नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट के साथ-साथ केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ेंगे. कांग्रेस इसे बड़ी रणनीति के तौर पर देख रही है. पीएम मोदी के खिलाफ गोलबंदी में कई मौकों पर कांग्रेस के साथ रही लेफ्ट पार्टियों ने राहुल के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रकाश करात ने कहा, ''उनकी मंशा अब केरल में वामदलों के खिलाफ लड़ने की है. यह बीजेपी से लड़ने की कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के उलट है क्योंकि केरल में एलडीएफ मुख्य ताकत है जो बीजेपी से लड़ रहा है.”


वहीं बीजेपी ने इसे हार का डर बताया है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, “कांग्रेस की वोटबैंक की राजनीति देश की सुरक्षा से खिलवाड़ पर काम करती है. इसी का नतीजा है कि राहुल गांधी ने अमेठी छोड़ दी और केरल की तरफ भाग गए क्योंकि वह जानते हैं कि मतदाता इस बार अमेठी में उनसे हिसाब मांगेंगे.” बीजेपी ने अमेठी सीट से स्मृति ईरानी को उम्मीदवार बनाया है.


शाह के इस बयान के बाद कांग्रेस ने बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव की याद दिलाई. इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के वाराणसी और गुजरात के वडोदरा सीट से चुनाव लड़े थे. मोदी ने दोनों सीटों पर जीत दर्ज की. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “बीजेपी इस सवाल का जवाब क्यों नहीं देती कि मोदीजी ने गुजरात क्यों छोड़ा और वाराणसी क्यों गए. क्या इसका यह मतलब है कि गुजरात में उनकी हालत खराब थी. इस तरह की अपरिपक्व चीजों पर चर्चा करने के बजाए उन्हें प्रमुख राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए. भाजपा इतनी डरी हुई क्यों है.”


दरअसल, नेताओं से दो जगहों से चुनाव लड़ने की पुरानी रणनीति रही है. इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, सोनिया गांधी, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, लालू प्रसाद यादव ने भी दो-दो जगहों से चुनाव लड़कर मतदाताओं और क्षेत्रों को साधा है. जनप्रतिनिधित्व ( संशोधन) अधिनियम के अनुच्छेद 33 के तहत कोई भी नेता दो जगहों से चुनाव लड़ने के लिए योग्य हैं.


क्या है कांग्रेस की रणनीति?
केरल से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा कि राहुल गांधी ने प्रदेश इकाई के अनुरोध के बाद वायनाड से लड़ने पर सहमति जताई है. इस फैसले को कांग्रेस की तरफ से दक्षिण भारत में पार्टी के जनाधार को मजबूत करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है, जहां लोकसभा की करीब 130 सीटें हैं. जिस वायनाड सीट से राहुल गांधी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया है यह जिला तीन राज्यों (केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक) की सीमा को छूता है. केरल में 20, तमिलनाडु में 39 और कर्नाटक में 28 सीटें हैं.


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इन तीन राज्यों के अलावा कांग्रेस की नजर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पुडुचेरी पर भी है. आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25, तेलंगाना में 17 और पुडुचेरी में एक सीट है. इन कुल 6 राज्यों में बीजेपी केवल कर्नाटक में मजबूत है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कर्नाटक की 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं कांग्रेस ने 9 और जेडीएस ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस को इससे फायदे की उम्मीद है.


दक्षिण के अन्य पांच राज्यों की कुल सीटों की बात करें तो यहां बीजेपी मोदी लहर के बावजूद दहाई अंक में भी नहीं पहुंच पाई. यही वजह है कि कांग्रेस की नजर दक्षिण भारत पर है. तमिलनाडु में बीजेपी ने सत्तारूढ़ एआईएडीएमके के साथ गठबंधन किया है, बीजेपी पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 2014 के चुनाव में तमिलनाडु में एआईएडीएमके ने 37, बीजेपी ने एक सीट पर जीत दर्ज की. जे जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके लगातार कमजोर हुई है. वहीं कांग्रेस ने डीएमके के साथ गठबंधन किया है. कई सर्वे में डीएमके और कांग्रेस की स्थिति मजबूत दिख रही है.


तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और केरल में छोटी-छोटी पार्टियों के बदौलत बीजेपी चुनावी जमीन तैयार कर रही है. केरल में 2014 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई और सीपीआईएम ने कुल छह, कांग्रेस ने आठ, मुस्लिम लीग ने 2 और अन्य ने चार सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने 13, वामदलों ने पांच और अन्य ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी.


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आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी और तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस सत्ता में है. दोनों ही राज्यों में टीडीपी और टीआरएस का मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस से है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बंटवारे के दौरान हुए चुनाव में कांग्रेस ने दो, टीडीपी ने 16, वाईएसआर कांग्रेस ने 9, टीआरएस ने 11, बीजेपी ने तीन और एआईएमआईएम ने एक सीट पर जीत दर्ज की. 2014 के चुनाव में बीजेपी टीडीपी के साथ थी. कांग्रेस को दोनों ही राज्यों में सीट बढ़ने की उम्मीद है. यही नहीं टीडीपी और कांग्रेस चुनाव बाद गठबंधन को लेकर भी आश्वस्त है.


राहुल गांधी ने वायनाड सीट ही क्यों चुना?
2009 के लोकसभा चुनाव से पहले वायनाड सीट वजूद में आई. 2009 के चुनाव में कांग्रेस नेता एमआई शानावास ने 1.50 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की. वहीं 2014 के चुनाव में यह अंतर घटा और कांग्रेस उम्मीदवार ने 20, 870 वोटों से जीत दर्ज की. कांग्रेस का मानना है कि वामदल कमजोर हुई है. ऐसे में बड़े नेता के चुनाव लड़ने से जीत हासिल करने में मदद मिलेगी.


वायनाड सीट इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां हिंदू आबादी 49.7 प्रतिशत है. ईसाई और इस्लाम को मानने वालों की आबादी भी करीब-करीब इतनी ही है. यहां ईसाई 21.5 और मुस्लिम 28.5 प्रतिशत हैं.


गांधी परिवार का दक्षिण में दांव
1978 में इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी. उसके बाद 1980 में उन्होंने आंध्र प्रदेश के मेडक और रायबरेली से जीत दर्ज की. और कांग्रेस सत्ता में लौटी. 1999 में सोनिया गांधी ने कर्नाटक के बेल्लारी और अमेठी सीट से जीत दर्ज की. बेल्लारी में उन्होंने सुषमा स्वराज को हराया था.


क्या राहुल गांधी को है हार का डर?
बीजेपी का दावा है कि राहुल गांधी को अमेठी में हार का डर सता रहा है. दरअसल, अमेठी में 2014 के चुनाव में राहुल गांधी को कुल 4,08,651 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर स्मृति ईरानी रहीं थी और उन्हें 3,00,748 वोट मिले. 2009 की बात करें तो राहुल गांधी को 4,64,195 वोट मिले थे. बहुजन समाज पार्टी के आशीष शुक्ला को 93,997 मिले थे. इन आंकड़ों पर गौर करें तो 2009 में राहुल गांधी अधिक अंतर से जीते 2014 में जीत का अंतर घट गया.


अब देखने वाली बात होगी कि इस चुनाव में जीत या हार का अंतर क्या रहता है? अमेठी से बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी लगातार दौरे कर रही हैं. यह भी दिलचस्प है कि अमेठी लोकसभा सीट पर अब तक 16 आम चुनाव और 2 उपचुनाव हुए हैं. इनमें से कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की है.