2019 के 19 मुद्दे | सीरीज-2: सत्तापक्ष के दावे या विपक्ष के वादे, अन्नदाता किसपर करे भरोसा?
Lok Sabha Elections 2019: लोकसभा चुनाव के प्रमुख मुद्दों में किसानों का मुद्दा अहम है. सत्तापक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी सहूलियत के अनुसार किसानों के मसले को हर एक चुनावी जनसभा में उठा रहे हैं.
2019 के 19 मुद्दे | सीरीज-1: बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह पिछले दिनों बिहार के पूर्णिया में एक चुनावी जनसभा को संबोधित कर रहे थे. पुराने अंदाज में राजनाथ अपनी बात रखने के साथ-साथ जनता से संवाद भी कर रहे थे. मोदी सरकार की योजनओं का लाभ मिला या नहीं? लोगों से पूछ रहे थे. इसी दौरान उन्होंने किसान सम्मान निधि योजना की जिक्र किया और किसानों से पूछा क्या आपको 2000 रुपये की किस्त मिली? पार्टी समर्थकों की भीड़ थी, शायद उन्हें उम्मीद हो कि हां में ही जवाब आएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भीड़ में से आवाज आई नहीं मिली. राजनाथ दांए-बाएं झांकने लगे और जल्द ही फायदा मिलने की बात कहने लगे.
दरअसल, मौजूदा लोकसभा चुनाव में किसान प्रमुख मुद्दों में से एक है. पक्ष और विपक्ष दोनों धड़ा अपनी-अपनी सहुलियत के अनुसार इस मुद्दे को उठा रहा है. इसकी बड़ी वजह 60 प्रतिशत आबादी का कृषि पर आधारित होना है. जो एक बड़ा वोट बैंक है. विपक्ष का आरोप है कि पिछले पांच सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में किसानों का फायदा तो दूर नुकसान ही हुआ है. सरकार ने किसानों को किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं दी. नोटबंदी तो किसानों पर आफत बनकर टूटी क्योंकि फसल बुवाई के सीजन में नकदी की किल्लत ने समस्याएं और बढ़ा दी.
दरअसल, 2014 के मई में मोदी सरकार का गठन हुआ. उसके ठीक बाद से ही किसानों को लेकर मोदी सरकार की छवि धूमिल होती चली गई. 2014 के साल में ही केंद्र सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए अध्यादेश ले आयी. बुरी हार से पस्त विपक्ष के लिए ये मु्ददा किसी संजीवनी से कम नहीं था. विपक्षी पार्टियां किसानों को लेकर सड़कों पर उतर आई. अंतत: सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा.
किसानों के प्रदर्शनों का 2014 में शुरू हुआ सिलसिला 2019 के चुनावी साल तक अलग-अलग मुद्दों पर चलता रहा. कभी स्वामिनाथन आयोग की सिफारिश लागू करने की मांग को लेकर सैकड़ों किलोमीटर तक चलकर किसान मुंबई आए तो कभी दिल्ली की सड़कों पर लाठियां खाई.
मध्य प्रदेश के मंदसौर में तो किसानों के प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया. पुलिस ने गोलियां बरसाई. इन्हीं प्रदर्शनों ने विपक्ष को बैठा-बिठाया एक बड़ा मुद्दा दिया और इसका फायदा उसे चुनावों में मिला. कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कर्जमाफी का वायदा किया और तीनों ही राज्यों में बीजेपी को शिकस्त दी. बीजेपी की हार के पीछे किसान एक बड़ा फैक्टर रहा. कांग्रेस ने सत्ता में आते ही कर्जमाफी की घोषणा कर दी. क्योंकि उसकी नजर लोकसभा चुनाव पर थी.
Lok Sabha Election 2019 : बीजेपी के मेनिफेस्टो में किसानों के लिए है कौन-कौन से वादे, जानिए
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हर चुनावी जनसभा में किसानों को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किये गये कामों की याद दिलाते हैं. साथ ही किसानों के लिए अलग बजट लाने और न्याय योजना को लागू करने की बात करते हैं. कांग्रेस ने दावा किया है कि उसकी सरकार बनी तो देश के 20 प्रतिशत गरीब परिवारों को 72,000 रुपये सालाना सीधे बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करेगी. साफ है कि कांग्रेस की नजर में छोटे किसान भी हैं. कांग्रेस ने किसानों के लिए अलग बजट और कर्ज ना चुका पाने को अपराध के दायरे से बाहर करने का वादा भी किया है. कांग्रेस के आलावा अन्य सभी विपक्षी क्षेत्रीय पार्टियां भी किसानों की बदहाली का मुद्दा जोर-शोर उठा रही है और उसके लिए नए-नए वायदें कर रही है.
विपक्ष के वायदों और दावों से मुकाबले के लिए मोदी सरकार के पास कामों का ब्योरा है. इसी साल पेश हुए अंतरिम बजट में मोदी सरकार ने किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की घोषणा की. इसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को 6000 रुपये सालाना सीधे खाते में भेजे जाने की योजना है. चुनाव के एलान से ठीक पहले किसानों को पहली किस्त मिल चुकी है. हालांकि इस योजना में भूमिहीन किसानों के लिए कोई प्रावधान नहीं है.
बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में और विस्तार करने का वादा किया है. पार्टी का वादा है कि वापस सरकार में आने पर ये योजना का दायरा सभी किसानों तक बढ़ाएंगे. यानि सिर्फ छोटे और सीमांत किसान ही नहीं, सभी किसानों को 6000 रुपये सालाना सीधे खाते में दिया जाएगा. इसके अलावा पार्टी ने 60 साल से अधिक उम्र के किसानों को पेंशन देने का भी वायदा किया है.
यही नहीं मोदी सरकार ने किसानों की नाराजगी को देखते हुए पिछले साल गन्ना किसानों को तुरंत भुगतान करने के लिए राहत पैकेज दिया. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को डेढ़ गुना करने की मंजूरी दी गई. पिछले साल अक्टूबर में केंद्र सरकार ने रबी फसलों पर (गेंहूं सहित सभी छह रबी की फसलों पर) न्यूनतम समर्थन मूल्य को 21 प्रतिश तक बढ़ाने का एलान किया.
एमएसपी बढ़ाए जाने के बावजूद भी किसानों में नाराजगी दिखी. किसान संगठन स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू करने की मांग करते रहे हैं. वहीं सरकार आयोग की रिपोर्ट लागू करने की बजाय 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करती रही है.
नीति आयोग की मार्च 2017 की रिपोर्ट के मुतबिक, अगर किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करनी है तो कृषि क्षेत्र का विकास 10.4 प्रतिशत की दर से करना होगा. इस वक्त कृषि विकास दर 2.9 प्रतिशत है. एक रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि सितंबर-अक्टूबर 2018 में खेती से होने वाली आमदनी 14 साल में सबसे कम दर्ज की गई है.
तमाम तरह के वायदों और दावों के बीच किसान वोट कर रहे हैं. सभी को 23 मई का इंतजार है. इसी तारीख को पता चलेगा कि किसानों ने मोदी सरकार पर भरोसा जताया है या विपक्ष के वायदों पर.