Lok Sabha Elections: लोकसभा चुनाव में तब वोटों की गिनती छोड़ दिल्ली क्यों चली आई थीं मेनका गांधी? पढ़िए पूरा किस्सा
Lok Sabha Election Chunavi Kissa: 2009 के लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी ने बेटे वरुण के लिए पीलीभीत सीट छोड़ आंवला से चुनाव लड़ने की ठानी थी, फिर जो हुआ वह काफी दिलचस्प था.
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Maneka Gandhi Aonla Lok Sabha Election Story: मेनका गांधी मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश की सुलतानपुर लोकसभा सीट से सांसद हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उन्हें पारंपरिक संसदीय सीट से उम्मीदवार घोषित किया है, जबकि पार्टी ने बेटे वरुण गांधी का पीलीभीत से लोकसभा टिकट काटा है, जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मेनका गांधी का बीजेपी में प्रभाव कम हो रहा है. हालांकि, बीजेपी नेत्री के लिए हमेशा ऐसी स्थिति नहीं थी.
एक समय तो बीजेपी में मेनका का कद इतना बढ़ गया था कि वह चुनाव लड़ने के लिए मन मुताबिक सीट चुनती थीं. इसी से जुड़ा एक चुनावी किस्सा है, मेनका गांधी तब हार को नजदीक आते देख वोटों की गिनती बीच में ही छोड़ दिल्ली निकल पड़ीं थी पर हारते-हारते मेनका गांधी ने बहुत कम अंतर से चुनाव जीत लिया था. एक समय तो ऐसा भी था जब उनका पारंपरिक सीट छोड़ नई सीट से चुनाव लड़ने का फैसला ही कटघरे में था. आइए जानते हैं पूरा चुनावी किस्सा:
2009 चुनाव में सीट बदलने का निर्णय पड़ने लगा था भारी
मेनका गांधी ने साल 2009 लोकसभा चुनाव में पारंपरिक लोकसभा सीट पीलीभीत को छोड़ अचानक बरेली जिले कि आंवला लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया था. इस लोकसभा चुनाव में उनकी टक्कर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी धर्मेंद्र कश्यप से थी. वोटों की गिनती शुरुआती दौर में ही थी कि सपा प्रत्याशी ने मेनका गांधी के खिलाफ इतनी बड़ी बढ़त बना ली थी.
मेनका गांधी को जब हार का अंदेशा होने लगा तो वह वोटों की गिनती छोड़ सीधे दिल्ली के लिए रवाना हो गई थी. हालाकिं, बाद में बीजेपी उम्मीदवार ने सपा प्रत्याशी के खिलाफ बढ़त लेना शरू किया और जब मेनका गांधी के चुनाव प्रभारी पूर्व विधायक और पूर्व मेयर कुंवर सुभाष पटेल ने बढ़त के बाद उनको वापस बुलाना चाहा तब मेनका वापस नहीं लौटीं.
हारते हुए जीत गईं थीं सुलतानपुर की बाजी
मेनका गांधी 2009 लोकसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र कश्यप के खिलाफ मात्र सात हजार 681 वोटों के अंतर से जीत हासिल करने में कामयाब रहीं थी. वह साल 1989 से लगातार पीलीभीत लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतर रहीं थी और साल 2004 तक वह इसी लोकसभा सीट से पांच बार संसद का सफर भी तय कर चुकीं थीं. उन्होंने लोकसभा चुनाव 2009 में बेटे वरुण गांधी के लिए पारंपारिक लोकसभा सीट छोड़ आंवला से चुनाव लड़ने का फैसला किया, उस वक्त मेनका गांधी को सपा प्रत्याशी ने कांटे की टक्कर दी थी. वोटों की गिनती नरियावल अनाज मंडी में चल रही थी.
मेनका गांधी और धर्मेंद्र कश्यप दोनों ही समर्थकों से साथ काउंटिंग स्थल पर थे. मतपत्रों की गिनती शुरू हुई तो सपा प्रत्याशी ने लीड लेना शुरू कर दिया. दोपहर होते-होते तो धर्मेंद्र ने करीबन 20 हजार वोटों से मेनका गांधी के खिलाफ बढ़त बना ली. उन्होंने इसके बाद हार के डर से मतगणना स्थल छोड़ दिल्ली की ओर कूच कर लिया था. दूसरी ओर शाम होते-होते बाजी सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र के हाथों से छिटकने लगी और उनकी बढ़त खत्म हो गई थी. दिल्ली पहुंचते-पहुंचते मेनका को जीत की खबर भी मिली. मेनका गांधी को इस चुनाव में दो लाख 16 हजार 503 वोट मिले थे, जबकि धर्मेंद्र को दो लाख आठ हजार 822 वोट मिले थे. यानी हार का अंतर महज सात हजार 681 वोटों का था.
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