नई दिल्ली: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार ने केंद्र की मोदी सरकार पर करारा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि लोगों को 'सत्ता का गुरूर' पसंद नहीं है. पवार ने यह भी कहा कि लोगों ने एनसीपी को विपक्ष में ही रखना चाहा है और पार्टी सरकार बनाने का प्रयास नहीं करेगी.
महाराष्ट्र की कुल 288 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 105 पर जीत मिली है. वहीं सहयोगी शिवसेना को 56 सीटों पर जीत मिली है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने 54 सीटें जीती हैं जबकि कांग्रेस के खाते में 44 सीटें गई हैं. एनसीपी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर राज्य में उभरी है. पिछली बार के मुकाबले इस बार 13 अधिक उम्मीदवार विधानसभा पहुंच सकते हैं. चुनाव से पहले कमजोर दिख रही पार्टी एनसीपी चुनाव के बाद बड़ी खिलाड़ी के तौर पर उभरी है. चुनाव से कुछ दिन पहले पार्टी के कई कद्दावर नेताओं ने एनसीपी छोड़ दूसरी पार्टी का रुख किया था. ऐसे में लोग मानने लगे थे कि नेताओं के छोड़ कर जाने से पार्टी कमजोर हो रही है. जो लोग शरद पवार के सियासी भविष्य पर सवाल उठा रहे थे अब उन्हें सुनहरा सियासी भविष्य दिख रहा होगा.
शिवसेना ने कहा, ''मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र में खुद को तेल लगाए हुए पहलवान के रूप में प्रस्तुत किया लेकिन बड़े मन से इसे स्वीकार करना होगा कि ‘तेल’ थोड़ा कम पड़ गया और माटी की कुश्तीवाले उस्ताद के रूप में शरद पवार ने ‘गदा’ जीत ली है.''
कांग्रेस एनसीपी में विलय की होने लगी थी चर्चा
बता दें कि कुछ दिन पहले चुनाव के दौरान सुशील कुमार शिंदे ने कहा था कि ''अब हम भी थक चुके हैं और वो भी थक चुके हैं.'' सुशील कुमार शिंदे के इस बयान के बाद एनसीपी के कांग्रेस में विलय की चर्चा तेज हो गई थी. लेकिन एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने इसे शिंदे की निजी राय बताया था.
क्या ये जीत एनसीपी के लिए है बड़ी कामयाबी?
चुनाव से पहले शरद पवार ने खुद पार्टी के प्रचार की कमान संभाली और एक के बाद एक कई रैलियों को संबोधित कर कार्यकर्ताओं में जोश भरा. क्या बारिश क्या धूप बिना किसी की परवाह किए शरद पवार ने अपने उम्मीदवारों और गठबंधन के लिए चुनाव प्रचार की कमान संभाली. शरद पवार के लिए इस बार बड़ी कामयाबी इसलिए मानी जा रही है कि पिछले चुनाव में उनकी पार्टी चौथे नंबर के साथ-साथ विपक्ष में थी.
इस वजह से कहे जाते हैं चाणक्य
सियासी गलियारे में सत्ता पक्ष या विपक्ष के बीच चाणक्य के रूप में मशहूर शरद पवार महाराष्ट के तीन बार के मुख्यमंत्री बने. महाराष्ट्र के सियासत की चर्चा हो और तीन बार के मुख्यमंत्री शरद पवार और एनसीपी की चर्चा करना जरूरी हो जाता है. आप कुछ दशक पीछे चलेंगे तो पता चलेगा कि एक बार इनके पीएम बनने की संभावना बनी थी लेकिन तब पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने और उन्हें रक्षामंत्री के पद से संतोष करना पड़ा था. शरद पवार राजनीति में कई दशकों से हैं और अब कुछ सालों से उनका परिवार आ गया है. परंपरागत सीट बारामती पर उनकी बेटी सुप्रिया सुले सांसद हैं.
महज तीन दिन की उम्र में प्रशासनिक मीटिंग में गए थे पवार
शरद पवार ने अपनी किताब 'अपनी शर्तों पर' में अपने बचपन का एक किस्सा लिखा है. राजनीति अपनी मां से सीखी है. 12 दिसंबर 1940 को शरद पवार का जन्म हुआ. उस वक्त शरद पवार की मां पुणे महानगर पालिका बोर्ड में वरिष्ठ सदस्य थीं. उनके पिता गोविंदराव पवार बारामती के कृषक सहकारी संघ में काम करते थे. 15 दिसंबर 1940 को पुणे महानगर पालिका बोर्ड की एक महत्वपूर्ण बैठक थी. काफी विचार करने के बाद महज तीन दिन के शरद पवार को लेकर मीटिंग में उनकी मां पहुंची. सभी ने जोरदार स्वागत किया. शरद पवार ने पुणे विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ब्रिहन महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ कॉमर्स से अपनी पढ़ाई पूरी की.
पवार के सियासी गुरू कौन?
सियासी सफर की शुरुआत किसने कराई? सियासी गुरू कौन होगा? ये कुछ ऐसे अहम सवाल होते हैं जो अक्सर आपके मन में उठते हैं. बताते हैं कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण को शरद पवार का राजनीतिक गुरु माना जाता है. साल 1967 में शरद पवार कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बारामती विधान सभा क्षेत्र से चुनकर पहली बार महाराष्ट्र विधान सभा पहुंचे. सन 1978 में पवार ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में एक गठबंधन सरकार बनाई. इस गठबंधन की वजह से वे पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए.
साल 1983 में पवार, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) के अध्यक्ष बने और अपने जीवन में पहली बार बारामती संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीता. उन्होंने साल 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की और राज्य की राजनीति में ध्यान केन्द्रित करने के लिए लोकसभा सीट से त्यागपत्र दे दिया. विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) को 288 में से 54 सीटें मिली और शरद पवार विपक्ष के नेता चुने गए.
1987 में शिवसेना के महाराष्ट्र में उभार और कांग्रेस कल्चर को महाराष्ट्र में सशक्त बनाने का कारण बताकर वह फिर कांग्रेस में लौट आए. जून 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण को केंद्रीय वित्त मंत्री बनाने का निर्णय लिया और शरद पवार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए. 04 मार्च 1990 को चुनाव के बाद वह फिर तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. राजीव गांधी की हत्या होने के बाद शरद पवार ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा. 26 जून 1991 को वह नरसिंहाराव की सरकार में रक्षा मंत्री बने. 1998 में वह बारामती से लोकसभा का चुनाव जीते. 12वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दायित्व निभाया.
कब कांग्रेस से हुए अलग शरद पवार
जून 1999 में एक बार फिर पवार की राजनीति ने करवट लिया और वह इटली मूल की सोनिया गांधी का मुद्दा उठाते हुए पीए संगमा, तारिक अनवर के साथ कांग्रेस से अलग हो गए. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन कर लिया. 2004 में शरद पवार की पार्टी एनसीपी यूपीए में शामिल हुई. उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया. 2012 में उन्होंने 2014 का चुनाव न लड़ने का ऐलान किया ताकि युवा चेहरों को मौका मिल सके.