Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव पूरे देश में शुरू हो चुका है. सभी दल ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए लोगों को लुभाने में लगी हैं. पार्टियां लोगों को मनाने के लिए तरह-तरह के वादे और उनके विकास के लिए काम करने की बात कर रही है. इसके लिए पार्टियों ने अपना घोषणा पत्र भी जारी किया है.  लोकतंत्र में लोगों का सबसे बड़ा संवैधानिक अधिकार वोटिंग होता है, लेकिन अगर जनता ने सभी पार्टियों के उम्मीदवारों को नकार दिया और नोटा को सबसे अधिक दिया तो क्या होगा ? चुनाव आयोग के इस संबंध में नियम क्या कहते हैं ?


इलेक्शन ज्ञान की इस सीरीज में बताएंगे कि किसी सीट पर चुनाव में नोटा को सबसे अधिक वोट अगर मिलते हैं तो ऐसे में इलेक्शन कमीशन का फैसला क्या होगा. क्या जीत नोटा की मानी जाएगी?.


2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान नोटा को 1.06 फिसदी वोट मिले थे. वहीं, बात 2014 के लोकसभा चुनाव की करें तो उस वक्त 1.08 फिसदी वोटिंग नोटा को मिले थे. इसका मतलब है कि लोगों में नोटा को लेकर रुझान कम हुए हैं. वहीं, सबसे अधिक वोट नोटा को बिहार में मिले जो राज्य के कुल वोट का 2 फिसदी था. 


क्या हैं नियम


नियम के मुताबिक किसी भी क्षेत्र में अगर सबसे अधिक वोट नोटा को पड़ते हैं तो ऐसे कंडीशन में जीत नोटा का नहीं माना जाएगा. इसका मतलब है कि न ही चुनाव रद्द होंगे और न ही फिर से कराए जाएंगे. नोटा सिर्फ एक विकल्प है. किसी कैंडिडेट की जीत को खारिज करने का अधिकार नोटा को नहीं है. ऐसे कंडीशन में नोटा के बाद जिस कैंडिडेट के सबसे अधिक वोट होंगे उसकी जीत मानी जाएगी. उदाहरण के तौर पर A उम्मीदवार को 100 वोट मिले, B उम्मीदवार को 200 वोट मिले और नोटा को 700 वोट मिल गए तो चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक 200 वोट पाने वाले B को जीता माना जाएगा.


2013 में हुआ लागू


नोटा को लागू हुए 11 साल हो चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट के एतिहासिक फैसले के बाद इसे चुनाव आयोग ने पूरे देश में लागू किया था. पॉलिटिकल पार्टियों को अपने उम्मीदवार के बारे में सोचने के लिए ये विकल्प लाया गया. इसका मतलब होता है कि अगर वोटरों को कोई भी कैंडिडेट पसंद नहीं आ रहा है तो वो नोटा पर वोट कर सकते हैं.