Lok Sabha Election 2024: बसपा प्रमुख मायावती ने सोमवार (13 मई) लखनऊ में एक बयान दिया, जिसके सियासी गलियारों में इस पर चर्चा तेज हो गई. बहन जी ने कहा कि हम अगर सत्ता में आते हैं, तो अवध को नया राज्य बनाएंगे. ये पहली बार नहीं है, जब मायावती ने यूपी के पुनर्गठन की बात की है. साल 2011 में जब वो उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं, तब उन्होंने यूपी को चार राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया था.
समय-समय पर उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की पार्टियों और नेताओं ने अलग राज्य की मांग उठाई है. खासकर पश्चिम यूपी के नेता ये मांग करते रहे हैं. यूपी के पुनर्गठन के मुद्दे पर आखिरी बार "ठोस कदम" 2011 में उठाए गए थे जब मायावती सरकार ने विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव में प्रशासन की आसानी का हवाला देते हुए राज्य को पश्चिमी यूपी, मध्य यूपी, पूर्वी यूपी और बुंदेलखंड में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया गया.
मायावती का ताजा बयान
बसपा प्रमुख मायावती ने सोमवार को कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद उनकी पार्टी के केन्द्र की सत्ता में आने पर ‘अवध क्षेत्र’ को अलग राज्य बनाया जाएगा. मायावती ने लखनऊ, मोहनलालगंज, रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवारों के समर्थन में आयोजित एक जनसभा में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के अपने पुराने रुख को दोहराते हुए कहा, ”लखनऊ से अवध क्षेत्र के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि अवध को अलग राज्य बनाया जाए. जब केंद्र में हमारी पार्टी सत्ता में आएगी तो अवध क्षेत्र को अलग से राज्य बनाया जाएगा, जिसमें लखनऊ भी आता है.”
ऐसा नहीं है कि बहन जी ने राज्य के पुनर्गठन का मुद्दा पहली बार उठाया है, वो जब सरकार में थीं, उस समय भी इसको लेकर विधानसभा तक पहुंची थीं, लेकिन राष्ट्रीय लोक दल को छोड़ सभी राजनीतिक पार्टियां उनके प्रस्ताव के खिलाफ ही रहीं हैं.
साल 2011 का प्रस्ताव
यूपी के पुनर्गठन को सियासी गलियारों में एक संवेदनशील मुद्दे के रूप में देखा जाता है, क्योंकि ये सबसे अधिक संख्या में 80 सांसदों को संसद में भेजता है और राज्य के विभाजन से राजनीतिक दलों को ही समीकरण बिठाने में सबसे ज्यादा माथापच्ची करनी पड़ेगी. चूंकि पुनर्गठन केंद्रीय सूची में शामिल है, इसलिए मायावती के 2011 के प्रस्ताव को कभी आगे नहीं बढ़ाया गया क्योंकि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इसके अलावा, इस प्रस्ताव को विधानसभा में जयंत चौधरी के नेतृत्व वाले आरएलडी के अलावा बीजेपी, कांग्रेस और सपा के विरोध का सामना करना पड़ा और इसके एक साल बाद बसपा सत्ता से बाहर हो गई.