Lok Sabha Elections 2024: बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान जिस तरह राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता, पूर्व डिप्टी-सीएम और लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव की रैलियों में जबरदस्त भीड़ जुटी, उसने चुनाव विश्लेषकों, सियासी जानकारों और एक्सपर्ट्स को बड़ा चौंकाया है. आम चुनाव की मौजूदा स्थितियां (बिहार के संदर्भ में) देखते-समझते हुए पॉलिटिकल पंडित और अन्य लोग चर्चा करने लगे कि क्या सच में बिहार में बड़ा खेला होने गया है? क्या वाकई में इस राज्य का 'बैटल ग्राउंड' बीजेपी को भारी पड़ने वाला है? छठे और सातवें चरण के मतदान से पहले ही पटना से दिल्ली तक कानाफूसी होने लगी कि बिहार में क्या होने वाला है?


दरअसल, चुनावी ऐलान से ऐन पहले बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ था. जेडी(यू) के नीतीश कुमार तो सीएम की कुर्सी पर काबिज रहे पर बीजेपी विपक्ष से सत्ता में आ गई. तेजस्वी यादव सत्ता से विपक्ष में जाने के बाद भी आम चुनाव के प्रचार के दौरान छाए रहे. ऊपर से उनका दावा है कि बिहार से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का सफाया हो चुका है. लोकसभा चुनाव 2024 में क्या कुछ हो सकता है, इसे समझने से पहले कुछ आंकड़ों पर नजर मारना जरूरी है. 2019 में एनडीए को 53%, महागठबंधन को 31% और लेफ्ट को दो फीसदी वोट मिले थे. एनडीए को 40 में से 39 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि कांग्रेस सिर्फ एक सीट जीत सकी थी.  


बिहार: कौन किसके साथ लड़ रहा लोकसभा चुनाव 2024?


2019 के चुनाव के समय बीजेपी, नीतीश कुमार और पासवान (एलजेपी) साथ थे. वे इस बार भी साथ हैं. हालांकि, तब जो महागठबंधन था उसमें से जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा निकलकर इस बार एनडीए के साथ हैं. यानी 2019 की तुलना में एनडीए का कुनबा बड़ा है. महागठबंधन में लेफ्ट है, जो तब अलग था. डेटा के लिहाज से देखें तो 2019 की तुलना में एनडीए का सामाजिक समीकरण बेहतर हुआ है तो महागठबंधन (यादव और मुस्लिम- आधार वोट) का कैडर बढ़ा है. हालांकि, इस बार जो नई चीज है वह यह कि लालू यादव ने सोशल इंजीनयरिंग से एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है. 


RJD के लालू यादव ने NDA के खिलाफ चला बड़ा दांव!


महागठबंधन ने सिर्फ सात कुशवाहा उम्मीदवार उतारे हैं. भूमिहार जाति के भी तीन उम्मीदवारों को टिकट देकर एनडीए के कोर वोट बैंक को तोड़ने की कोशिश की है. ऐसा तब हुआ, जब बिहार में कुशवाहा जाति की राजनीति करने वाले उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के साथ हैं और बिहार में बीजेपी ने जिस शख्स को सबसे बड़ा चेहरा बना रखा, वह सम्राट चौधरी भी इसी कुशवाहा बिरादरी से हैं. फिर भी लालू यादव ने टिकट देकर नया सामाजिक समीकरण खड़ा करके एनडीए के कोर वोट बैंक को कमजोर करने की कोशिश की. अगर लालू यादव का यह प्रयोग पूरी तरह सफल हुआ तो कई सीटें ऐसी हैं जहां इस बार खेला हो सकता है. 


JD(U) ने उतारे सर्वाधिक अति पिछड़ी जाति के उम्मीदवार


2019 में बीजेपी और महागठबंधन के वोट बैंक में 20 फीसदी का फासला था. अतीत के पन्नों को और पलटेंगे तो पाएंगे कि 2014 और 2009 के चुनाव में भी एनडीए का पलड़ा बहुत भारी था, जबकि 2014 में नीतीश और 2009 में पासवान एनडीए के साथ नहीं थे. इसमें कोई दोराय नहीं कि नीतीश कुमार की पकड़ उस अति पिछड़ा वोट बैंक पर अब भी है, जिसकी चाहत बिहार के हर दल को है. नीतीश कुमार की पार्टी ने ही सबसे ज्यादा अति पिछड़ी जाति के उम्मीदवार उतारे हैं. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि बिहार में सबसे बड़ी आबादी अति पिछड़ा जातियों की है. कई दशक से नीतीश कुमार करीब 15 फीसदी वोट बैंक पर पकड़ बनाए हैं. यही वह वोट बैंक है जो न बहुत ज्यादा चर्चा में होता है और न ही टूट पाता है. ऐसे में चुनाव से पहले नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ जाना रणनीतिक तौर पर एनडीए के लिए फायदे मंद माना जा रहा है. 


PM नरेंद्र मोदी के कद की विपक्ष नहीं ढूंढ पाया है कोई काट


बिहार की राजनीति के लिहाज से इस बात को भी समझना पड़ेगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी असमंजस में पड़े वोटरों को अपनी तरफ करने की कला जानते हैं. ऐसे में वह बिहार को लेकर कोई रिस्क नहीं ले रहे. वह बिहार में 12 रैलियां कर चुके हैं. तीन रैलियां 25 मई को होंगी. असल में महागठबंधन के नेता बात तो ए-टू-जेड की कर रहे हैं लेकिन उनकी पूरी कोशिश बिहार में चुनाव को जाति पर ले जाने की है. चाहे मुंगेर में भूमिहारों को गाली देने वाला वायरल वीडियो हो या फिर छपरा में राजपूत और यादवों के बीच गोलीकांड. हालांकि, जाति की राजनीति को जो सत्ता की साइंस समझ रहे हैं, वे यह भी समझें कि यह बिहार का नहीं बल्कि देश का चुनाव है. अंतत: जवाब एक ही है कि नरेंद्र मोदी के कद की काट विपक्ष के पास फिलहाल तो नहीं है. हां, इतना जरूर है कि 2024 के आम चुनाव ने आरजेडी को खुद के पैरों पर खड़ा कर दिया है. तेजस्वी यादव ने जिस तरह से खुद को बिहार में स्थापित कर लिया है, उससे माना जा रहा है कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए और खासकर बीजेपी को रणनीति बदलनी होगी.


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