First Time Booth Capturing In Elections: लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों के ऐलान के साथ देश में आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी है, जो चार जून 2024 को परिणाम आने के साथ खत्म होगी. निर्वाचन आयोग ने देश भर में सात चरणों में चुनाव करने का ऐलान किया है और इन चुनावों के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बिना किसी परेशानी के सफल चुनाव करने के वादा किया है. इसी बीच, चुनाव से जुड़े किस्से और कहानियों की इस खास सीरीज 'चुनावी किस्सा' में जानिए देश में पहली बार 'मतदान केंद्र' पर कब कब्जा हुआ था.
भारत में पहली बार 'बूथ कैप्चरिंग' देश के दूसरे लोकसभा चुनाव यानी कि साल 1957 के चुनाव में हुई थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग बिहार के बेगूसराय में मटिहानी विधानसभा क्षेत्र के रचियाही स्थित कछारी मतदान केंद्र पर हुई थी, जब लोकसभा चुनाव 1957 में प्रत्याशी सरयुग प्रसाद सिंह के समर्थन में गांव के ही लोगों ने बूथ पर धावा बोल दिया था, बाद में बूथ कैप्चरिंग यहां एक बड़ा सैन्य ऑपरेशन की तरह अंजाम दिया जाने लगा.
डॉन कामदेव को दी जाती थी जिम्मेदारी
राजनैतिक दल डॉन कामदेव सिंह को बूथ कैप्चरिंग के इस काम की जिम्मेदारी सौंपने लगे थे. स्थानीय व्यक्तियों के अनुसार डॉन कामदेव सिंह को तो एक बार हाई प्रोफाइल केंद्रीय मंत्री ने साल 1972 के लोकसभा चुनाव में मिथिलांचल में बूथ कैप्चरिंग की जिम्मेदारी भी सौंपी थी. वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता चंद्रशेखर सिंह पहली बार साल 1952 में बेगूसराय की इसी लोकसभा सीट पर चुन कर संसद पहुंचे थे.
बिहार में 80 से 90 के दशक में मतदान केंद्रों पर कब्जे की घटनाओं के काफी इजाफा देखने को मिला था. यह वह समय था, जब पॉलिटिक्स में नेता और प्रत्याशियों ने चुनाव में जीत हासिल करने के लिए अपराधियों की मदद लेना शुरू कर दिया था. कांग्रेस ने साल 1957 के चुनाव में बड़ी मात्रा में बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं के बावजूद अच्छा प्रदर्शन करते हुए विरोधी कम्युनिस्ट पार्टी से लगभग पांच प्रतिशत अधिक वोट हासिल करने में कामयाब रही थी.
कब हुआ था देश में पहला लोकसभा चुनाव?
देश में पहली बार लोकसभा चुनाव साल 1951-52 के बीच कुल 68 चरणों में हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में सत्ता पर काबिज हुई थी. पहले आम चुनाव को कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग के तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के कंधो पर थी, जिन्होंने देश के पहले ही चुनाव में बैलेट बॉक्स का निर्माण और मतदाताओं को पहचानने के लिए के लिए नीले रंग की स्याही का प्रयोग किया था, उस वक्त देश अच्छी आर्थिक हालत में नहीं था. हालात को देखते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने 10.5 करोड़ रुपए के खर्च में पूरा चुनाव करा दिया था, जो काफी कम माना जाता है.
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