Pradhanmantri Series: 2004 के लोकसभा चुनावों में किसी को ये अंदाजा नहीं था कि एनडीए को जनता बेरहमी से सत्ता से खारिज कर देगी. ना 'इंडिया शाइनिंग' का नारा लोगों को लुभा पाया और ना ही अटल बिहारी वाजपेयी की साफ सुथरी छवि. कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस बार गठंबधन की राजनीति की ठानी. साथ ही हर तरफ सुर्खियां यही रहीं कि अगर यूपीए को जीत मिली तो सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी. उस समय किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी कि मनमोहन सिंह देश की बागडोर संभालने वाले हैं. 13 मई को नतीजे आए और 20 मई को मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इन सात दिनों में जितने ट्विस्ट और टर्न आए वो किसी सुपरहिट फिल्म की कहानी से कम नहीं थे. प्रधानमंत्री सीरिज में आइए आज जानते हैं मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री  बनने की कहानी.


14वीं लोकसभा चुनाव के एनडीए सरकार ने समय से पहले घोषणा कर दी. जल्दी चुनाव कराने की एनडीए की एक वजह कांग्रेस का बुरे हाल में होना था. कुछ समय पहले हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था और कांग्रेस को करारी हार मिली थी. अटल बिहारी वाजपेयी की साफ सुथरी छवि थी और दूसरी तरफ बीजेपी ने 'इंडिया शाइनिंग' और 'फील गुड' का नारा दिया.



इधर चुनावी चर्चा शुरु होते ही कांग्रेस ने तय किया अब पार्टी गठबंधन की राजनीति करेगी. गठबंधन के लिए सोनिया गांधी खुद रामविलास पासवान के घर गईं. राजीव गांधी हत्याकांड में जयंत कमीशन की रिपोर्ट में करुणानिधि का नाम होने के बाजवूद सोनिया ने डीएमके से गठबंधन किया. तेलंगाना राष्ट्र समिति से भी तालमेल बनाया. बिहार में सिर्फ चार सीटों पर लड़ने का लालू यादव (आरजेडी) का ऑफर भी कांग्रेस ने मान लिया. महाराष्ट्र में एनसीपी से किया. गठबंधन की कोशिश यूपी में सपा और  बसपा के साथ भी हुई लेकिन बात नहीं बनी. इन दोनों पार्टियों ने अकेले ही चुनाव लड़ा. झारखंड मुक्ति मोर्चा से भी हुआ. जम्मू-कश्मीर में पीडीपी से भी हुआ. इसके बाद ही United Progressive Alliance/यूपीए यानि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का गठन हुआ और इसकी चेयरपर्सन सोनिया गांधी बनीं.


20 अप्रैल 2004 से 10 मई के बीच चार चरणों में लोकसभा चुनाव हुए. 13 मई को आए चुनावी नतीजों ने एनडीए को चारों खाने चित्त कर दिया. कांग्रेस 145 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी वहीं बीजेपी 138 सीटों पर सिमट गई.



इसके बाद सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया. चुनावों में वैसे तो कांग्रेस ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर पेश करने से परहेज किया था लेकिन बावजूद इसके ये तय था कि अगर कांग्रेस चुनाव जीतती है तो पीएम वही बनेंगी. सकारात्मक रुख देखकर कांग्रेस ने सिर्फ ये कहा था कि अगर यूपीए सरकार बनी तो उसका नेतृत्व कांग्रेस ही करेगी.


सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की खबरें आते ही बीजेपी ने उनके विदेशी बहू और इतावली होने का जिन्न निकालकर राजनीति में उथल-पुथल मचा दी. बीजेपी की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज ने तो ऐसी बयानबाजी कि जिसे सुनकर हर कोई शॉक्ड रह गया. उन्होंने कहा, ''अगर सोनिया गांधी को शपथ दिलाई जाती है तो मैं त्यागपत्र दूंगी. ये लड़ाई में भिक्षुणी के तौर पर लड़ूंगी. मैं रंगीन वस्त्र उतारकर केवल श्वेत वस्त्र धारण करुंगी. अपने केश कटा दूंगी. जमीन पर सोउंगी और भूने चने खाउंगी.'' उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें सोनिया गांधी को संसद में माननीय प्रधानमंत्री कहकर संबोधित बिल्कुल भी गंवारा नहीं है.


