कोलकाता: देश में जब कभी भी भारतीय दर्शन, साहित्य और समाज सुधारक की बात छिड़ेगी, ईश्वरचंद्र विद्यासागर का नाम न सिर्फ प्रमुखता से लिया जाएगा, बल्कि बड़े ही सम्मान से याद किया जाएगा. ये उनके समाज सुधार का कमाल है कि जब महिलाएं न सिर्फ हाशिए पर थी, बल्कि समाज में बिना किसी सम्मान के जी रही थीं तब उन्होंने विधवा विवाह (पुनर्विवाह) पर लगी सामाजिक रोक को खत्म करने के लिए काम किया.


कहते हैं कि राजा राम मोहन राय के असली वारिस ईश्वरचंद्र विद्यासागर ही हैं, जिन्होंने समाज सुधार को निरंतर आगे बढ़ाया. इन दोनों समाज सुधारकों ने न सिर्फ हिंदू धर्म बल्कि मानवता का कल्याण किया. उनके सुधार कार्य की बदौलत समाज बड़े परिवर्तन का साक्षी बना. राजा राम मोहन राय ने जहां सती प्रथा का अंत किया तो वहीं ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह (पुनर्विवाह) के लिए काफी काम किया. यही कारण है कि समाज में इनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है.


इस वक्त लोकसभा चुनाव में सातवें चरण के मतदान से ठीक पहले उनका नाम चर्चा में आ गया है, लेकिन उनकी चर्चा उनके कार्यों को गिनाने को लेकर नहीं, बल्कि देश के महापुरुष के साथ किए गए खिलवाड़ को लेकर है, जब सियासी लड़ाई के बीच उनकी मूर्ति को क्षति पहुंचाई गई.


हुआ यूं कि मंगलवार को कोलकाता में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का रोड शो चल रहा था. इस दौरान हिंसक घटनाएं हुई. घटना के दौरान ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़ दी गई. मूर्ति तोड़ने के लिए दोनों दलों के नेता एक दूसरे के कार्यकर्ताओं पर आरोप लगा रहे हैं. इस घटना के बाद ये मुद्दा राजनीतिक तौर पर काफी गर्म हो गया है. सभी सियासी पार्टियां अपनी-अपनी रोटी सेक रही हैं और जोरदार बयानबाजी का दौर चल पड़ा है.


ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को लेकर दोनों दलों के नेता आमने सामने आ गए हैं. ऐसे में यह जानना काफी जरूरी हो जाता है कि आखिर ईश्वरचंद्र विद्यासागर कौन थे जिन्हें लेकर हंगामा मच गया है.


कौन थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर


- ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1820 को कोलकाता में हुआ था.


- इनके बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था.


- शुरुआती शिक्षा गांव के स्कूल में हुई थी.


- पढ़ाई में अव्वल होने के कारण उन्हें कई संस्थानों से छात्रवृत्तियां मिली.


- बड़े समाज सेवी के तौर पर उन्हें प्रसिद्धी मिली.


- महिला शिक्षा और विधवा विवाह के लिए ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने जमकर आवाज उठाई.


- ईश्वरचंद्र विद्यासागर के कोशिशों के कारण ही साल 1856 में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ.


- अपने इकलौते बेटे का विवाह एक विधवा से ही किया.


- नारी शिक्षा के लिए भी इन्होंने जमकर कदम उठाए. कुल 35 स्कूल भी खुलवाए.


- इन्हें सुधारक के रूप में राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता है.


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