Lok Sabha Elections 2024: RSS वालों के कहने पर पॉलिटिक्स में आए थे डॉ हर्षवर्धन, अब BJP से टिकट कटने पर हुआ मोहभंग! ऐसा रहा सियासी सफर
Lok Sabha Elections 2024 के लिए 2 मार्च को आई बीजेपी की पहली लिस्ट में डॉ. हर्षवर्धन का नाम नहीं था, जबकि 3 मार्च 2024 को उन्होंने एक्टिव पॉलिटिक्स से संन्यास का ऐलान कर दिया.
Lok Sabha Elections 2024: दिल्ली की चांदनी चौक लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद डॉ. हर्षवर्धन सक्रिय राजनीति से संन्यास का ऐलान कर चुके हैं. लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची के अगले दिन बाद हर्षवर्धन ने यह कदम उठाया है. एक्टिव पॉलिटिक्स से दूरी बनाने के साथ उन्होंने संकेत दिए हैं कि वह पहले की तरह ईएनटी सर्जन की भूमिका में क्लिनिक संभालेंगे. आइए, जानते हैं उनके सियासी सफर के बारे में:
13 जनवरी 1954 को दिल्ली में जन्मे डॉ. हर्षवर्धन ने शुरुआती पढ़ाई एंग्लो-संस्कृत विक्टोरिया जुबली सीनियर सेकेंडरी स्कूल से पूरी की. इसके बाद उत्तर प्रदेश के कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज से कॉलेज की शिक्षा पूरी की. उनके पास एम.बी.बी.एस, एम.एस की डिग्री है. वह मूल रूप से सर्जन हैं, लेकिन दिल्ली में पोलियो को खत्म करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. मई, 1998 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन्हें डायरेक्टर जनरल्स कमेंडेसन मेडल’ से सम्मानित किया.
संघ नेता के कहने पर राजनीति में आए थे
ऐसा बताया जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता के कहने पर ही डॉ. हर्षवर्धन राजनीति में आए थे. वह यह बात स्वीकार भी चुके हैं. चूंकि, वह पंडित दीनदयाल की सोच से प्रभावित थे. यही वजह रही कि राजनीति से छुट्टी लेने के बाद अब वह फिर से जनसेवा में लगने जा रहे हैं और मेडिकल क्लीनिक पर रहकर लोगों की मदद करेंगे. हर्षवर्धन के मुताबिक, राजनीति उन्हें गरीबी, नजरअंदाजी और बीमारी से लड़ने का जरिया लगती थी. यही वजह थी कि राजनेता बने थे.
5 बार MLA, 2 बार MP और फिर केंद्रीय मंत्री
बीजेपी के सबसे शिक्षित नेताओं में से एक डॉ. हर्षवर्धन लंबे समय से दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हैं. वह 5 बार विधायक रहे और 1993-1998 के बीच दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य, शिक्षा, कानून और न्याय और विधायी मामलों के मंत्री रहे. 2014 में केंद्र की राजनीति में आए और चांदनी चौक सीट से सांसद बने. फिर वह केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण बने. हालांकि, जल्द ही उनका मंत्रालय बदला गया और वह नवंबर 2014 से मई 2019 के बीच केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान रहे.
कोरोनाकाल में रहे थे देश के हेल्थ मिनिस्टर
भारत जिस वक्त कोरोना वायरस संक्रमण के संकट काल से बुरी तरह जूझ रहा था उस समय देश के हेल्थ मिनिस्टर डॉ हर्षवर्धन ही थे. स्वाथ्य मंत्री रहते हुए उनका योगदान अतुलनीय माना जाता है. उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास का एलान करते हुए लिखा कि मानव जाति के इतिहास में केवल कुछ ही लोगों को गंभीर खतरे के समय में अपने लोगों की रक्षा करने का मौका मिला है. मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि मैंने इससे मुंह नहीं मोड़ा और भगवान राम की कृपा से अपने लोगों की जान बचाने में सफल रहा. कोरोनाकाल में आम लोगों के बीच जागरुकता फैलाने से लेकर कोरोना वैक्सीन के निर्माण में भी हर्षवर्धन से स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए लगातार काम किया. भारत में बनी वैक्सीन से करोड़ों लोगों को दो डोज लगे और विदेशों में भी इसे जरूरतमंदों तक पहुंचाया गया.
2021 में चला गया था मंत्री पद
डॉ. हर्षवर्धन को मई 2017 में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन भी बनाया गया था और मई 2019 तक उनके पास यह जिम्मेदारी रही. मई 2019 में दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने और उन्हें केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण; विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय बनाया गया. वैसे, जुलाई 2021 में उनसे मंत्री पद छिन गया था और अब पार्टी ने उन्हें लोकसभा का टिकट भी नहीं दिया. इसके बाद हर्षवर्धन ने सक्रिय राजनीति से संन्यास का फैसला किया.
...तो इस वजह से बीजेपी ने काटा टिकट!
बीजेपी की ओर से डॉ हर्षवर्धन को टिकट न दिए जाने की पीछे को लेकर आधिकारिक तौर पर तो कुछ नहीं कहा गया. हालांकि, सियासी गलियारों में ऐसी चर्चा है कि हो सकता है कि उनकी अधिक उम्र के कारण उन्हें टिकट न दिया गया हो. आमतौर पर बीजेपी 70 से ज्यादा नेताओं को टिकट तभी देती है जब उनका कोई विकल्प नहीं हो. हर्षवर्धन की उम्र 69 साल हो चुकी है.
हर्षवर्धन की जगह किसे BJP ने दिया मौका?
डॉ. हर्षवर्धन 2014 और 2019 में चांदनी चौक सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे. हालांकि, इस बार उनकी जगह प्रवीण खंडेलवाल को टिकट मिला. लोकसभा चुनाव के लिए टिकट न मिलने और राजनीति से उनके संन्यास के बाद लगभग 70 साल के हर्षवर्धन का राजनीतिक करियर लगभग खत्म माना जा रहा है.
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