VIP Seat Series, Muzaffarnagar Lok Sabha constituency: लोकसभा चुनावों को लेकर देश में सियासी पारा गरम है. वोटरों को लुभाने के लिए पॉलिटिकल पार्टियां हर संभव दांव-पेंच आजमा रही हैं. सभी की नज़रें देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश पर हैं जहां 80 लोकसभा सीटें हैं. सत्ताधारी बीजेपी के लिए यहां अपनी सीटों और गढ़ पर दबदबा बनाए रखने की चुनौती है, तो वहीं कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने के लिए हर संभव कोशिश में जुटी है. सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल के महागठबंधन ने इस चुनावी दंगल को बहुत ही दिलचस्प मोड़ दे दिया है.


लोकसभा चुनाव से पहले ABP न्यूज़ आपके लिए लेकर आया है वीआईपी सीट सीरीज़. इस सीरिज में हम आपको उन लोकसभा सीटों के बारे में बता रहे हैं जो देश और यूपी की राजनीति में अहम भूमिका निभाएंगी. इस सीरीज में आज आपको बताते हैं मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का पूरा इतिहास. 



उत्तर प्रदेश के ‘जाटलैंड’ से मशहूर मुजफ्फरनगर चीनी और गुड़ की मिठास के लिए जाना जाता है और इसे भारत का 'चीनी बाउल' भी कहा जाता है. मुजफ्फरनगर में कुल 8  चीनी मीलें हैं और ये जिला यूपी की सबसे बड़ा अनाज पैदा करने वाला जिला भी है. मुजफ्फरनगर की 40 फीसदी से ज्यादा आबादी खेती-किसानी करती है. आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक मुजफ्फरनगर की यूपी में सबसे ज्यादा कृषि जीडीपी है.



लेकिन पिछले कुछ सालों में इस जगह की मिठास फीकी पड़ गई है और मुजफ्फरनगर का नाम सुनते ही दंगों की झलक सामने आ जाती है. 2013 में यहां ऐसी सांप्रदायिक हिंसा भड़की कि ये इलाका दंगों की आग में महीनों सुलगता रहा. इन दंगों में करीब 60 लोग मारे गए. इस दंगे में संजीव बलियान को भी आरोप बनाया गया था. बीजेपी ने इस आरोप के बाद भी उन्हें इस सीट पर टिकट दिया है और वो जीते.


इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है क्योंकि टक्कर दो दिग्गज जाट नेताओं के बीच है. संजीव बलियान की भिड़त यहां राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष अजीत सिंह से हैं. अजित सिंह ने अपनी पारंपरिक सीट बागपत छोड़कर इस बार बीएसपी-एसपी और आरएलडी गठबंधन की ओर से मुजफ्फरनगर सीट को चुना है. इस सीट पर इन दोनों दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है. 


मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का इतिहास


आजादी के बाद से अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में से 7 बार इस सीट पर कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया है. वहीं बीजेपी 4 बार इस सीट को हथियाने में कामयाब हुई है. बीएसपी और एसपी ने 1-1 बार ये सीट जीती है. वहीं आरएलडी का इस सीट पर अभी तक खाता भी नहीं खुला है.


1952 से 1967 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. इसके बाद सीपीआई ने कांग्रेस से ये सीट छीन ली. 1967 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर सीपीआई नेता लताफत अली खान सांसद बने. इसके बाद 1971 में भी सीपीआई के ही विजयपाल सिंह यहां से सांसद बने.


1977 में सीपीआई से ये सीट छीनकर जनता पार्टी ने कब्जा जमा लिया. इसके बाद हुए 1980 के चुनाव में भी यहां से जनता पार्टी के गयूर अली खान सांसद चुने गए.


राम मंदिर लहर में मुजफ्फरनगर बना बीजेपी का गढ़


1980 में कांग्रेस ने इस सीट पर फिर दोबारा जीत दर्ज की और धर्मवीर सिंह त्यागी सासंद बने. लेकिन 1989 में जनता दल की लहर में कांग्रेस फिर ये सीट हार गई. सके बाद  1991, 1996 और 1998 में इस सीट पर  बीजेपी का कब्जा रहा.  1991 में बीजेपी के नरेश कुमार बलियान सांसद बने. इसके बाद 1996 और 1998 में भी बीजेपी के सोहन वीर सिंह ने इस सीट पर बीजेपी की पकड़ को बनाकर रखा और सांसद चुने गए.



