गोरखपुर: लोकसभा चुनाव में गोरखपुर सीट पर टिकट को लेकर संशय अभी भी बना हुआ है. माना जा रहा है कि बीजेपी पिछड़ी जाति या फिर सवर्ण जाति के उम्मीदवार को मैदान में खड़ा कर सकती है. ऐसा कहा जा रहा है कि बीजेपी ने पिछड़ी जाति के वोटरों को साध लिया है. यही वजह है कि लगातार चल रहे नाम के बीच बीजेपी शीर्ष नेतृत्व की ओर से पिछड़ी जाति या फिर सवर्ण जाति के उम्मीदवार को गोरखपुर सीट से मैदान में उतारा जा सकता है. क्योंकि बीजेपी को अब पिछड़ी जाति यानी निषाद और सैंथवार के साथ अन्य वोटरों को सहेजने की जरूरत नहीं है. इस सीट पर हार-जीत प्रतिष्ठा का विषय होने के कारण बीजेपी सभी पर मंथन कर निष्कर्ष निकालने में जुटी है.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले महत्वपूर्ण माने जाने वाली योगी आदित्यनाथ और मंदिर की माने जाने वाली सीट पर लड़ाई तेज हो गई है. अभी तक माना जा रहा था कि बीजेपी इस सीट पर पिछड़ी जाति के किसी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतार सकती है. बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष डा. धर्मेन्द्र सिंह उसके बाद सपा से बीजेपी में आए अमरेन्द्र निषाद और फिर दिल्ली में बीजेपी ज्वाइन करने वाले सपा के जिताऊ सांसद प्रवीण निषाद के नाम पर चर्चा शुरू हो गई. लेकिन, बीजेपी शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी से ये साफ हो गया, कि फिलहाल अभी तस्वीर साफ नहीं है.
इसके पीछे का कारण भी साफ रहा है. उप-चुनाव में हार का कारण बीजेपी सिर्फ निषाद वोट बैंक को नहीं मानती है. क्योंकि इसके अलावा पिछड़ी जाति के अन्य वोटर भी भारी संख्या में हैं. इसके अलावा सपा और बसपा के खाते के वोट भी एक कारण रहे हैं. उप-चुनाव में हार के कारण बीजेपी चुनाव को हल्के में लेना और बीजेपी के सवर्ण वोटरों का मताधिकार के प्रयोग के लिए घरों से बाहर नहीं निकलना भी मानती है. निषाद वोट बैंक हार में एक फैक्टर ही हो सकते हैं. लेकिन, हार और जीत तो सवर्ण वोटों से ही तय होनी है.
ऐसे में जब पिपराइच के विधायक महेन्द्र पाल सिंह का नाम लोकसभा चुनाव में गोरखपुर सीट पर टिकट पाने वालों में सबसे ऊपर चर्चा में आया, तो निषाद फैक्टर काफी पीछे छूट गया. इसकी एक वजह ये भी है कि सपा में रहे अमरेन्द्र निषाद का पूर्व विधायक मां राजमती निषाद के साथ बीजेपी में आ जाना और उसके बाद गोरखपुर के सपा सांसद प्रवीण निषाद का भी बीजेपी ज्वाइन कर लेना. इससे दोनों के निषाद वोट बैंक बीजेपी के खाते में चले गए हैं. हालांकि सपा से प्रत्याशी बनाए गए, पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद भी निषाद वोट बैंक के सहारे कड़ी टक्कर देने के लिए खड़े हैं.
लेकिन, फिर भी बीजेपी मजबूत स्थिति में दिख रही है. क्योंकि निषाद पार्टी भी बीजेपी के साथ खड़ी हो गई हैं. निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय निषाद ने बीजेपी के साथ होने का ऐलान कर चुके हैं. डा. संजय निषाद को ये उम्मीद थी कि गोरखपुर सीट से उनके बेटे प्रवीण निषाद को शीर्ष नेतृत्व टिकट दे देगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस बीच बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष डा. धर्मेंद्र सिंह, उपचुनाव के प्रत्याशी रहे उपेंद्र दत्त शुक्ला समेत कई और नामों की चर्चा सोशल मीडिया पर होती रही.
इसके बाद जब सैंथवार बिरादरी के पिपराइच से विधायक महेन्द्र पाल सिंह का नाम गोरखपुर से टिकट पाने वालों में सबसे ऊपर चर्चा में आया, तो लोग हैरत में पड़ गए. क्योंकि गोरखपुर में सैंथवार बिरादरी के डेढ़ लाख वोटर हैं. ऐसे में ये कयास भी लगाए जा रहे हैं कि सैंथवार समाज के उम्मीदवार का नाम चर्चा में लाकर बीजेपी शीर्ष नेतृत्व स्थानीय पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ जनता का भी मन टटोलने की कोशिश कर रही है. क्योंकि प्रवीण निषाद के नाम की चर्चा होने पर बीजेपी में अंदरूनी विरोध की आशंकाओं को बल मिलता दिख रहा था.
ऐसे में सब कुछ ठीक-ठाक रहा, तो पिपराइच के विधायक महेन्द्र पाल सिंह के नाम पर मुहर लग सकती है. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ, तो सवर्ण बिरादरी के उम्मीदवार को मैदान में उतारकर बीजेपी शीर्ष नेतृत्व फिर पैंतरा बदल सकता है. क्योंकि सवर्ण वोटरों को नाराज कर योगी आदित्यनाथ लगातार जिस सीट पर पांच बार सांसद रहे उस सीट को वापस नहीं पा सकते हैं, जो सीट उप-चुनाव में वो सीट उनके हाथ से निकल गई. समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी रहे प्रवीण निषाद ने 22,500 वोटों के अंतर से बीजेपी प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल को करारी शिकस्त देकर बड़ा उलटफेर किया था.
अब देखना ये हैं कि बीजेपी शीर्ष नेतृत्व की गोरखपुर सीट पर उम्मीदवार को लेकर जोर-आजमाइश कब पूरी होती है. क्योंकि ये सीट बीजेपी ही नहीं सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए भी प्रतिष्ठा का विषय बन गई है. इस सीट पर हार-जीत का असर अन्य सीटों पर भी दिख सकता है. ऐसे में बीजेपी के लिए इस सीट को जीतना कितना महत्वपूर्ण है, ये आसानी से समझा जा सकता है.
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