2019 के 19 मुद्दे | सीरीज-4: चुनावी मौसम है और हर दिन राजनीतिक दलों की दर्जनों रैलियां हो रही है. इन रैलियों में उठने वाले मुद्दों में दो मुद्दे कॉमन हैं, वह है रोजगार और स्वरोजगार. दरअसल, नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद रोजगार संबंधी कई ऐसे आंकड़े आए हैं जिसने विपक्ष को मोदी सरकार को घेरने का मौका दिया है. ज्यादातर रिपोर्ट में यह दावा है कि बीजेपी की सरकार में रोजगार का नया अवसर पैदा होना तो दूर, लोगों की असंगठित क्षेत्रों में नौकरियां गई और बेरोजगारी बढ़ी. जबकि मोदी सरकार ने इसकी सफाई में रोजगार के आंकड़े तो नहीं दिये. हां, यह जरूर है कि सरकार ने स्वरोजगार बढ़ने संबंधी मुद्रा लोन के आंकड़े दिये. विपक्ष का सीधा सवाल है कि 2014 में मुक्कमल रोजगार देने का वायदा था, न की स्वरोजगार का.


बात आंकड़ों की
1. इसी साल फरवरी में चुनावी सुगबुगाहट शुरू होने के साथ ही भारत सरकार की संस्था राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) से जुड़े विभाग की एक रिपोर्ट लीक हुई. इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि इस समय बेरोजगारी की दर 1970 के दशक के बाद से सबसे ज्यादा है. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के लीक आंकड़े के मुताबिक साल 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत थी. यानि पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा.


एनएसएसओ बेरोजगारी का आकलन करने सहित देश में कई बड़े सर्वेक्षण करता है. रिपोर्ट लीक होने से ठीक पहले एनएसएसओ के दो शीर्ष अधिकारियों ने पद से यह बात कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि सरकार बेरोजगारी के आंकड़े जारी करने से रोक रही है.


इस आंकड़े के बाद बेरोजगारी पर नई बहस छिड़ गई. विपक्ष को बड़ा मौका मिला. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तुरंत ट्वीट कर कहा कि मोदी सरकार ने एक साल में दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया गया था. पांच साल बाद उनकी रोजगार से जुड़ी लीक हुई रिपोर्ट एक राष्ट्रीय त्रासदी की तरह सामने आती है.


2. एनएसएसओ की रिपोर्ट से सरकार दो चार हो ही रही थी कि बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट (सीएसई) ने इसी महीने स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2019 रिपोर्ट जारी की. इसमें दावा किया गया है कि साल 2016 से 2018 के बीच करीब 50 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. नौकरियां जाने की वजहों में नोटबंदी या जीएसटी का उल्लेख तो नहीं है लेकिन इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि नोटबंदी एक बड़ा कारक हो सकता है.


3. इसी साल जनवरी में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (सीएमआइई) ने बेरोजगारी पर रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर, 2018 में बेरोजगारी दर बीते 27 महीने में सबसे ज्यादा रही और 7.38 फीसद तक जा पहुंची.



सीएमआइई की रिपोर्ट में ही कहा गया कि साल 2013-14 में 1443 कंपनियों ने 67 लाख रोजगार दिए, जबकि 2016-17 में 3441 कंपनियों ने 84 लाख रोजगार दिए. अब दोनों ही आंकड़ों को देखें तो कंपनियां दोगुने रफ्तार से बढ़ी लेकिन रोजगार में कोई खास इजाफा नहीं हुआ.


सीएमआइई के महेश व्यास के मुताबिक, ''2017 और 2018 की तुलना में एक साल के भीतर 1 करोड़ दस लाख लोगों के हाथों से काम चला गया.'' एसएससी, रेलवे और पुलिसिया विभाग के लिए तैयारी करने वाले छात्र भी समय-समय पर रोजगार को लेकर प्रदर्शन करते रहे हैं.


