नई दिल्ली: अब तक महाराष्ट्र में चाहे लोकसभा के चुनाव हो रहे हों या फिर विधानसभा के, राज ठाकरे की चर्चा जरूर होती रही है. राज ठाकरे के बयान चुनावी मौसम में खबरों में रहते हैं. वे किससे मिल रहे हैं और क्या कर रहे हैं इस पर सभी की नजर रहती है. लेकिन इस वक्त राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जिस दौर से गुजर रही है, उसे देखकर ये सवाल उठ रहा है कि क्या अब राज ठाकरे महाराष्ट्र की सियासत में मजबूती से उभर पा रहे हैं?


एनसीपी और राज ठाकरे के बीच काफी करीबी देखी जा रही है. बीते लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन तो नहीं किया लेकिन परोक्ष रूप से उनके लिये प्रचार जरूर किया. ठाकरे ने राज्यभर में घूम-घूम कर बीजेपी के खिलाफ रैलियां कीं और इन रैलियों में पीएम नरेंद्र मोदी के वीडियो दिखाकर समझाने की कोशिश की कि वे किस तरह अपने वादों से मुकर गये हैं. राज ठाकरे को सुनने के लिये इन रैलियों में बड़ी भीड़ जुटती थी. अखबारों और टीवी चैनलों में उनकी चर्चा भी खूब हुई लेकिन जो नतीजे आये उनसे साफ हो गया कि ठाकरे भीड़ को कांग्रेस-एनसीपी के वोटों में नहीं तब्दील कर पाये.


इस वजह से नहीं हो पाया गठबंधन
कांग्रेस के अडंगा डालने की वजह से राज ठाकरे की पार्टी-एनसीपी-कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो पाया. लेकिन असली सियासी खेल अब हो रहा है. इस बीच एमएनएस अकेले ही करीब 100 सीटों पर चुनाव लड़ रही है लेकिन जिन सीटों पर एनसीपी के दिग्गज उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है, वहां से राज ठाकरे के निरर्देश पर एमएनएस के उम्मीदवारों ने अपने पर्चे वापस ले लिये हैं.


क्या इस वजह से एनसीपी के साथ हैं राज ठाकरे?
वैसे, कांग्रेस-एनसीपी ने अपने घोषणापत्र में भूमिपुत्रों को नौकरियां देने के अलावा भी और कई सारे वादे किये हैं. घोषणापत्र में कहा गया है कि किसानों को 100 फीसदी कर्ज माफी दी जायेगी. उसके अलावा के.जी. से लेकर ग्रेज्युएशन तक शिक्षा मुफ्त किया जायेगा. मराठी भाषा के लिये विशेष विश्वविद्यालय बनाया जायेगा. युवा एवं शिक्षित बेरोजगारों को 5 हजार मासिक भत्ता मिलेगा. मोदी सरकार के नये मोटर वाहन कानून में जुर्माने की रकम कम की जायेगी. बता दें कि महाराष्ट्र में 21 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होने हैं. नतीजे 24 अकटूबर को आयेंगे.


राज ठाकरे का सियासी सफर
साल 2009 में राज ठाकरे की पार्टी ने जब पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ा तो उनके 13 उम्मीदवार जीतकर विधायक बने. उससे साल भर पहले राज ठाकरे ने परप्रांतीय विरोध का मुद्दा बड़े ही आक्रमक ढंग से उठाया था. माना जाता है कि शिवसेना के पारंपरिक वोटरों और मराठी युवाओं को एक नया विकल्प मिल गया था, जिसकी वजह से चुनावी मैदान में राज ठाकरे का खाता खुल गया. राज ठाकरे की एमएनएस शिवसेना के लिये एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी. शिवसेना को अपने गढ़ दादर में एमएनएस के सामने हारना पड़ा. कई सीटों पर एमएनएस के उम्मीदवारों ने शिवसेना के वोट काटे जिससे शिवसेना के उम्मीदवार हार गये. इसके बाद राज ठाकरे को बडी कामयाबी नासिक महानगरपालिका चुनाव में मिली जहां उनका मेयर चुना गया.


राज ठाकरे की शुरूआती कामयाबी ने महाराष्ट्र की सियासत में उनका कद बढ़ा दिया लेकिन आगे जाते हुए कामियाबी ने उनका साथ नहीं दिया. 2014 के लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे ने बीजेपी के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारे और नरेंद्र मोदी का समर्थन किया. हालांकि बीजेपी और शिवसेना में गठबंधन था लेकिन शिवसेना के प्रति अपनी सियासी खुन्नस के चलते उन्होने शिवसेना उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे.


2014 में ही अक्टूबर में जो विधानसभा चुनाव हुए उसमें राज ठाकरे की पार्टी को बेहद करारा झटका लगा. उसका सिर्फ एक उम्मीदवार ही चुना जा सका. इस एकमात्र विधायक ने भी पार्टी छोड़ दिया. इस तरह से एमएनएस महाराष्ट्र की जीरो विधायक वाली पार्टी बन गई. नासिक महानगरपालिका के पिछले चुनाव में भी राज ठाकरे को हार झेलनी पड़ी और नासिक का मेयर पद उनसे छिन गया. 2017 के मुंबई महानगपालिका चुनाव में एमएनएस के सात पार्षद चुने गये लेकिन उनमें से छह पार्षद छोड़ कर चले गये. एमएनएस की दुर्गति यहीं खत्म नहीं हुई. शिशिर शिंदे जैसे आक्रमक नेता जो साल 2006 में शिवसेना छोड़कर उनके साथ एमएनएस में आये थे, वे भी वापस शिवसेना में चले गये.