Amitabh Bacchan Election Story: भारत के आजाद होने के साथ ही देश में पहली बार साल 1951-52 में लोकसभा चुनाव कराए गए थे. तब से लेकर अब तक चुनाव में प्रचार-प्रसार, वोटिंग और मतगणना से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जो हर चुनाव के साथ लोगों के जहन में आ जाते हैं. ऐसा ही एक चुनावी किस्सा 1984 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा है, जब मतपत्रों पर महिलाओं ने लिपिस्टिक की छाप छोड़ी थी.
सदी के महानायक बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन इलाहाबाद लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार थे. उनके खिलाफ भारतीय लोकदल के दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा चुनाव लड़ रहे थे. साल 1977 में हेमवती नंदन बहुगुणा ही वो शख्स थे, जिन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ जनता पार्टी को केंद्र की सत्ता में पहुंचने में काफी मदद की थी.
बहुगुणा को हराने राजीव ने अपने दोस्त को उतारा
लोकसभा चुनाव 1984 पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हो रहे थे. इस चुनाव में राजीव गांधी के कंधो पर कांग्रेस पार्टी की पूरी जिम्मेदारी थी और हेमवती नंदन बहुगुणा से सियासी बदला भी लेना था. जनता की सहानुभूति कांग्रेस के साथ थी, इसलिए राजीव गांधी ने तब अपने दोस्त अभिनेता अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से चुनाव मैदान में उतार दिया था. इस चुनाव में अभिनेता अमिताभ बच्चन ने जनता पार्टी के उम्मीदवार हेमवती नंदन बहुगुणा को करारी पटखनी भी दी थी.
बैलेट पेपर में महिलाओं ने छोड़ी थी लिपस्टिक की छाप
अमिताभ बच्चन और हेमवती नंदन बहुगुणा के बीच मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा था. महानायक अमिताभ जहां भी जाते युवा उनकी एक झलक पाने के लिए घंटो इंतजार करते थे. महिलाएं उनके ऊपर चुनाव प्रचार के दौरान अपना दुपट्टा फेंक देती थी. अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता नतीजों में भी दिखी. उस वक्त चुनाव में बैलेट पेपर का इस्तेमाल किया जाता था. जब मतगणना शुरू हुई तो अधिकारी ये देख चौंक गए की बैलेट पेपर में महिलाओं ने वोट तो अभिनेता अमिताभ बच्चन को ही दिया था पर उसमें लिपिस्टिक की छाप छोड़ी थी.
इस कारण करीबन चार हजार मतपत्र निरस्त कर दिए गए थे. इसके बावजूद भी महानायक अभिताभ बच्चन को 2 लाख 97 हजार 461 वोट मिले थे. वहीं, उनके प्रतिद्वंद्वी भारतीय लोकदल के प्रत्याशी हेमवती नंदन बहुगुणा को मात्र 1 लाख 09 हजार 666 वोटो मिले थे. उन्हें इलाहाबाद से होने का फायदा भी चुनाव में मिला. अमिताभ बच्चन जनसभाओं में कहते थे, "मैं जहां भी जाता हूं, छोरा गंगा किनारे वाला कहलाता हूं". इन्हीं सब वजहों से नतीजा अमिताभ बच्चन के पक्ष में रहा था.
रास नहीं आई महानायक को राजनीति
अमिताभ बच्चन अब लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद तो बन गए थे पर उनको राजनीति ज्यादा दिन तक रास नहीं आई थी. उनकी राजनीतिक पारी एक पांच वर्ष का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाई थी की उससे पहले ही महानायक ने सांसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. बोफोर्स घोटाले ने भी गांधी परिवार और उनके बीच दूरियां बढ़ा दी थी. अभिनेता अमिताभ बच्चन ने उस वक्त ये कहते हुए राजनीति से संन्यास ले लिया था की, "मेरा राजनीति में आना एक गलती थी, मैं भावनाओं में बहकर चुनाव लड़ने को तैयार हुआ था पर राजनीति असल में काफी अलग है. अंततः मैंने हर मान ली".