नई दिल्ली: सियासी गलियारे में कहावत है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है. ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए यूपी बेहतर महत्वपूर्ण राज्य है.पर इस बार यूपी फतह करना सभी दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. पिछली बार की तुलना में इस बार पूरा विपक्ष बदला हुआ है. यूपी में इस बार चुनाव बीजेपी बनाम विपक्ष होने वाला है. जहां सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन कर बीजेपी से लोहा लेने को तैयार है तो वहीं कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी वाड्रा ने कमान संभाली है.


चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया है. उत्तर प्रदेश की 80 संसदीय सीटों पर मतदान सात चरणों में होगा, जिसकी शुरुआत 11 अप्रैल को पहले चरण से होगी. जानकारी के मुताबिक 11 और 18 अप्रैल को क्रमश: पहले और दूसरे चरण में आठ-आठ सीटों पर मतदान होगा.


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23 अप्रैल को होने वाले तीसरे चरण में 10 सीटों पर, 29 अप्रैल को होने वाले चौथे चरण में 13 सीटों पर, छह मई को होने वाले पांचवे चरण में 14 सीटों पर और 12 मई को होने वाले छठे चरण में 14 सीटों पर मतदान होगा. बाकी बची 13 सीटों पर 19 मई को आखिरी चरण में मतदान होगा.


सभी 80 सीटों पर मतगणना कुल 543 सीटों के साथ 23 मई को होगी.


2014 में क्या था सीटों का हाल


आपको बता दें कि यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर में यूपी में एनडीए को बंपर जीत मिली थी. एनडीए को 73 सीटें मिली थीं. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पास 16वीं लोकसभा में 71 सीटें हैं जबकि उसकी सहयोगी अपना दल (एस) के हिस्से में दो सीटें हैं. सपा को 5 सीटें मिली थीं और कांग्रेस सिर्फ 2 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. 2014 के चुनावों में बहुजन समाज पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई थी. बसपा का वर्तमान लोकसभा में कोई प्रतिनिधि नहीं है.


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क्या कहता है जातिय समीकरण
लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि सत्ता किसके हाथ आएगी. एक अनुमान के मुताबिक यूपी में जातियों की संख्या पर नज़र डालें तो राज्य में सबसे ज्यादा 27 फीसद ओबीसी वोटर हैं. इनमें अकेले यादव 9 फीसद हैं. दलित वोटरों की संख्या 21 फीसद और मुस्लिम की 19 फीसद है. सवर्णों के कुल वोट 24 फीसद हैं, जिनमें ब्राह्मण 9 फीसद और राजपूत 7 फीसद हैं.