Amitabh Bachchan Political Journey: देश में जब-जब राजनीति की बात होती है, तब उसमें कई बार बॉलीवुड के कलाकरों का नाम भी सामने आता है. इस बार जहां कंगना रनौत से लेकर अरुण गोविल चुनावी मैदान में हैं तो दशकों पहले सदी के महानायक कहे जाने वाले अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी सियासी पारी खेली थी. तब यह तक चर्चा होने लगी थी कि कहीं अमिताभ बच्चन विदेश मंत्री तो नहीं बनना चाहते हैं? आइए, जानते हैं इसी से जुड़ा किस्साः 


अमिताभ बच्चन साल 1984 लोकसभा चुनाव में यूपी के पूर्व सीएम दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को हराकर इलाहाबाद से सांसद बने थे. अमिताभ का सियासी दुनिया से बस 4 साल में ही मन भर गया था. उन्होंने साल 1987 में संसद सदस्यता से इस्तीफा सौंप दिया था, जिसके पीछे की कहानी दिलचस्प है. 'वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं' किताब में वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने लिखा है, ''अमिताभ बच्चन और राजीव गांधी काफी अच्छे दोस्त से पर उनकी दोस्ती में दरार भी बहुत जल्दी आ गई थी". 


संतोष भारतीय इसके पीछे की वजह बताते हैं, "वीपी सिंह पीएम बन गए थे और राजीव गांधी (पूर्व पीएम) पीएम निवास छोड़ 10 जनपथ में रहने लगे थे. एक दिन जब अमिताभ बच्चन उसने मिलने आए और 10 मिनट बाद चले गए. उनके जाने के बाद राजीव गांधी ने कहा था कि "ही इज ए स्नेक" (यह सांप है). इस समय राजीव के साथ एक पत्रकार मौजूद थे जो बाद में सांसद बने थे. उनका नाम था राजीव शुक्ला. संतोष भारतीय ने किताब में लिखा, "उस वक्त एक बच्चा भी मौजूद था, उसी ने मुझे ये बात बताई थी".


तेजी बच्चन ने मांगा था विदेश मंत्रालय


अमिताभ बच्चन का 1987 बोफोर्स घोटाले में नाम आने के बाद उन्हें लेकर लगातार तरह-तरह की बातें की जा रही थीं. यही वजह है कि अमिताभ सांसदी से इस्तीफा देने का मन बना रहे थे. हालांकि, राजीव गांधी उन्हें ऐसा करने से मना कर रहे थे. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से इस्तीफा देते तो वीपी सिंह वहां से चुनाव लड़ते और आसानी से जीत जाते. यह बात समझाने और मनाने के बाद एक दिन अमिताभ बच्चन और मां तेजी बच्चन राजीव गांधी से मिलने पहुंचे. मीटिंग में तेजी बच्चन ने राजीव गांधी के सामने शर्त रख दी थी, "अमिताभ बच्चन इस्तीफा नहीं देंगे, बस आप उनको विदेश मंत्री बना दें." राजीव गांधी इसके बाद कुछ समय तक अमिताभ बच्चन और उनकी मां का चेहरा देखते रह गए थे. फिर बाद में वही हुआ जिसका राजीव गांधी को डर था. इलाहाबाद में उप-चुनाव हुआ और तब वीपी सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी सुनील शास्त्री को बड़े अंतर से हरा दिया था. 
  
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