Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव के लिए सियासी बिगुल बज चुका है. सभी दल प्रचार-प्रसार में जुट गए हैं. मध्य प्रदेश में राजनीतिक दल अपना-अपना प्रचार कर रहे हैं. इस बीच सूबे की जबलपुर सीट पर कांग्रेस की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है. उधर, बीजेपी ने इस सीट पर पूरी मजबूत के साथ चुनावी मैदान में उतरने जा रही है.
कांग्रेस जबलपुर लोकसभा सीट पर बीते 28 साल से नहीं जीत पाई है. वहीं, बीजेपी यहां अपनी स्थिति को लगातार मजबूत करती जा रही है. इतना ही नहीं मजबूत स्थिति में होने के बावजूद पार्टी यहां आक्रामक प्रचारकर रही है. इसी के तहत आगामी 7 अप्रैल को खुद पीएम नरेंद्र मोदी भी जबलपुर में एक रोड शो करेंगे.
'जगत बहादुर अनु ने छोड़ा कांग्रेस का हाथ'
पीएम मोदी के इस रोड शो से पहले कांग्रेस की चिंताओं में और इजाफा हो सकता है. वहीं, जबलपुर से कांग्रेस के कद्दावर नेता जगत बहादुर अनु पहले पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए. जगत बहादुर अनु को कांग्रेस की ओर से लोकसभा प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा था.
कांग्रेस ने दिनेश यादव को दिया टिकट
हालांकि, अब पार्टी ने जबलपुर लोकसभा सीट से दिनेश यादव को मैदान में उतारने का फैसला किया है. दिनेश यादव के राजनीतिक जीवन की बात करें तो वह पार्षद रह चुके हैं और फिलहाल में उनका बेटा पार्षद है. वह कांग्रेस पार्टी के दो बार नगर अध्यक्ष की कमान भी संभाल चुके हैं.
जबलपुर सीट का इतिहास
आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस के सुशील कुमार पटेरिया तो दूसरी सीट से मंगरु गुरु उइके सांसद बने. इसके बाद सेठ गोविन्द दास ने 1962, 1967 और 1971 के चुनाव में जीत दर्ज की. हालाकिं, 1974 में यहां से शरद यादव ने जीत हासिल की. 1977 में भी शरद यादव ने यहां से सीट दर्ज की.
1974 तक जहां जबलपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा था. साल 1982 में पहली बार जबलपुर में कमल का फूल खिला और बाबूराव परांजपे बीजेपी के पहले सांसद बने. हालांकि1984 में कांग्रेस ने सीट पर फिर से कब्जा कर लिया. 1989 के चुनाव में यह सीट फिर बीजेपी के खाते में आ गई. साल 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर कब्जा जमा लिया.
इसके बाद 1996 से जबलपुर लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ बन गई और 28 साल से यहां लगातार कमल खिल रहा है. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही नए चेहरे देखने उम्मीदवार बनाया है.
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