Lok Sabha Elections 2024 Latest News: भारतीय जनता पार्टी (BJP) और शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट की सियासी दुश्मनी लगातार बढ़ती जा रही है. दोनों ही दलों के नेता लगातार एक-दूसरे पर जुबानी हमले कर रहे हैं. इसी कड़ी में शिवसेना के सांसद और पार्टी के मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर अपने संपादकीय में कई हमले किए हैं.
संजय राउत ने कॉलम में लिखा है, नरेंद्र मोदी ने देश पर पुतिन की तरह शासन किया. देश को गुलाम बनाया और दस साल में गुलाम पैदा किए. सवाल इतना ही है कि हार हुई तो क्या मोदी सत्ता छो़ड़ देंगे? या फिर किसी तानाशाह की तरह सत्ता छोड़ने से इनकार कर देंगे? किसी के मन में कोई संदेह नहीं है कि 4 जून के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह का शासन खत्म हो रहा है. देश की जनता ने इन दोनों को सत्ता से हटाने के लिए ही वोट किया है. मोदी और शाह ने देश को जेल बना दिया और लोकतंत्र को ही बंधक बना लिया. इससे यह भ्रम पैदा हुआ कि मोदी-शाह को हराया नहीं जा सकता. ऐसी छवि बना दी गई कि मोदी भगवान का अवतार हैं.
योगी और गडकरी को हराने की साजिश
संजय राउत ने लिखा, 4 जून के बाद भाजपा में मोदी-शाह के लिए कोई समर्थन नहीं रहेगा. नागपुर में गडकरी की हार हो, इसके लिए मोदी-शाह-फडणवीस ने इकट्ठा प्रयास किया. गडकरी की हार नहीं होगी, यह जान लेने के बाद फडणवीस अनिच्छा से नागपुर के चुनाव प्रचार में उतर पड़े. गडकरी की हार के लिए हर तरह के साजो-सामान फडणवीस ने ही मुहैया कराए, यह संघ के ही लोग नागपुर में खुलेआम बोलते नजर आते हैं. जो हाल गडकरी का है, वही योगी का है. अगर अमित शाह दोबारा सत्ता में आए तो वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को घर भेज देंगे. इसलिए ‘योगी को बचाना है, तो मोदी को जाना है’ यह संदेश योगी समर्थकों ने प्रसारित किया है. इस वजह से उत्तर प्रदेश में भाजपा को 30 सीटों को झटका सहज लगेगा. पहले मोदी-शाह को हटाओ, ऐसा उत्तर में योगी और उनके लोगों ने फैसला किया है. जिसका परिणाम भी 4 जून को देखने को मिलेगा.
क्या छोड़ देंगे सत्ता?
चुनाव लगभग खत्म हो चुके हैं और 4 जून के बाद क्या? इस पर चर्चाएं हो रही हैं. मोदी और शाह हार भी गए तो भी वे आसानी से सत्ता नहीं छोड़ेंगे। किसी तानाशाह की तरह वो सत्ता छोड़ने से इनकार कर देंगे, ऐसा कहा जा रहा है, जो सच नहीं है. 4 जून की दोपहर के बाद देश में संविधान को बल मिलेगा. सेनाप्रमुख, पुलिस, प्रशासन प्रमुख मोदी-शाह की बात नहीं मानेंगे. ये सभी संस्थाएं गुलामी की बेड़ियां तोड़ देंगी. ‘ये लोग कब जा रहे हैं?’ ऐसी भावना इनमें से हर व्यक्ति निजी तौर पर व्यक्त कर रहा था. ट्रम्प ने हार स्वीकार नहीं की और अमेरिकी संसद में अपने भाड़े के लोगों की घुसपैठ कराकर अराजकता मचा दी। क्या मोदी-शाह के लोग ऐसा कुछ करेंगे? उनमें ऐसा कुछ भी करने की ताकत नहीं होगी. दोनों को हार स्वीकार करनी होगी, क्योंकि अगर कोई अतिवादी प्रयोग किया गया तो शांत दिमाग वाला क्रांतिकारी मतदाता आक्रोश में सड़कों पर उतर आएगा. इस बीच ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स, पुलिस प्रमुख राहुल गांधी से मिलने के लिए उनके दरवाजे पर खड़े नजर आएंगे. ऐसे में उनमें विरोधियों को धमकाने की ताकत नहीं रहेगी. सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण और सहजता से होगा. मोदी और शाह के पास लड़ने की ताकत और कौशल नहीं है और जांच एजेंसियों का हथियार ही न होने से इन दोनों को शायद कुछ समय के लिए अज्ञातवास में ही जाना पड़ेगा. अन्यथा लोगों का आक्रोश झेलना पड़ेगा.
