Varanasi Lok Sabha Election Gyan: यूपी का वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है. गंगा किनारे बने घाटों के लिए प्रसिद्ध इस नगर में काशी विश्वनाथ मंदिर भी अलग पहचान रखता है, जबकि हाल के कुछ वर्षों में यह नगरी देश की राजनीति में भी चर्चा का केंद्र रही. प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के फायरब्रांड नेता नरेंद्र मोदी मौजूदा समय में इस संसदीय सीट से सांसद हैं. वह साल 2014 से इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं पर क्या आपको पता है कि इस सीट से पहला लोकसभा सांसद कौन था? आइए, जानते हैं:
बनारस और काशी नाम से मशहूर वाराणसी लोकसभा सीट का इतिहास पुराना है. इस क्षेत्र का कनेक्शन कमलापति त्रिपाठी से लेकर राजनारायण से भी रहा है. जिसने भी यहां से चुनाव लड़ा वह हमेशा राजनीति के शिखर पर पहुंचा. वाराणसी सीट पर पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था और तब ठाकुर रघुनाथ सिंह ने जीत हासिल की थी. ठाकुर रघुनाथ सिंह स्वतंत्रता सेनानी और बड़े विद्वान थे. वो संस्कृत भाषा के भी बड़े जानकार थे.
तीन लाख वोटों से जीते थे ठाकुर रघुनाथ, अगले तीन चुनावों में भी छाए
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के रिटायर्ड प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने हिंदी चैनल 'आज तक' को दिए इंटरव्यू में बताया था कि वाराणसी लोकसभा क्षेत्र का गठन साल 1952 में हुआ था. तब ठाकुर रघुनाथ सिंह को वाराणसी से पहली बार लोकसभा चुनाव में जीत मिली थी. देश के इस पहले आम चुनाव में ठाकुर रघुनाथ ने यहां से करीब तीन लाख वोटों से जीत हासिल की थी. उन्होंने साल 1952, 1957 और 1962 के लोकसभा चुनावों में भी जीत का परचम लहराया. वाराणसी लोकसभा चुनाव में जब पहली बार साल 1952 में लोकसभा चुनाव हो रहे थे तब हिंदू संस्कृति के केंद्र बिंदु के रूप में देखे जाने वाले इस शहर को संसदीय क्षेत्र बनाने की घोषणा की गई थी पर उस वक्त यह काम नहीं हो सका था.
पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद हुई सोशलिस्ट नेताओं की एंट्री
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ था, उसके बाद वाराणसी लोकसभा में समाजवादी राजनेताओं की एंट्री हुई. काशी में तब राममनोहर लोहिया का नाम भी उभरा था. फिर धीरे-धीरे वाराणसी की भारतीय राजनीति पर पकड़ होती गई. इस सीट पर उसके बाद कभी कांग्रेस का कब्जा रहा तो कभी जनसंघ ने परचम लहराया. हालांकि, फिलहाल यह बीजेपी के मजबूच गढ़ के रूप में देखी जाती है.