अहमदनगर/मुंबई: राकांपा प्रमुख शरद पवार ने पार्टी के पूर्व नेता बबनराव पाचपुते पर तीखा हमले करते हुए बुधवार को कहा कि अगर 13 तक मंत्री रहने के बावजूद कोई शख्स काम नहीं कर पाया तो उसे चूड़ियां पहन लेनी चाहिए. पूर्व राकांपा मंत्री पाचपुते साल 2014 में बीजेपी में शामिल हो गए थे. वह अहमदनगर जिले में श्रीगोंदा से चुनाव लड़ रहे हैं. पवार ने 21 अक्टूबर को होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राकांपा उम्मीदवार घनश्याम शेलार के लिए प्रचार करते हुए श्रीगोंदा में यह टिप्पणी की.


उन्होंने कहा, ‘पाचपुते ने हाल ही में एक रैली में कहा कि जब वह कांग्रेस-राकांपा सरकार में 13 वर्षों तक मंत्री थे तो उनके पास केवल हस्ताक्षर करने का अधिकार था. लेकिन जब कोई मंत्री किसी चीज पर हस्ताक्षर करता है तो वह आदेश बन जाता है, हस्ताक्षर के साथ ही काम को मंजूरी मिलती है.’ पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘तो हम क्या कह सकते हैं अगर कोई कहता है कि उसके पास हस्ताक्षर करने का अधिकार था लेकिन वह कुछ नहीं कर पाया? अगर वह मंत्री रहने के बावजूद लोगों के लिए कुछ नहीं कर सकता तो उसे चूड़ियां पहन लेनी चाहिए.’ बीड विधानसभा क्षेत्र में राकांपा उम्मीदवार संदीप क्षीरसागर के लिए प्रचार करते हुए पवार ने पार्टी के एक और पूर्व मंत्री तथा मौजूदा मंत्री जयदत्त क्षीरसागर पर भी निशाना साधा.


शरद पवार के सियासी सफर को कुछ यूं समझिए
सियासी सफर की शुरुआत किसने कराई? सियासी गुरू कौन होगा? ये कुछ ऐसे अहम सवाल होते हैं जो अक्सर आपके मन में उठते हैं. बताते हैं कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण को शरद पवार का राजनीतिक गुरु माना जाता है. साल 1967 में शरद पवार कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बारामती विधान सभा क्षेत्र से चुनकर पहली बार महाराष्ट्र विधान सभा पहुंचे. सन 1978 में पवार ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में एक गठबंधन सरकार बनाई. इस गठबंधन की वजह से वे पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए.


साल 1983 में पवार, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) के अध्यक्ष बने और अपने जीवन में पहली बार बारामती संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीता. उन्होंने साल 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की और राज्य की राजनीति में ध्यान केन्द्रित करने के लिए लोकसभा सीट से त्यागपत्र दे दिया. विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) को 288 में से 54 सीटें मिली और शरद पवार विपक्ष के नेता चुने गए.


1987 में शिवसेना के महाराष्ट्र में उभार और कांग्रेस कल्चर को महाराष्ट्र में सशक्त बनाने का कारण बताकर वह फिर कांग्रेस में लौट आए. जून 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण को केंद्रीय वित्त मंत्री बनाने का निर्णय लिया और शरद पवार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए. 04 मार्च 1990 को चुनाव के बाद वह फिर तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. राजीव गांधी की हत्या होने के बाद शरद पवार ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा. 26 जून 1991 को वह नरसिंहाराव की सरकार में रक्षा मंत्री बने. 1998 में वह बारामती से लोकसभा का चुनाव जीते. 12वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दायित्व निभाया.


कब कांग्रेस से हुए अलग शरद पवार
जून 1999 में एक बार फिर पवार की राजनीति ने करवट लिया और वह इटली मूल की सोनिया गांधी का मुद्दा उठाते हुए पीए संगमा, तारिक अनवर के साथ कांग्रेस से अलग हो गए. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन कर लिया. 2004 में शरद पवार की पार्टी एनसीपी यूपीए में शामिल हुई. उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया. 2012 में उन्होंने 2014 का चुनाव न लड़ने का ऐलान किया ताकि युवा चेहरों को मौका मिल सके.