 342, 332 के तहत और अपराध संख्या 237/06 आईपीसी धारा 147,148,149, 323, 504, 506, 307, 427, 436, 452 के तहत मामले दर्ज हैं.

वर्ष 2015 में 5 अक्टूबर को गोदौलिया चौराहे पर संतों पर हुए लाठीचार्ज के बाद अन्याय प्रतिकार यात्रा का आह्वान किया गया था. इस यात्रा के दौरान गोदौलिया चौराहे पर पुलिस और पब्लिक के बीच जमकर हुई झड़प ने हिंसा का रूप धारण कर लिया था. जिसके बाद वाराणसी में कर्फ्यू भी लगना पड़ा था. इस मामले में भी उन्हें आईपीसी की धारा 147, 148 और 149 के तहत गिरफ्तार किया गया था. बाद में उनपर रासुका लगा दी गई. लगभग एक साल जेल में रहने के बाद अजय राय रिहा हुए थे.

यह देखना दिलचस्प होगा कि वर्ष 2014 में महज 75,614 वोटों के साथ अपनी जमानत जब्त करा चुके अजय राय इस बार नरेंद्र मोदी को कितनी टक्कर दे पाते हैं. बीजेपी से अपने राजनितिक करियर की शुरुआत अपने नाम के अनुरूप एक अजेय योद्धा की तरह करने वाले और फिर लगातार हार का सामना करने वाले अजय राय इस चुनाव के साथ ही एक बार फिर अपना सबकुछ दांव पर लगा रहे हैं.

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