DETAILS: उत्तर भारतीयों को सूबे में सियासी दलों की 'मीठी गोली'
288 विधानसभा सीट वाली महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उत्तर भारतीय किसके पाले में बैठेंगे यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है लेकिन पिछले दो चुनाव में उत्तर भारतीय लोगों का झुकाव परंपरागत कांग्रेस की तुलना में बीजेपी की तरफ ज्यादा हुआ है.
नई दिल्ली: सियासी गलियारे में अक्सर चर्चा होती है कि 'दिल' बदलेंगे तो 'दिन' बदलेगा. कई मौकों पर नेता इस वाक्य को अपने मनमुताबिक परिस्थिति में बैठा देते हैं. महाराष्ट्र की लगभग आधी आबादी शहरों में रहती है. खासकर उत्तर भारतीय राज्यों में रोजगार की कमी की वजह से महाराष्ट्र के शहरों में उत्तर भारतीय लोगों की संख्या अब बढ़ती जा रही है. ये लोग अब चुनाव में अहम रोल भी कई सीटों पर निभा रहे हैं. महाराष्ट्र में मुंबई, नवी मुंबई, नागपुर, पुणे, ठाणे, कोल्हापुर, औरंगाबाद, कल्याण, अकोला जैसे अनेक शहरों में बड़ी संख्या में उत्तर भारत के लोग हैं. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई और आसपास के शहरों में ही विधानसभा की 45 से अधिक सीटे हैं. इसके अलावा ठाणे-कल्याण, नागपुर, औरंगाबाद, पुणे आदि शहरों की सीटों को जोड़ लें तो करीब 100 से अधिक ऐसी सीटें जहां उत्तर भारतीय मौजूद हैं.
मुंबई में रहने वाले लाखों उत्तर भारतीयों को सूबे की सियासत में मौका देने के नाम पर बीजेपी ने 3, कांग्रेस ने 5 और एनसीपी ने दो को उम्मीदवार बनाया है. हालांकि कम संख्या में दलों से टिकट मिलने से लगातार स्थानीय स्तर पर हर दल में विरोध हो रहा है. अब इसका सियासी दलों ने एक फॉर्मूला निकाला है. कहते हैं कि वादों के पिटारे खोले जा रहे हैं. बीजेपी कह रही है कि नई सरकार में उत्तर भारतीय नेताओं को एडजस्ट करेंगे तो कांग्रेस कह रही है कि वे विधान परिषद में भेजेंगे. गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 21 अक्टूबर को और 24 अक्टूबर को वोटों की गिनती होगी.
बता दें कि महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं. मोदी लहर के बाद उत्तर भारतीयों ने कांग्रेस का दामन झटक दिया. कांग्रेस की बुरी हालत के बाद उत्तर भारतीयों ने बीजेपी की तरफ झुकाव दिखाया. एनडीए सरकार में उत्तर भारतीय लोगों को प्रतिनिधित्व देने की मंशा से विद्या ठाकुर को राज्यमंत्री बनाया गया था. हालांकि जमीनी सच्चाई यह भी है कि उत्तर भारत के बड़े चेहरे कृपाशंकर सिंह ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया है. 2014 के बाद से ही तमाम स्थानीय उत्तर भारतीय नेता कांग्रेस को छोड़ बीजेपी का दामन पकड़ लिये.
288 विधानसभा सीट वाली महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उत्तर भारतीय किसके पाले में बैठेंगे यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है लेकिन पिछले दो चुनाव में उत्तर भारतीय लोगों का झुकाव परंपरागत कांग्रेस की तुलना में बीजेपी की तरफ ज्यादा हुआ है. इसे मोदी लहर का असर माना जाता है. इस बार कांग्रेस अपने इस परंपरागत वोटर को साध पाएगी?
चलिए आपको महाराष्ट्र चुनाव में मुद्दे बताते हैं?
1. महाराष्ट्र में सबसे बड़ी समस्या पानी की है. 2. रोजगार 3. राज्य में खेती, किसानों की दुर्दशा भी मुद्दा है 4. राज्य में खराब सड़कें एक बड़ी की समस्या हैं. 5. बढ़ती महंगाई 6. बिजली की समस्या
समस्याओं के लिए कौन जिम्मेदार? एबीपी न्यूज सी वोटर सर्वे में 22.9 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मौजूदा समस्याओं के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है. वहीं 10.4 प्रतिशत लोगों ने राज्य में मौजूदा समस्या के लिए सीधे मुख्यमंत्री को जिम्मेदार माना. वहीं 6.7 प्रतिशत लोगों ने इसके लिए मौजूदा विधायकों को जिम्मेदार ठहराया. साथ ही 32.2 प्रतिशत लोगों ने किसी को भी जिम्मेदार मानने से इंकार कर दिया. सर्वे के दौरान 9.2 प्रतिशत लोगों ने राज्य में मौजूदा समस्याओं के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. 5.5 प्रतिशत लोगों ने सीधे प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा किया है . वहीं, 2.7 प्रतिशत लोगों ने मौजूदा सासंदों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है. 7.8 प्रतिशत लोगों ने माना कि राज्य में समस्याओं के लिए निगम व पंचायत जिम्मेदार हैं.
किससे है जनता को उम्मीद?
लोगों से जब इस बारे में सवाल पूछा गया कि राज्य में मौजूदा समस्याओं को कौन सी पार्टी सबसे अच्छे तरीके से सुलझा सकती है? लोगों ने इस सवाल पर भी खुलकर अपनी राय रखी. एबीपी न्यूज सी वोटर सर्वे में 33.3 प्रतिशत लोगों ने माना कि बीजेपी राज्य में मौजूद समस्याओं को खत्म कर सकती है, वहीं 15.3 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस पार्टी को इसके लिए प्रबल दावेदार बताया. 8.8 प्रतिशत लोगों ने माना कि राज्य में मौजूदा समस्याओं का समाधान एनसीपी कर सकती है. वहीं, शिवसेना के लिए 5.9 प्रतिशत लोगों ने अपनी सहमति जताई. 1.8 प्रतिशत लोगों ने मनसे की ओर रुख किया.