बढ़ते विरोध के बीच उस वक्त देश की राजनीति इतनी रोचक हो गई कि हर नुक्कड़ पर यही चर्चा होने लगी. ऐसा भी कहा जाने लगा कि सोनिया पीएम नहीं बनेगीं.


इसी बीच सोनिया गांधी जब राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने पहुंचीं तो यही माना जा रहा था कि उनका प्रधानमंत्री बनना महज एक औपचारिकता भर है. सोनिया के प्रधानमंत्री ना बनने की खबरों को कांग्रेस के दिग्गज नेता अफवाह बोलकर खारिज कर चुके थे. इस मुलाकात के बाद सोनिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि वो अगले दिन फिर राष्ट्रपति से मिलेंगी. उन्होंने कहा कि हम सभी सपोर्टर के लेटर के साथ फिर राष्ट्रपति से मिलेंगे.


इसके बाद अफवाहों का बाजार फिर गर्म हो गया. सवाल उठे कि आखिर सहयोगी दलों की चिट्ठियां राष्ट्रपति को पहली मुलाकात में क्यों नहीं दी गई. ये खबर आग की तरह फैल गई कि सोनिया पीएम बनने से हिचक रही हैं.


सोनिया के समर्थन में 10 जनपथ पर उनके समर्थकों का मेला लगा रहा. यहां तक की आत्महत्या की धमकी तक दी गई. हमीरपुर से कांग्रेस के पूर्व सांसद ने ये एलान कर दिया था कि अगर सोनिया पीएम नहीं बनीं तो वो आत्महत्या कर लेंगे. ऐसी बहुत सारी बातें हुईं. 


कुछ अखबारों में ये भी सुर्खियां बनीं कि राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने सोनिया गांधी को पीएम बनने से रोका था. ये भी कहा गया कि पहली मुलाकात में कलाम ने सोनिया की नागरिकात से संबंधित कुछ दस्तावेज मांगे थे. बाद में 2012 में इस वाकये का जिक्र अब्दुल कलाम ने अपनी किताब में किया. टर्निंग प्वाइंड (Turning Points : A Journey Through Challanges: A Journey Through Challenges) में उन्होंने लिखा, ''2004 में हमने सोनिया को सरकार बनाने का पूरी तैयारी कर ली थी. हमारे दफ्तर ने सोनिया गांधी के नाम चिट्ठी भी तैयार कर ली थी. लेकिन सोनिया ने मनमोहन सिंह का नाम आगे बढ़ाकर हमें चौका दिया था. निश्चित तौर पर इससे मैं, राष्ट्रपति भवन और सचिवाला के लोग चौक गए. हमें दोबारा चिट्ठी बनानी पड़ी थी. अगर सोनिया अगर प्रधानमंत्री बनने का दावा करतीं तो हमें कोई दिक्कत नहीं थी.''


सोनिया पर प्रधानमंत्री बनने का दबाव बढ़ने लगा. इन खबरों ने कांग्रेस के सहयोगी दलों की चिंता बढ़ा दी. सोमनाथ चैटर्जी, शरद पवार और अमर सिंह जैसे सभी नेताओं ने सोनिया को मनाने की काफी कोशिश की.


सोनिया के पीछे हटने के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया गया. बीजेपी के विरोध पर सोमनाथ चैटर्जी ने कहा, ''सोनिया गांधी के विदेशी होने के मुद्दे को जिस तरीके से उठाया जा रहा है वो जनता के फैसले का अपमान है.''


इसके बाद कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह अर्जुन सिंह और गुलाब नबी आजाद सीपीएम महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत के घर बातचीत के लिए पहुंचे. अमर सिंह ने भी यहां हिस्सा लिया. यहां लालू ने कहा, ''जो हमारा निर्णय हुआ है हम उस पर कायम हैं. उसका आदर करके उन्हें शपथ लेना चाहिए.'' वहीं रामविलास पासवान ने कहा, ''हमारा प्रयास रहेगा कि सोनिया गांधी ही पीएम बनें. अगर वो ये बात नहीं मानती है फिर सारी पार्टी मिलकर सोचेंगे.''