इन सभी आंकड़ों और दावों से अलग सरकार का कहना है कि हमने स्वरोजगार की बात कही थी और हमने करोड़ों लोगों को सक्षम बनाया है. पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जब एबीपी ने रोजगार के आंकड़ों पर सवाल किया तो उन्होंने कहा, ''मुद्रा योजना के अंदर 17 करोड़ लोगों को बिना गारंटी लोन मिला. उसमें से चार करोड़ 25 लाख लोग ऐसे हैं जिनको पहली बार लोन मिला है. इसका मतलब है कि उस पैसों से उसने कारोबार शुरू किया है. उसने कारोबार शुरू किया है तो किसी एक दो लोगों को और उसने काम दिया है. आप इसको रोजगार मानेंगे कि नहीं मानेंगे?''


2019 के 19 मुद्दे | सीरीज-1: राफेल डील- कांग्रेस के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा और मोदी के गले की फांस


सरकार का यह भी कहना है कि विकास दर इस बात का प्रमाण है कि लोगों को रोजगार मिला है. यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि मनमोहन सिंह की सरकार के समय जब विकास दर उच्चतम स्तर पर था तब बीजेपी ने इसे जॉबलेस ग्रोथ का नाम दिया था. अब कांग्रेस जॉबलेस ग्रोथ की बात कह रही है. पार्टी का यह भी कहना है कि मोदी सरकार ने समय रहते रोजगार के आंकड़ों को जारी क्यों नहीं किया? वह स्टार्टअप इंडिया या स्किल इंडिया की बात क्यों नहीं कर रही?



कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियों ने इस चुनाव में रोजगार को एक बड़ा मुद्दा बनाया है. राहुल गांधी जिस भी सभा में जा रहे हैं रोजगार को लेकर पार्टी मेनिफेस्टो में किये गए वायदों को गिना रहे हैं. उनका साथ प्रियंका गांधी भी दे रही हैं. पिछले दिनों ही प्रियंका ने रायबरेली में कहा कि जहां जाती हूं, हर चौराहे पर युवा कहते हैं रोजगार नहीं मिला. प्रधानमंत्री पूरी तरह विफल हैं. विपक्ष की कोशिश है कि बेरोजगारी का मुद्दा चुनाव के केंद्र में आए.


2019 के 19 मुद्दे | सीरीज-2: सत्तापक्ष के दावे या विपक्ष के वादे, अन्नदाता किसपर करे भरोसा?


पार्टी का वादा है कि सरकार में आए तो मार्च 2020 तक खाली पड़े 22 लाख सरकारी पदों को भरेंगे. साथ ही 10 लाख युवाओं को ग्राम पंचायत में रोजगार दिलाने के लिए राज्यों से कहेंगे. इसके लिए केंद्रीय फंड जारी करने में शर्तें रखी जाएगी. यही नहीं कोई भी शख्स अगर बिजनेस शुरू करना चाहता है तो उसे आसानी से लोन मुहैया कराया जाएगा और उसे कंपनी खोलने के लिए तीन साल तक किसी भी तरह की अनुमति नहीं लेनी होगी.


वहीं बीजेपी ने घोषणापत्र में स्वरोजगार की बात की है. पार्टी ने घोषणापत्र में कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े 22 बड़े सेक्टरों में रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा मदद देंगे. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत अभी 17 करोड़ से ज्यादा उद्यमियों को कर्ज मुहैया कराया जा चुका है. इसके लाभार्थियों की संख्या 30 करोड़ तक से जाने के लिए कदम उठाएंगे.


क्यों अहम है मुद्दा?
रोजगार-स्वरोजगार की बात चुनाव में इसलिए अहम हो गया है क्योंकि भारत की जनसंख्या के 65 प्रतिशत लोग 35 साल से कम उम्र के हैं. यानी 65 प्रतिशत आबादी काम करने के योग्य है और इस बड़े तबके पर सभी पार्टियों की नजर है.


2019 के 19 मुद्दे | सीरीज-3: सभी मुद्दों को पीछे छोड़ बीजेपी के लिए अब राष्ट्रवाद सबसे बड़ा मुद्दा है


तीन चरणों में 301 लोकसभा सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं और चार चरणों के चुनाव बाकी हैं. अब 23 मई को देखने वाली बात होगी कि पक्ष-विपक्ष के रोजगार-स्वरोजगार के दावों-वायदों में से युवा देश ने किसे अपना भविष्य चुना है.