नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है. इस बार चुनाव सात चरणों में होने हैं. यूपी पर फतह पाने के लिए पार्टियों ने सारी ताकत झोंक दी है पर किसी भी पार्टी के लिए यूपी का राह आसान साबित नहीं होगी. इसका कारण है इन क्षेत्रों में रहने वाले उन मतदाताओं की समस्याएं जिनका अब तक कोई स्थाई हल नहीं निकल पाया है.


पहले चरण के चुनाव में 11 अप्रैल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों यानी सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर सीटों पर मतदान होने हैं तो आइए जानते हैं कि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की मुख्य समस्या और मुद्दे क्या हैं.


सबसे पहले तो बता दें कि इन क्षेत्रों में सुशासन, विकास, किसान संकट, कानून-व्यवस्था, लचर स्वास्थय सेवाएं और बिजली मुख्य समस्या रही है. ऐसा नहीं है कि इन पर काम नहीं हुआ है पर शायद जितना हुआ वो नाकाफी है. ऐसा लोगों का कहना है.


सहारनपुर- सहारनपुर चुनाव के हिसाब से सबसे अहम सीट है. सहारनपुर की प्रमुख समस्या बिगड़ी यातायात व्यवस्था है. लोगों को जाम से हर रोज दो चार होना पड़ता है. छोटी सी दूरी तय करने में जरूरत से ज्यादा समय लगता है. दूसरी समस्या रोजगार की है जिसे लेकर यहां ज्यादा अच्छे विकल्प उपलब्ध नहीं हैं. लोगों की मांग है कि उन्हें ऐसा प्रतिनिधि मिले जो उन्हें बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाएं, रोजगार के अवसर मुहैया करा सके. क्षेत्र का विकास कर सके.यहां से कांग्रेस ने इमरान मसूद पर दांव लगाया है. बीजेपी ने राघव लखनपाल और गठबंधन के उम्मीदवार हाजी फजलुर्रहमान हैं.


कैराना- कैराना में रहने वाली आबादी का एक बड़ा तबका खेती पर अपना जीवन बसर करता है. यहां मल्लाह समुदाय के लोग अधिक संख्या में हैं जो फसलें और सब्जियां उगाते हैं. कभी लोगों के लिए जीवनदायनी रही यमुना नदी अब दिन ब दिन सिकुड़ती जा रही है जिससे पानी का संकट पैदा होने लगा है. यही कारण है कि लोग यहां से पलायन कर रहे हैं. लोगों के पास जीविका के साधन कम पड़ने लगे हैं. व्यापारियों को अपना व्यापार बंद करना पड़ा. बेराजगारी, गरीबी के साथ पानी की कमी यहां की बड़ी समस्या है. बता दें कि कैराना में एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन ने तबस्सुम हसन को उम्मीदवार बनाया हैं. वहीं, बीजेपी ने प्रदीप चौधरी और कांग्रेस ने हरेंद्र मलिक पर दांव खेला है.


मुजफ्फरनगर- ये उत्तर प्रदेश का वह जिला जो अपने गन्ने का उन्नत खेती और गुड़ की मिठास के लिए जाना जाता है. मुजफ्फरनगर में 40 फीसदी लोगों की जाविका खेती पर निर्भर है बाकी शहरी आबादी अन्य तरीकों से अपनी जीविका चलाती है. पर अब वहां किसानों के सामने रोजी रोटी संकट पैदा हो गया है. नोटबंदी ने उनकी कमर तोड़ दी है. ऐसे में लोग किसी ऐसे को अपना नेता बनाना चाहते हैं जो उन्हें इस परेशानी से बाहर निकाल सके. मुजफ्फरनगर में इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है क्योंकि टक्कर दो दिग्गज जाट नेताओं के बीच है. संजीव बलियान की भिड़त यहां राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष अजीत सिंह से हैं. अजित सिंह ने अपनी पारंपरिक सीट बागपत छोड़कर इस बार बीएसपी-एसपी और आरएलडी गठबंधन की ओर से मुजफ्फरनगर सीट को चुना है.


