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Chunavi Kissa: देश के पहले संत ने कुछ ऐसे तय किया था संसद का रास्ता, सांसद बनने के बाद भी मांगते थे भिक्षा!

Lok Sabha Elections 2024: आज-कल देश कि राजनीति में कई संतो का बोलबाला है पर क्या आपको पता है आजाद भारत के पहले संत सांसद कौन थे? जानें स्वामी ब्राह्मानंद से जुड़ा यह चुनावी किस्सा.

First Saint Who Became MP: देश में 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान कर दिया है. पहले चरण के लिए 19 अप्रैल 2024 को वोटिंग होगी. मौजूदा समय में गोरखनाथ पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों (80) वाले सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री है. महंत बालकनाथ भी राजस्थान के तिजारा से विधायक हैं. इसके साथ ही कई और भी संत सक्रिय राजनीति में हैं. 

देश की राजनीति में संतो की बड़ी संख्या में असल एंट्री तो 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के समय से शुरु हुई थी, जो आज तक जारी है. चुनावी किस्से की इस स्टोरी में जानिए कौन थे आजाद भारत के इतिहास में पहली बार लोकसभा सदस्य चुनकर संसद भवन पहुंचने वाले संत स्वामी ब्रह्मानंद? जिनको आज भी लोग उनके कार्यों के कारण याद करते हैं.

संतों ने छेड़ी थी गौरक्षा के लिए जंग

स्वामी ब्रह्मानंद गौरक्षा के लिए मुखर होकर बोलते थे. उन्होंने इस मुद्दे को उठाने के लिए सड़क और संसद तक हलचल मचा दी थी. आजादी के बाद साल 1951-52 में पहली बार आम चुनाव कराए गए थे. गोरखनाथ पीठ के महंत दिग्विजयनाथ ने साल 1952 और 1957 का चुनाव हिंदू महासभा से लड़ा पर कांग्रेस के वर्चस्व के सामने नहीं टिक पाए. इसी बीच बुंदेलखंड में स्वामी ब्रह्मानंद भी मुखर होकर गौहत्या के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे, जिसके बाद साल 1966 में स्वामी करपात्री महाराज के साथ मिलकर संत स्वामी ब्रह्मानंद ने लाखों साधु-संतों के साथ गौहत्या निषेध आंदोलन चलाया. गौहत्या पर पाबंधी लगाने और कानून लाने कि मांगो के साथ संतो ने अपने गाय-बछड़ों के साथ संसद भवन के बाहर भी आंदोलन शुरू कर दिया था.

एक कर दिया था दिल्ली-प्रयाग

गौरक्षा के लिए स्वामी ब्रह्मानंद ने उस वक्त प्रयागराज (इलाहाबाद) से दिल्ली तक पदयात्रा की थी, जिसमें बड़ी संख्या में साधु-संतो ने भी हिस्सा लिया था. इस आंदोलन के बीच में ही तत्कालीन सरकार ने स्वामी ब्रह्मानंद को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया था. जेल से छूटने के बाद स्वामी जी जब जनमानस के बीच पहुंचे तो सब ने सलाह दी कि आप राजनीति में उतरिए. संत स्वामी ब्रह्मानंद ने लोगों की सलाह मानते हुए जनसंघ में शामिल होकर सियासी दुनिया में एंट्री ले चुके थे.  

प्रचंड मतों से जीतकर पहुंचे थे संसद

कांग्रेस की प्रचंड विजय के बीच उत्तर प्रदेश कि हमीरपुर लोकसभा सीट से स्वामी ब्रह्मानंद ने 54.1 फीसदी वोटों के साथ जीत दर्ज कर ली थी. इस तरह वो पहले हिंदू संत थे तो सांसद बने थे. देश की आजादी के बाद ऐसा पहली बार था, जब कोई संत लोकसभा सदस्य के रूप में चुना गया था. सांसद बनने के बाद स्वामी ब्रह्मानंद ने गौरक्षा के मुद्दे पर लगातार एक घंटे का भाषण भी दिया था, जिसको लोग आज भी याद करते हैं. उनका यह भाषण सुन तब खुद इंदिरा गांधी ने स्वामी ब्रह्मानंद को कांग्रेस में लाने का प्रयास किया था. आखिरकार इंदिरा गांधी उनको कांग्रेस में शामिल कराने में सफल भी हो गई थीं.

पैसों को कभी नहीं लगाया हाथ

इंदिरा गांधी ने साल 1967 में बैंकों के राष्टीयकरण का मुद्दा उठाया. जनसंघ तो इसके विरोध में थी पर जनसंघ के ही स्वामी ब्रह्मानंद इसके समर्थन में थे. उनका मानना था कि यह एक देश हितैषी फैसला साबित होगा. इसी कारण जनसंघ और स्वामी ब्रह्मानंद के बीच दूरियां पैदा होने लगी. इसी समय इंदिरा गांधी ने स्वामी ब्रह्मानंद को मनाकर कांग्रेस में शामिल करा लिया, जिसके बाद साल 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हमीरपुर से संत स्वामी ब्रह्मानंद को टिकट दे दिया. चुनाव हुए तो कांग्रेस आसानी से इस सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब हो गई थी. स्वामी ब्रह्मानंद दूसरी बार सांसद बन चुके थे, लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने कभी भी अपने हाथों से पैसों को नहीं छुआ और हमेशा भिक्षा मांगकर ही जीवन गुजारा.

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