नई दिल्ली: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जैसे जैसे निर्णायक घड़ी के करीब पहुंच रहा है. सियासी तापमान का पारा भी चढ़ता जा रहा है. तरकश से वे तीर निकाले जा रहे हैं जो जीत के लिए वोटों की गुल्लक को भर दे. जात-पात और मजहब सत्ता के शिखर तक पहुंचने की जरूरी सीढ़ी बनती जा रही है. तिलक और जालीदार टोपी की 'सियासी जालसाजी' हर गली में दिखने लगी है. सभी 'अपनों' को छांटने लगे हैं. चलिए आज असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) की सियासत समझिए.
आरक्षण का दांव
ओवैसी ने महाराष्ट्र के भिवंडी में चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, 'अगर आप (पीएम मोदी) सोचते हैं कि तीन तलाक बिल लाने से मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिल गया तो यह गलत धारणा है. यदि आप वास्तव में न्याय करना चाहते हैं तो महाराष्ट्र के सभी मुसलमानों की ओर से मैं आपसे मराठा की तरह उन्हें आरक्षण देने का अनुरोध करता हूं.' उन्होंने कहा कि मुसलमानों को आरक्षण मिलना चाहिए. ये बताएं कि महाराष्ट्र में कितने आईएएस-आईपीएस अफसर हैं? तो इस तरह ओवैसी ने आरक्षण का 'सियासी खेल' खेल दिया.
मुस्लिम नुमाइंदों की जरूरत समझा रहे हैं ओवैसी
अब जरा कुछ दिन पीछे चलिए.. नांदेड़ में ओवैसी ने कहा कि सेक्यूलरिज़्म की छोड़िए, अपने लोगों को जिताना है. उनके ‘अपने’ का मतलब मुसलमानों से है. अब मुस्लिम नुमाइंदों की जरूरत को ओवैसी हर 'अपने' वोटर को समझाने में जुटे हुए हैं. एआईएमआईएम ने मुस्लिमों के दबदबे वाली 40 सीटों पर पूरी ताकत झोंक दी है. औरंगाबाद, नांदेड़, बीड, मुंबई, लातूर और अहमदनगर जैसे ज़िलों पर खास ज़ोर है. इन इलाक़ों में मुसलमानों की ठीकठाक आबादी है.
आरक्षण और मुस्लिम नुमाइंदगी का दांव कितना सफल होता है ये तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन ओवैसी 2014 में मिली पार्टी की सफलता से उत्साहित हैं. करीब 40 सीटों पर पूरा जोर लगा रहे हैं. हालांकि महाराष्ट्र के सियासी गलियारे में इससे शिवसेना-बीजेपी को फायदा होने की बात कही जाती है. जाहिर है इसका नुकसान कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को ही होगा.
प्रकाश अंबेडकर की पार्टी से टूटा गठबंधन तो ओवैसी ने बनाई ये रणनीति
उन विधानसभा सीटों के लिए ओवैसी ने खास रणनीति बनाई है, जहां दलित और मुस्लिम मिल कर जीत हार तय करते हैं. हालांकि इस बार उनकी पार्टी एआईएमआईएम अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ रही है. प्रकाश अंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी से उनका समझौता नहीं हो पाया इसीलिए चुनावी मैदान में ओवैसी अब सिर्फ़ मुस्लिम वोटरों के भरोसे रह गए हैं. वैसे उनकी पार्टी के होर्डिंग और बैनरों पर बाबा साहेब अंबेडकर के भी फ़ोटो लगे होते हैं. जय मीम के साथ जय भीम के नारे भी लगते हैं.
जानकारी: कब कितने मुस्लिम विधायक?
बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा में मुस्लिम विधायकों का प्रतिनिधित्व लगातार कम रहा है, यह इस समुदाय के लिए बड़ा मुद्दा है. 1990 के बाद से मुस्लिम उम्मीदवार को तभी टिकट दिया जाता है जब वह मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र से खड़ा होता है. 2014 के विधानसभा चुनावों में, नौ मुस्लिम विधायकों में से आठ मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों से चुने गए हैं. एनसीपी के हसन मुशरिफ इसके अपवाद हैं, जिन्होंने पश्चिमी महाराष्ट्र के एक निर्वाचन क्षेत्र कागल से जीत दर्ज की. शिवसेना-बीजेपी के टिकट पर राज्य में कोई भी मुस्लिम विधायक नहीं है जो अभी महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हैं.
महाराष्ट्र विधानसभा में मुस्लिम विधायक
1962- 11
1967- 9
1972- 13
1978- 11
1980- 13
1985- 10
1990- 7
1995- 8
1993- 13
2004- 11
2009- 11
2014- 9
2014 की तरह बीजेपी ने इस बार भी महाराष्ट्र में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. लेकिन 1960 के बाद जबसे महाराष्ट्र राज्य अस्तित्व में आया था, ये पहली बार था जब मुस्लिमों को राज्य मंत्रिमंडल में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला. राज्य में बीजेपी को इतना बड़ा बहुमत मिलने का एक बड़ा कारण भी यही था कि अन्य पार्टियों का मुस्लिम कार्ड उस चुनाव में नहीं चला था. महाराष्ट्र में मुस्लिम वोटर 40 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है.
महाराष्ट्र – धर्म
· कुल आबादी – 11.23 करोड़ (11,23,74,333)
· हिंदू – 8.97 करोड़ (79.82%)
· मुस्लिम – 1.29 करोड़ (11.54%)
· ईसाई – 10.80 लाख (0.96%)
· सिख – 2,23,247
· बौद्ध – 65.31 लाख (5.81%)
· जैन – 14.00 लाख (1.24%)
· अन्य – 1,78,965