नई दिल्ली: महाराष्ट्र चुनाव में इस बार बीजेपी और शिवसेना को मिलकर बहुमत तो मिल गया लेकिन इस बार का प्रदर्शन 2014 के मुकाबले काफी फीका रहा. ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हुआ? नतीजों को पहली नजर में देखने में लगता है कि बीजेपी और शिवसेना महाराष्ट्र में बाजी मारकर ले गए.


इन आंकड़ों को 2014 से मिलाकर देखेंगे तो सच्चाई कुछ और लगेगी.


2014 बीजेपी जीती थी 122 सीट
2019 में बीजेपी जीती 105 सीट
2014 में शिवसेना जीती 63 सीट
2019 में शिवसेना जीती 56 सीट
ये तब जब शिवसेना और बीजेपी 2014 में बिना गठबंधन के उतरी थी और इस बार दोनों दल चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ उतरे थे. बता दें कि महाराष्ट्र की कुल 288 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 105 पर जीत मिली है. वहीं सहयोगी शिवसेना को 56 सीटों पर जीत मिली है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने 54 सीटें जीती हैं जबकि कांग्रेस के खाते में 44 सीटें गई हैं. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 122, शिवसेना को 63, कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटें मिली थी. उस चुनाव में बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग चुनाव लडे़ थे. हालांकि, बाद में शिवसेना बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गई थी.


2014 में बीजेपी को 31 फीसदी वोट मिले थे. ये वोट प्रतिशत इस बार घटकर करीब 25 रह गया. इसी तरह शिवसेना को 2014 में 19.8 फीसदी वोट मिले थे. जो इस बार घटकर करीब 17 फीसदी रह गए. 2014 में दोनों दलों को अलग-अलग लड़ने पर करीब 50 फीसदी वोट मिले थे. जबकि जब दोनो दल इस बार साथ लड़े तो मत प्रतिशत रह गया करीब 42 फीसदी. सवाल ये कि ऐसा क्यों हुआ. बीजेपी और सहयोगी दलों में इस बात पर माथा पच्ची शुरू हो गई है.


मंदी और बेरोजगारी से घटी सीट
सरकार के सहयोगी कह रहे है कि इस आधी जीत की वजह है बेरोजगारी और मंदी. यानी खुद रामदास आठवले केंद्र सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं .


हिंदूत्व कार्ड नहीं चला
वहीं विपक्षी दल कह रहे हैं कि बीजेपी ने सावरकर जैसे मुद्दों को उठाकर ध्रुवीकरण की कोशिश की थी वो नाकाम रही.


राष्ट्रवाद के मुद्दे पर वोट नहीं
चुनावों से ठीक पहले भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर करारा प्रहार किया था. पिछले दो महीने से अनुच्छेद 370 का मुद्दा भी गरम था. बीजेपी को उम्मीद थी कि राष्ट्रवाद के मुद्दे पर उसे जरूर वोट मिलेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं.


फडणवीस फैक्टर नहीं चला
वहीं चुनावों में बीजेपी ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के चेहरे पर दांव खेला था. बीजेपी को उम्मीद थी कि फडणवीस के सहारे उसकी नैया आसानी से पार हो जाएगी. लेकिन अपने घर में ही फडणवीस का बुरा हाल था. इस बार नागपुर पश्चिम सीट पर उनकी जीत का प्रतिशत भी घट गया है.


शिवसेना-बीजेपी के झगड़े ने नुकसान पहुंचाया
मौजूदा नतीजों की एक बड़ी वजह ये भी है कि पिछले पांच साल में बीजेपी-शिवसेना के बीच कामचलाऊ रिश्ते रहे हैं. दोनों ने एक-दूसरे के कामकाज की काफी आलोचना की है. दिलचस्प ये है कि आलोचना के बाद भी दोनों दलों ने पांच साल ना सिर्फ सत्ता में बिताए बल्कि इस बार चुनाव पूर्व गठबंधन भी किया. इसी का फायदा एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन ने उठाया.


पश्चिमी महाराष्ट्र में उभरी एनसीपी
वहीं इस बार दोनों को नुकसान की बड़ी वजह एनसीपी का उभरना भी रहा है. एनसीपी नेता शरद पवार ने इस बार मोर्चा खुद संभाला. तमाम मुश्किलें उठाकर उन्होंने रैलियां भी की जिसका फायदा एनसीपी को पुणे, नाशिक और पश्चिम महाराष्ट्र में फायदा हुआ. एनसीपी नेता अजीत पवार की एकतरफा जीत भी इसी तरफ इशारा कर रही है. उनके विरोधियों की जमानत तक जब्त हो गई.


विदर्भ में कांग्रेस मजबूत हुई
वहीं किसानों के आंदोलन ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया. विदर्भ में कांग्रेस को अच्छी सीटें मिली हैं. कुल मिलाकर महाराष्ट्र में हालत ये है कि हर कोई अपनी जीत का दावा कर रहा है. बीजेपी-शिवसेना को बहुमत मिल गया जबकि एनसीपी-कांग्रेस की सीटें बढ़ गईं. ऐसे में अब सभी की निगाहें हैं कि आने वाले दिनों में महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना सरकार में किसकी कितनी भागीदारी रहेगी और सरकार बनाने का कौन सा फॉर्मूला निकल कर आता है.