 1999 में कांग्रेस फिर जीती लेकिन 2004 में एसपी को जीत मिली.  2009 में इस सीट पर बीएसपी के कादिर राणा जीते. इसके बाद  2014 की मोदी लहर में इस सीट पर बंपर वोटों से जीतकर संजीव बालियान सांसद बनें. 2014 में संजिव बलिया ने कादिर राणा को करीब 4 लाख वोटों से हराया था.


मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का जातिगत समीकरण


मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर 42 फीसदी सामान्य श्रेणी के वोटर है. 20 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी जाट वोटर हैं. 18 फीसदी एससी/एसटी और 8 फीसदी अन्य जातियों के वोटर हैं.


इस सीट पर मुस्लिम और जाट वोटर मिलकर तय करते हैं कि किसकी जीत और किसकी हार होगी. इस सीट से संजिव बलियान भी जाट नेता हैं लेकिन उनके मुकाबले अजित सिंह का पलड़ा भारी है. दिग्गज नेता होने के साथ-साथ अजित सिंह को इस बात का फायदा भी मिलता है कि वो पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र हैं. चौधरी चरण सिंह को जाट वोटर अब भी अपना सबसे बड़ा नेता मानता है और ये आरएलडी को कोर वोटर भी हैं.


इस समीकरण को मिलाएं तो 20 फीसदी मुस्लिम वोट, 12 फीसदी जाट वोट और 18 फीसदी बीएसपी का वोट अजित सिंह के पक्ष में जीता दिख रहा हैं.


मुजफ्फरनगर पर दंगे का 'दाग'



जानसठ क्षेत्र के गांव कवाल में 27 अगस्त 2013 को भीड़ के हमले में गौरव-सचिन की हत्या हुई, जिसके बाद मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी.  27 अगस्त 2013-17 सितम्बर 2013 में हुए इन दंगों में करीब 60 लोग मारे गए थे और करीब 50 लोग अपने घर छोड़ने को भी मजबूर हुए. दंगे के बाद 6,000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. कथित भूमिका के लिए 1,480 संदिग्ध आरोपियों को गिरफ्तार किया गया.


संजिव बलियान के बारे में-


2014 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से पहली बार सांसद बनें. 2014 से 2017 तक मोदी सरकार में कई मंत्रालयों में राज्यमंत्री रहें. 2 सितंबर 2017 को मंत्री पद से हटा दिए गए थे. 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे में आरोपी रहे हैं.



चौधरी अजित सिंह के बारे में-

चौधरी अजित सिंह 1999 में बनी राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक हैं. अजित सिंह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र हैं. अजित सिंह 7 बार लोकसभा सांसद और एक बार राज्यसभा के सांसद भी रह चुके हैं.



पहली बार अजित सिंह 1986 में यूपी से राज्यसभा सांसद बनें. अजित सिंह केद्र सरकार में उद्योग मंत्री, खाद्य मंत्री, कृषि मंत्री और नागरिक उड्डयन मंत्री रह चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बागपत से हार मिली थी.

2014 का परिणाम (वोट प्रतिशत)


पिछले लोकसभा चुनावों में संजीव बलियान ने बीएसपी के दिग्गज नेता कादिर राणा को हराया था. संजीव बलियान को 6 लाख 53 हजार 391 वोट मिले थे. कुल मिलाकर 58.98 फीसदी वोट बीजेपी के खाते में गए थे. बीएसपी को 22.77% फीसदी, एसपी को 14.52% और कांग्रेस को 1.17% फीसदी वोट मिले थे.


कुल वोटर


मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर करीब 16 लाख 85 हजार 594 वोटर्स हैं. इनमें से पुरुष वोटर 9, 12, 745 और महिला वोटर 7, 72, 733 हैं.


विधानसभा सीटें-

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं. इनमें बुढ़ाना, चरथावल, मुजफ्फरनगर, खतौली, सरधना सीट हैं. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में इन पांचों सीटों पर बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की थी. सरधना सीट से ठाकुर संगीत सोम विधायक हैं.


कौन ताकतवर?


यहां बीजेपी की सवर्ण और अति पिछड़ी जातियों में पकड़ है और संजीव बलियान लोगों के बीच सक्रिय भी हैं. वहीं, आरएलडी के पास मुस्लिम-एससी और जाट मतदाताओं का वोट बैंक है. इस पार्टी को लंबी सियासी पारी का अनुभव है. इसके साथ ही एसपी-बीएसपी का संगठन का साथ है. यहां कांग्रेस का कोई प्रत्याशी नहीं होना भी आरएलडी के लिए फायदेमंद है.


कब होगी वोटिंग


इस सीट पर पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होना है. चुनाव के नतीजे 23 मई को घोषित होंगे.


(रीसर्च- अभिषेक पांडे)