18 मई को संसदीय दल की बैठक बुलाई गई. इस दिन जो हुआ वो किसी फिल्म के क्लाइमैक्स से कम नहीं था. इस वक्त तक सभी को अंदाजा लग चुका था कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी. बैठक में जब सोनिया पहुंचीं तो वहां सबके चेहर पर उदासी थी. यहां सोनिया ने कहा, ''मैं कई दफा कह भी चुकी हूं कि मेरा लक्ष्य सिर्फ प्रधानमंत्री पद का नहीं है. मेरे सामने हमेशा कि अगर कभी ऐसी स्थिति पैदा हुई जैसी आज है तो मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज के मुताबिक चलूंगी. आज मेरी अंतरात्मा मुझसे कह रही है कि मैं विनम्रता के सा ये पद स्वीकार करने से मना कर दूं.''



इसके बाद सभी सांसद खड़े हो गए और No-No कहकर चिल्लाने लगे. सोनिया ने ये भी कहा, ‘’सत्ता का लालच मुझे कभी नहीं रहा. चुनाव में एनडीए से बढ़त लेकर सांप्रदायिक ताकतों पर जीत हासिल की है. वो पार्टी के लिए काम करती रहेंगी.’’ उन्होंने ये भी खारिज किया कि उनके फैसले की वजह किसी तरह का दबाव है.


इसके बाद ये चर्चा शुरु हुई कि अगर सोनिया नहीं तो कौन? उस वक्त तक किसी को ये भनक भी नहीं थी कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह का नाम आगे बढ़ाने वाली हैं.


इसके बाद ये सवाल भी उठने लगे कि क्या सोनिया गांधी ने बीजेपी के विरोध की वजह से ये पद ठुकरा दिया? लेकिन बाद में ज्योति बसु ने खुलासा किया कि सोनिया गांधी के पीछे हटने की वजह उनके बच्चे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी हैं. उन्होंने मीडिया से कहा, ''उनके बच्चे उन्हें पीएम बनने से मना कर रहे हैं. उनका कहना है कि हमने अपने पिता को खोया है अब मां को नहीं खोना चाहते.’’ ज्योति बसु ने ये भी कहा कि हम उन्हें ये एश्योर नहीं कर सकते क्योंकि ये बहुत ही वायलेंट कंट्री है.



सोनिया के पीएम पद ना ठुकराने की वजह का जिक्र उनके विदेश नीति पर मुख्य सलाहकार रहे और कांग्रेस नेता, पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह ने अपनी आटोबॉयोग्राफी 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' (One Life Is Not Enough) में किया है. उन्होंने लिखा है, ''राहुल गांधी मां सोनिया के प्रधानमंत्री बनने के पक्ष में नहीं थे. उन्हें ये डर था कि पापा और दादी की तरह उनकी मां की भी जान ना चली जाए. राहुल ने ये भी कहा कि मां को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए वो कोई भी कदम उठा सकते हैं. राहुल अपनी बातों के पक्के हैं और उनकी ये धमकी हल्के में नहीं ली जा सकती थी. उन्होंने सोनिया को सोचने के लिए 24 घंटे दिए. उस वक्त वहां मनमोहन सिंह, सुमन दुबे, प्रियंका और मैं मौजूद थे.'' उन्होंने लिखा है कि एक मां होने के नाते राहुल की बातों को नजरअंदाज करना सोनिया के लिए संभव नहीं था. यही कारण है कि सोनिया प्रधानमंत्री नहीं बनीं.


उन्होंने लिखा है, ''सिर्फ मनमोहन सिंह और मैं सोनिया गांधी के इस निर्णय से से अवगत थे. बाद में उन्होंने मीटिंग बुलाई और अनाउंस किया कि प्रधानमंत्री पद वो मनमोहन सिंह को ऑफर कर रही हैं.’’



मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर सोनिया गांधी एक तरफ बीजेपी का मुंह बंद कर दिया तो दूसरी तरफ इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों में जो सिख कांग्रेस से नाराज थे उनका दर्द भी कम कर दिया.


