Loksabha Election: 2024 का मुकाबला जीतने के लिए BJP कर रही इस 'मास्टरस्ट्रोक' पर काम, क्या है वो फॉर्म्युला जिसे साधने में जुटी NDA
Election 2024: अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में सभी राजनीतिक दल अभी से जुट गए हैं. सबसे ज्यादा सीट यूपी में है, ऐसे में यहां सभी वोटर को लुभाने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपना रहे हैं.
Loksabha Election 2024 : कहते हैं कि केंद्र की कुर्सी का रास्ता यूपी से होकर जाता है और इस रास्ते पर अपना दबदबा बनाने के लिए हर दल पूरी ताकत झोंकने को तैयार है. यहां भी दलित राजनीति सत्ता की चाबी है. इस बार केंद्र में बहुजन समाज पार्टी नहीं है. ऐसे में सत्तारूढ़ बीजेपी और उसके सहयोगी दल पहले से ही दलित वोट बैंक में और सेंध लगाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं.
भाजपा इस वर्ग को लुभाने के लिए रियायतों का सहारा ले रही है. पार्टी ने इस वर्ग के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करने के लिए अपनी कई टीमें तैनात कर दी हैं. सरकारी योजना के लाभार्थियों में दलित वर्ग का एक बड़ा हिस्सा है. इस वर्ग ने 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा का समर्थन किया था, इस वजह से ही बहुजन समाज पार्टी का पतन हुआ. 403 सदस्यों वाली यूपी विधानसभा में बसपा के खाते में सिर्फ एक सीट आई थी.
इस तरह रेस से बाहर हो रही बसपा
बसपा के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसके पास दूसरी पंक्ति का कोई नेतृत्व नहीं बचा है जो उसके वोटर्स तक पहुंच सके. मायावती बहुत ज्यादा एक्टिव नजर नहीं आ रही हैं, जबकि उनके भतीजे आकाश आनंद भी पार्टी कार्यकर्ताओं तक पहुंचने के लिए तैयार नहीं हैं. परिणामस्वरूप, बसपा में जमीनी स्तर के कार्यकर्ता अन्य दलों की ओर जा रहे हैं. बीएसपी ने उन दलितों के घर जाने की भी जहमत नहीं उठाई, जिन्होंने पिछले कुछ साल में अत्याचार झेले हैं.
सपा कर रही PDA फॉर्म्युले पर काम
इस बीच, जहां बीजेपी 2024 में अपनी स्थिति में सुधार करने के लिए ओबीसी उप-जातियों और दलितों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. वहीं समाजवादी पार्टी अपनी पीडीए रणनीति पर काम कर रही है, जिसका लक्ष्य 'पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक' को साधना है. सपा स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिये भी दलित वोट बैंक को साधने में लगे हैं. इसके अलावा समाजवादी पार्टी बसपा के उन दलित नेताओं की मदद से दलित मतदाताओं को अपने पाले में करने की योजना बना रही है जो सपा में शामिल हो गए हैं और इनमें स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, इंद्रजीत सरोज जैसे नेता शामिल हैं.
कांग्रेस ने भी इस बार झोंकी अपनी ताकत
दूसरी ओर, कांग्रेस भी अपना दलित वोट बैंक वापस पाने के लिए बसपा से आए नसीमुद्दीन सिद्दीकी और नकुल दुबे जैसे नेताओं पर भरोसा कर रही है. पार्टी को भरोसा है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, जिसने उनकी छवि एक गरीब समर्थक नेता के रूप में उजागर की है, से पार्टी को उत्तर प्रदेश में बढ़त हासिल करने में मदद मिलेगी.
भीम आर्मी कई दलों को कर सकती है परेशान
इस बीच, पश्चिमी यूपी में दलितों के बीच एक और उभरती ताकत भीम आर्मी के चंद्र शेखर हैं. हालांकि भीम आर्मी को अभी तक कोई चुनावी सफलता नहीं मिली है, लेकिन उसकी बढ़ती लोकप्रियता और राष्ट्रीय लोक दल के साथ उसकी दोस्ती लोकसभा चुनाव में अन्य पार्टियों के लिए परेशानी का सबब बना सकती है.
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