Lok Sabha Elections 2024: संघ के गढ़ नागपुर में जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे नितिन गडकरी, दलित-ओबीसी वोटर तय करेंगे किसके खाते में जाएगी सीट
Lok Sabha Elections 2024: नागपुर शुरुआत में कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे समीकरण बदले और अब यहां बीजेपी की जड़ें मजबूत हो चुकी हैं. गडकरी के लिए तीसरी जीत हासिल करना मुश्किल नहीं होगा.
Lok Sabha Elections 2024: नागपुर लोकसभा सीट में बीजेपी के नीतिन गडकरी और कांग्रेस के नाना पटोले के बीच सीधी टक्कर है. नितिन गडकरी यहां से लगातार 2 बार सांसद रह चुके हैं और नाना पटोले भी क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं. नागपुर को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. यहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मुख्यालय भी है, जो बीजेपी का वैचारिक मार्गदर्शक संघ है. हालांकि, नाना पटोले के खिलाफ जीत हासिल करना गडकरी के लिए आसान नहीं होगा.
2014 और 2019 में गडकरी ने यहां बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. इस बार भी उनका पलडा भारी माना जा रहा है. यह सीट शुरुआत में कांग्रेस का गढ़ थी, लेकिन बाद में बीजेपी की पकड़ मजबूत होती गई. 1996 में बीजेपी पहली बार यहां जीती थी, लेकिन 1998 से 2004 तक कांग्रेस के विलास मुत्तेवार लगातार 4 बार सांसद बने. 2014 में बीजेपी ने गडकरी को इस सीट से उम्मीदवार बनाया. इसके बाद से यह सीट बीजेपी के खाते में है.
क्या हैं जातीय समीकरण?
नागपुर में दलित और ओबीसी वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं. नागपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीटें हैं. नागपुर दक्षिण पश्चिम, नागपुर दक्षिण, नागपुर पूर्व, मागपुर मध्य, नागपुर पश्चिम और नागपुर उत्तर. 21 लाख से ज्यादा मतदाताओं वाली नागपुर सीट में 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होना है. यहां 50 फीसदी ओबीसी वोटर हैं और 20 फीसदी दलित मतदाता हैं, मुस्लिम वोटर 12 फीसदी के करीब हैं.
2019 में नाना पटोले को मिली थी हार
2019 में भी कांग्रेस ने नाना पटोले को इस सीट से टिकट दिया था. उन्हें गडकरी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था. 2014 में गडकरी ने कांग्रेस के विलास मुत्तेमवार को 2,84,828 वोट से हराया था. गडकरी को 5,87,767 वोट मिले थे. यह सीट 1951 में अस्तित्व में आई थी और कांग्रेस की अनसूयाबाई काले यहां से पहली सांसद बनी थीं. 1962 में निर्दलीय उम्मीदवार माधव श्रीहरि अणे ने जीत हासिल की लेकिन बाद में यह सीट फिर कांग्रेस के खाते में चली गई. अलग विदर्भ की मांग ने कांग्रेस को कमजोर किया, लेकिन सही मायने में समीकरण गडकरी के आने के बाद बदले हैं.
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