बाद में इस बारे में जब राहुल गांधी से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, ‘’ये उनका फैसला है, उनकी अंतरात्मा का फैसला है तो अब क्या कह सकते हैं. जो मेरी मां ने आज किया है, मुझे नहीं लगता कि हिंदुस्तान में कोई और व्यक्ति ये कर सकता है. अगर मैं ऐसी स्थिति में होता तो मैं नहीं कर पाता.''



मनमोहन सिंह ने 20 मई को भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ली. मनमोहन सिंह ने अपने पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनका फोकस आर्थिक सुधार की प्रकिया पर रहेगा. देश को रिफॉर्म की जरुरत है. ये मानवीय होगी और ये आम आदमी को राहत पहुंचाने वाली होगी.



मनमोहन सिंह के उपलब्धियों में भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील, रोजगार गारंटी योजना और आधार कार्ड योजना शामिल है.


मनमोहन सिंह के बारे में-


मनमोहन सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत (वर्तमान पाकिस्तान) के पंजाब प्रान्त में 26 सितंबर, 1932 में हुआ था. उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह था. देश के विभाजन के बाद सिंह का परिवार भारत चला आया. मनमोहन सिंह की पत्नी गुरुशरण कौर हैं. उनकी तीन बेटियां हैं-  उपिंदर दमन और अमृत हैं.



मनमोहन सिंह ने चंडीगढ़ से अर्थशास्त्र करने के बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में उन्होंने पढ़ाया भी. क्रैंबिज में उन्होंने भारत के आयात और निर्यात पर अपना शोध किया. रिसर्च पूरा होने के बाद उन्हें विदेश व्यापार मंत्रालय में बतौर सलाहकार रखा गया.


उनकी बेटी दमन सिंह ने Strictly Personal: Manmohan and Gursharan में लिखा है कि उस समय विदेशी व्यापार के मुद्द पर भारत में उनसे ज्यादा कोई नहीं जानता था.


इसके बाद मनमोहन सिंह योजना आयोग के अध्यक्ष, रिजर्ब बैंक के गवर्नर और विश्व विद्याल अनुदान आयोग के प्रमुख के तौर पर काम किया.


1991 में नरसिंह राव ने वित्त मंत्री बनाया. 1991 से 1996 तक वो भारत के वित्तमंत्री रहे. जब मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनने की खबर मिली तो उन्होंने इसे मजाक में लिया था. बीबीसी के पूर्व पत्रकार सर मार्क टली को एक इंटरव्यू में कहा था, "वो जिस दिन अपनी कैबिनेट बना रहे थे, उन्होंने अपने प्रिंसिपल सेक्रेट्री को मेरे पास भेजा जिसने मुझे कहा, ''प्रधानमंत्री चाहते हैं कि आप वित्तमंत्री बनें. मुझे लगा कि वो ऐसे ही कह रहे हैं.'' अगले दिन खुद नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को फोन करके शपथ के लिए बुलाया.


उन्होंने लाइसेंस कोटा, परमिट राज को खत्म किया.


विश्लेषक मनमोहन सिंह के कार्यकाल को सबसे सफल बताते हैं. उन्हें अर्थव्यवस्था में योगदान के लिए उन्हें पद्मभूषण से भी नवाजा गया.



मनमोहन सिंह 1991 में असम से राज्यसभा सदस्य चुने गए. इसके बाद 1995, 2001, 2007 और 2013 में वो फिर राज्यसभा से संसद पहुंचे. 1998 से 2004 तक जब बीजेपी सत्ता में थी वो राज्यसभा में विपक्षी नेता भी थे. 1999 में उन्होंने साउथ दिल्ली से चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए.


इसके बाद मनमोहन सिंह 2004 से लेकर 2014 तक प्रधानमंत्री रहे. जवाहर लाल नेहरू (6,130 दिन) और इंदिरा गांधी (5,829 दिन) के बाद मनमोहन सिंह (3,656 दिन) सबसे ज्यादा समय तक पद पर बने रहने वाले प्रधानमंत्री हैं.


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