बागपत- बागपत की सबसे बड़ी समस्या सूखे की है. इसके अलावा ये इलाका नाकाफी स्वास्थ्य सुविधाओं, स्वच्छता और बिजली की कमी से जूझ रहा है. शहर में फैली गंदगी लोगों की जीना मुहाल कर रही है. गरीबी और बेरोजगारी से भी लोगों के माथे पर चिंता की लकीरे हैं. शहर के लोग बदलाव की आस लगाए बैठे हैं. बता दें कि यहां मुकाबला बीजेपी के सत्यपाल सिंह और समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन के उम्मीदवार जयंत चौधरी के बीच है.


बिजनौर: इस लोकसभा क्षेत्र में अरसे से समस्याओं के अंबार हैं. मानसून में बाढ़, बरसाती नदियों का कहर, लचर स्वास्थ्य सेवाएं, बेहतर शिक्षा व्यवस्था यहां की मुख्य समस्या रही है. पर यहां के लोगों ने हिम्मत नहीं हारी है. वो एक बार फिर से पूरे उत्साह के साथ वोट देने को तैयार हैं. यहां से बीजेपी ने कुंवर भारतेंद्र सिंह गठबंधन ने मलूक नागर (बीएसपी) और कांग्रेस ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को टिकट दिया है.


मेरठ- मेरठ में लचर कानून व्यवस्था हमेशा से सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. हर चुनाव में हर पार्टी और उसके उम्मीदवार इसे ठीक करने का आश्वासन देते हैं पर आजतक इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं हो पाया है. आलम ये है कि इस क्राइम सिटि के नाम से भी जाना जाने लगा है. मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट पर 20 से 25 लाख वैश्य वोटर हैं. ठाकुर 60 हजार, ब्राह्मण डेढ़ लाख, जाट एक लाख, गुर्जर 90 हजार, मुस्लिम साढ़े पांच लाख, दलित तीन लाख, पंजाबी 50 हजार, पिछड़े व अन्य करीब चार लाख वोटर हैं. इस सीट पर बीजेपी को जीत की हैट्रिक बचाए रखने की चुनौती है तो सपा-बसपा गठबंधन को भी अपनी साख बचानी है. बीजेपी ने सांसद राजेंद्र अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया गया है, जबकि सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार हाजी याकूब कुरैशी हैं. कांग्रेस ने बाबू बनारसी दास के बेटे हरेंद्र अग्रवाल, शिवपाल की पार्टी प्रसपा ने नासिर अली और शिवसेना ने आर.पी. अग्रवाल पर भरोसा जताया है.


गाजियाबाद- दिल्ली-एनसी आर से सटे गाजियाबाद में प्रदूषण, जाम, गंदगी, स्वास्थ सेवाएं और लचर शिक्षा व्यवस्था मुख्य समस्या के रूप में सामने आई है. लोगों को सबसे ज्यादा परेशाना खराब सड़कों और यातायात व्यवस्था है. लोग हर बाक इस आस में मतदान करते हैं कि कोई तो ऐसा होगा जो इन समस्याओं से उन्हें बाहर निकालेगा. लोनी, मुरादनगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद और धौलाना विधानसभा क्षेत्रों तक फैले इस निर्वाचन क्षेत्र में 27 लाख मतदाता हैं. साल 2014 में यहां 23 लाख मतदाता थे जब भारतीय जनता पार्टी के वी के सिंह ने ''मोदी लहर'' में अच्छे खासे बहुमत से जीत दर्ज की थी. इस बार वीके सिंह का मुकाबला कांग्रेस की डॉली शर्मा और समाजवादी पार्टी के सुरेश बंसल से होगा.


गौतमबुद्ध नगर- गौतमबुद्ध नगर सीट भी वोटों के लिहाज से काफी अहम है. दिल्ली एनसीआर के मुख्य क्षेत्रों में आऩे वाले इस इलाके में प्रदूषण, जाम, यातायात, कानून व्यवस्था बड़ी चुनौती है. जो काफी समय से जस की तस बनी हुई है अब तक इसका कोई स्थाई समाधान नहीं निकल पाया है. इसके अलावा लगातार बढ़ती स्कूल फीस भी यहां का मुख्य मुद्दा है जो कुछ को छोड़कर लगभग सभी तबकों को प्रभावित करता है. गौतमबुद्ध नगर से बीजेपी के महेश शर्मा गठबंधन के सतबीर नागर (बीएसपी) और कांग्रेस के अरविंद सिंह चौहान ताल ठोक रहे हैं.



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