मुंबई: इस वक्त महाराष्ट्र के किसी भी सियासी चेहरे का नाम लीजिये उनमें सबसे ताकतवर राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नजर आयेंगे. राज्य में चुनाव की ताऱीख के ऐलान के पहले नासिक में हुई एक जनसभा के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देवेंद्र फडणवीस का नाम अगली सरकार के सीएम उम्मीदवार के तौर पर घोषित कर दिया था. महाराष्ट्र में हाल के सालों में ये पहली बार हो रहा है कि बीजेपी सीएम पद का चेहरा ऐलान करके चुनाव लड़ रही है. 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी जब सबसे बडी पार्टी बनकर उभरी उस वक्त फडणवीस दिग्गज नेताओं की भीड में एक चेहरा थे, लेकिन सीएम के तौर पर चुने जाने के बाद आज वे महाराष्ट्र बीजेपी के तमाम नामों में सबसे ज्यादा ताकतवर बनकर उभरे हैं. ABP Opinion Poll: क्या महाराष्ट्र के लोग एक बार फिर से देवेंद्र फडणवीस को सीएम देखना चाहते हैं?
जानिये, इन 5 सालों में ऐसा क्या हुआ जिसने फडणवीस को इतना ताकतवर बनाया.
1- शिवसेना पर लगाम कसी
2014 में जब फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ली तब शिवसेना सरकार में शामिल नहीं थी और बीजेपी के पास बहुमत नहीं था. 288 में से बीजेपी के पास 122 सीटें ही थीं. ऐसे में विश्वास मत पारित होते वक्त एनसीपी के विधायकों से बहिष्कार करवाकर फडणवीस ने सरकार बचा ली. इसके बाद शिवसेना को भी सरकार में शामिल कर लिया. शिवसेना सरकार में रहते हुए भी विपक्ष की तरह पेश आई. आये दिन मुखपत्र सामना के जरिये बीजेपी के खिलाफ सामग्री छापी जाती, नेता बीजेपी के खिलाफ बयानबाजी करते और उद्धव ठाकरे इस्तीफा जेब में रखता हूं कहकर सरकार से बाहर निकलने की धमकी देते. इसके बावजूद फडणवीस ने गठबंधन सरकार 5 साल तक चलाई और 2019 में लोकसभा चुनाव के वक्त शिवसेना को गठबंधन के लिये तैयार किया. विधानसभा चुनाव में भी शिवसेना के साथ 50-50 फीसदी सीटों का बंटवारा न करते हुए शिवसेना को सिर्फ 124 सीटें दीं और बीजेपी और सहयोगी दलों को 164 सीटें दिलाईं. सहयोगी दल के लगभग सभी उम्मीदवार कमल के चिन्ह पर चुनाव लड़ रहे हैं और कानूनी जानकारों के मुताबिक जीतने पर उन्हें बीजेपी का ही व्हिप मानना होगा, नहीं तो सदस्यता चली जायेगी.
2- विपक्ष के तमाम बड़े चेहरों को तोड लिया
आज महाराष्ट्र में विपक्ष लगभग खत्म सा हो गया है. कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के कई बड़े नेता, विधायक, पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक अपनी पार्टियां छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गईं. यहां तक कि राज्य के विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल भी बीजेपी में शामिल हो गये. विपक्ष की इस तरह से कमर तोड़ने का श्रेय देवेंद्र फडणवीस को दिया जा रहा है.
3- पार्टी के अंदरूनी प्रतिदवंदवियों को धाराशाई किया
2014 में जब बीजेपी सबसे बडी पार्टी बनकर उभरी तब सीएम कौन हो सकता है, इसको लेकर कई नामों की चर्चा हुई, जिनमें एकनाथ खडसे, विनोद तावडे और पंकजा मुंडे का भी नाम था. चिक्की घोटाले में नाम आने के बाद पंकजा बैकफुट पर चलीं गईं हालांकि उन्हें क्लीन चिट मिल गई. मुख्यमंत्री पद की महत्वकांक्षा रखने वाले बाकी दो नाम विनोद तावडे और एकनाथ खडसे को फडणवीस ने टिकट ही नहीं मिलने दिया. 2019 के विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर फडणवीस की ही चली और उन्होने अपने करीबियों को ही टिकट दिलाये.
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4. सरकार को घेरने वाले मुद्दों को ठंडा किया
मराठा आरक्षण, कर्जमाफी और सूखा ये कुछ ऐसे मुद्दे थे जिनसे कि बीजेपी मुश्किल में घिरती नजर आ रही थी, लेकिन फडणवीस ने बडी ही चतुराई ने इनका निपटारा किया. लोकसभा चुनाव के जो नतीजे आये उससे पता चला कि इन मुद्दों ने बीजेपी को कामयाबी हासिल करने में कोई रोड़ा नहीं अटकाया.
5- स्थानीय निकाय और उपचुनावों में कामयाबी
इन 5 सालों में राज्य भर में होने वाले महानगरपालिका और नगरपालिका जैसे स्थानीय निकाय के कई चुनावों में बीजेपी का परचम लहराया. पालघर लोकसभा सीट के उपचुनाव में शिवसेना की ओर से उम्मीदवार खड़े किये जाने के बावजूद भी जीत हासिल की. नासिक महानगरपालिका में राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस से सत्ता छीनकर बीजेपी के मेयर को बिठाया.
देवेंद्र फडणवीस का कद लगातार जिस तेजी से बढ़ रहा है उसे देखते हुए सियासी हलकों में चर्चा हो रही है कि साल 2024 के लोकसभा चुनावों तक वे पीएम पद के लिये नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर उभरें, हालांकि इसके लिये पार्टी के भीतर ही उनका मुकाबला अमित शाह और योगी आदित्यनाथ से होगा. 2024 में फडणवीस को उस मंजिल तक पहुंचने के लिये ये भी देखना होगा कि क्या मोदी फिर से चुनाव लड़ते हैं और क्या बीजेपी फिर सत्ता में आती है?