नई दिल्ली: महाराष्ट्र में भले ही बीजेपी और शिवसेना गठबंधन करके एक साथ चुनाव लड रहीं हों, लेकिन राज्य की एक सीट ऐसी है जहां ये गठबंधन लागू नहीं होता. ये सीट है कोंकण की कणकवली जहां बीजेपी और शिवसेना, दोनों ने ही अपने अधिकृत उम्मीदवार उतारे हैं. आखिर क्या कारण है कि दोनो पार्टियों के बीच इस सीट पर बात नहीं बन पाई? इस सवाल का जवाब है नारायण राणे के प्रति शिवसेना की नफरत.
महाराष्ट्र की कुल 288 सीटों का जो बंटवारा बीजेपी और शिवसेना के बीच हुआ है उसमें 124 सीटों पर शिवसेना के उम्मीदवार हैं और बाकी 164 सीटों पर बीजेपी और उसके सहयोगी दल के उम्मीदवार हैं. इस बंटवारे के बावजूद शिवसेना ने अपने हिस्से की 124 सीटों के अलावा बीजेपी के खाते की 2 सीटों पर भी अपने उम्मीदवार हैं. इन सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों के सामने शिवसेना के उम्मीदवार चुनाव लड रहे हैं. ये दोनों सीटे हैं माण और कणकवली की. इसमें कणकवली के मुकाबले पर सबकी नजरें टिकी हुईं हैं जहां बीजेपी के नितेश राणे का मुकाबला शिवसेना के सतीश सावंत से हो रहा है.
1995 से लेकर 2014 तक इस सीट पर बीजेपी का कब्जा था. 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस के उम्मीदवार नितेश राणे की जीत हुई. वही नितेश राणे इस बार बीजेपी की टिकट पर इस सीट से चुनाव के लिये उतरे हैं. नितेश राणे दिग्गज नेता नारायण राणे के बेटे हैं और यही वजह है कि शिवसेना ने उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारा है. नारायण राणे से शिवसेना को नफरत 2005 से है जब वे शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में चले गये और जाते जाते उद्धव ठाकरे को काफी भला बुरा बोल कर गये.
शिवसेना की राणे के प्रति नफरत का अंदाजा मंगलवार को शिवसेना की सालाना दशहरा रैली में सांसद संजय राऊत के दिये इस बयान से लगाया जा सकता है- ''शिवशाही की विजय की शुरूवात कुडाल और कणकवली से होगी. खुलकर बोलता हूं कि जो भी शिवसेना के अंग पर आये, जिन्होने शिवसेना को खत्म करने की बात की, जिन्होने शिवसेना के पीठ में वार किया वे आज खुद घायल होकर पडे हैं.'' सूत्र बताते हैं कि नितेश राणे को शिकस्त देने के लिये शिवसेना पूरा जोर लगा रही है. मुंबई से प्रचार के लिये बड़े पैमाने पर शिवसैनिक कणकवली जा रहे हैं. वहीं राणे के लिये भी ये नाक का मुद्दा है. अगर ये एक सीट भी उनके हाथ से निकल गई तो महाराष्ट्र में उनके सियासी अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो जायेगा.
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