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Lok Sabha Elections 2024: यूपी में मुसलमानों के दबदबे वाली सीटों पर बसपा ने क्‍यों उतारे हैं हिंदू कैंडिडेट

लोकसभा चुनाव में यूपी में इसबार सपा और बीएसपी जैसी पार्टियों ने मुस्लिम बहुल इलाकों में भी हिंदू उम्मीदवारों को टिकट दिया है. बीएसपी ने 7 और सपा ने सिर्फ 4 मुसलमानों को टिकट दिया है.

Lok Sabha Elections 2024: उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में चुनाव के समय जातीय समीकरण को देखकर पार्टियां काफी हद तक उम्मीदवारों का चयन करती हैं. मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिम उम्मीदवार ही पार्टियों की पहली पसंद रहे हैं. लेकिन इस बार यूपी में बीएसपी और सपा ने मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिम उम्मदीवारों को उतारने की बजाय हिंदू प्रत्याशियों को टिकट दिया है. आखिर इसकी क्या वजह है?

पश्चिमी यूपी में 26 से 50 फीसदी तक है. मुस्लिम वोटर 26 लोकसभा सीटों पर अहम भूमिका अदा करते हैं, जिसमें ज्यादातर सीटें पश्चिमी यूपी और रुहेलखंड क्षेत्र की हैं. सपा ने अभी तक सिर्फ चार मुस्लिम प्रत्याशी बनाए हैं जबकि बसपा ने सात मुसलमानों को टिकट दिया है. कांग्रेस ने यूपी की दो सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं जबकि बीजेपी ने एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया. बीजेपी पहले भी ऐसा ही करती रही है, लेकिन सपा ने इस बार स्टैंड बदल दिया है. मुस्लिम बहुल सीटों पर हिंदू समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं.

यूपी के मेरठ, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, कैराना, संभल, बरेली, बदायूं, गाजीपुर, श्रावस्ती, गोंडा, आजमगढ, फिरोजाबाद, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, धौहरारा (शाहाबाद), बागपत, प्रतापगढ़, सीतापुर, देवरिया, डुमरियागंज, सुल्तानपुर, संत कबीर नगर, उन्नाव, रामपुर और सीतापुर लोकसभा पर मुस्लिम समुदाय के नेता चुनाव लड़ते रहे हैं. इन सीटों पर कभी न कभी मुस्लिम समुदाय के सांसद रहे हैं. हालांकि, इस बार राजनीतिक दल मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी को उतारने से बच रहे हैं, जिसमें कई सीटों तो ऐसी हैं, जहां पर 37 से 40 फीसदी तक मुस्लिम हैं

  • मेरठ लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अरुण गोविल को उतारा है तो सपा ने भानू प्रताप सिंह और बसपा ने देववृत त्यागी को उतारा है. इस तरह तीनों प्रमुख पार्टियों से हिंदू कैंडिडेट है जबकि इससे पहले सपा और बसपा मुस्लिम कैंडिडेट उतारते रहे हैं. मुस्लिम सांसद भी रहे हैं और 2019 में बसपा के याकूब कुरैशी बहुत मामूली वोट से हार गए थे. यहां पर 37 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं.
  • बिजनौर लोकसभा सीट पर 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं, लेकिन किसी भी दल ने इस बार किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है. सपा ने दीपक सैनी, आरएलडी ने चंदन चौहान और बसपा ने चौधरी बिजेंद्र सिंह को कैंडिडेट बनाया है.
  • मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर बीजेपी ने संजीव बालियान, सपा ने हरेंद्र मलिक और बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को प्रत्याशी बनाया है. इस तरह से तीनों ही प्रमुख पार्टियों में से किसी ने भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया जबकि यहां पर करीब 34 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं.
  • बागपत सीट पर सभी दलों ने हिंदू प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें बसपा से प्रवीण बंसल, आरएलडी ने राजकुमार सांगवान और सपा ने मनोज चौधरी चुनाव मैदान में हैं.  बागपत में करीब 26 फीसदी मुस्लिम मतदाता है. इसके बाद भी किसी भी दल ने मुस्लिम पर दांव नहीं खेला.
  • बरेली लोकसभा सीट पर 30 फीसदी के करीब मुस्लिम मतदाता है. बीजेपी ने छत्रपाल गंगवार, सपा ने प्रवीण ऐरन को उम्मीदवार बनाया है जबकि बसपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लखीमपुर खीरी सीट पर सपा, बसपा और बीजेपी ने मुस्लिम के बजाय हिंदू प्रत्याशी पर दांव खेला है. 
  • श्रावस्ती लोकसभा सीट पर करीब 40 फीसदी के करीब मुस्लिम वोटर हैं, लेकिन किसी भी दल ने कोई टिकट नहीं दिया. श्रावस्ती सीट पहले बलरामपुर के नाम से जानी जाती है, जहां से रिजवान जहीर और फसीउर्रहमान सांसद रह चुके हैं. आजमगढ़ लोकसभा सीट पर मुस्लिम समुदाय 27 फीसदी हैं.

उत्तर प्रदेश की सियासत में मुस्लिम वोटर सात लोकसभा सीट पर 40 फीसदी से भी ज्यादा है. इन्हीं सात में से छह जगह पर मुस्लिम सांसद 2019 में चुने गए थे. 2014 में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया था. आजादी के बाद पहली बार यह था, जब कोई मुस्लिम चुनाव नहीं जीत सका है. मुस्लिम मतदाता लंबे समय तक उत्तर प्रदेश में किंगमेकर की भूमिका अदा करते रहे हैं, लेकिन वक्त के साथ सियासत ने ऐसी करवट ली कि राजनीति अल्पसंख्यक से हटकर बहुसंख्यक समुदाय के इर्द-गिर्द सिमट गई. यही वजह है कि बसपा से लेकर कांग्रेस और सपा तक किसी मुस्लिम कैंडिडेट पर दांव खेलने से बच रही है.

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