‘इंडिया’ बहुमत की ओर
भाजपा और उसके सहयोगी दल मिलकर बहुमत के आस-पास भी नहीं पहुंच रहे हैं और इंडिया गठबंधन को 300 के करीब सीटें मिल रही हैं. मोदी की सरकार जा रही है. इसके चलते विदेशी उद्योगपतियों ने करीब सवा लाख करोड़ का निवेश वापस ले लिया. इन सभी का कहना है कि वे नई सरकार के साथ नया समझौता करेंगे. मोदी के कार्यकाल में देश में कोई नया निवेश नहीं आया और देश का धन लेकर यहां के अमीर बाहर चले गए. भारत से सबसे अधिक धन दुबई गया. दुबई की रियल एस्टेट इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा निवेश भारतीयों ने किया है. दुबई के शेख राजा मोदी के मित्र हैं. इनकी मदद से मोदी इन सबका काला धन भारत ला सकते थे, क्योंकि वे विश्वगुरु हैं, विष्णु के तेरहवें अवतार हैं, इसी तरह बहुत कुछ हैं, लेकिन मोदी और उनके लोगों ने खुलेआम देश की लूट होने दी और खुद देशभक्त होने का तमगा पहनकर घूमते रहे. मोदी और शाह ही देश में काले धन के मुख्य चौकीदार हैं, ऐसा जताते रहे. उन्होंने सारा काला धन भारत वापस लाने का जो वचन दिया था, वह झूठा निकला.
मोदी ने अपने दोस्तों की संपत्ति बढ़ाईं. उसी संपत्ति पर राजनीति की. गरीबों को धर्म के अफीम की गोली दी. गुलामों को नशे में रखकर स्वयं मौज करते रहे. वे चिल्लाते रहे और विपक्ष पर झूठे आरोप लगाते रहे. ये सारे खेल 4 जून के बाद बंद हो जाएंगे.
जवानों की आत्मा
दिल्ली के परिवर्तन में महाराष्ट्र का नेतृत्व अहम भूमिका निभाएगा. दिल्ली ने महाराष्ट्र के कुछ मेंढकों को फुलाकर नेता बना दिया. ये सभी नेता राजनीतिक पटल से खत्म हो जाएंगे. इस चुनाव में एकनाथ शिंदे ने खूब पैसा खर्च किया. उन्होंने हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम 25-30 करोड़ रुपये बांटे. इसके अलावा कई उम्मीदवारों को बाहर करने के लिए अलग बजट. अजीत पवार का एक भी उम्मीदवार चुनकर न आए, इसके लिए शिंदे और उनके तंत्र ने विशेष प्रयास किए. महाराष्ट्र की राजनीति में आई इस समृद्धि से कई लोगों की आंखें चौंधियां गईं. विचारों पर चलने वाला महाराष्ट्र इस चुनाव में पैसों की खनक पर चला. मोदी-शाह की राजनीति में महाराष्ट्र का किया गया ये अध:पतन है! फिर भी महाराष्ट्र नहीं बिकेगा और कम से कम 31 सीटों पर मोदी-शाह मित्रमंडल की हार होगी. महाविकास आघाड़ी ने जो माहौल बनाया, उसकी आंधी में मोदी-फडणवीस-शिंदे उड़ गए. परिवर्तन निश्चित रूप से हो रहा है. मोदी की वाणी और शरीर का जोर फीका पड़ गया है, ये दिख रहा है. 2019 का चुनाव ‘पुलवामा’ के जवानों के बलिदान के कारण मोदी ने जीता था. 2024 का चुनाव मोदी-शाह उन्हीं जवानों के शाप-आह के कारण हार रहे हैं. जवानों की आत्माएं भटक रही थीं. 4 जून को उन्हें मोक्षप्राप्ति होगी.
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