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MCD Election 2022: पुरानी एमसीडी और परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई MCD में क्या अतंर है? 

MCD Election 2022: अगर सड़क 60 फीट से कम चौड़ी होगी तो इसकी मैंटेनेंस एमसीडी करेगा, लेकिन अगर सड़क 60 फीट से ज्यादा चौड़ी होगी तो इसकी मैंटेनेंस दिल्ली सरकार करेगी. 

MCD Election 2022: दिल्ली नगर निगम चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया गया है. चुनाव के लिए चार दिसंबर को वोटिंग होगी तो सात दिसंबर को मतगणना की जाएगी. इसी के साथ परिसीमन आयोग ने घोषणा कि है कि इस बार के जो चुनाव होने जा रहे हैं वो नए परिसीमन के मुताबिक होंगे. क्या आपको पता है कि नए परिसीमन के अनुसार चुनाव होने से क्या बदलाव होंगे या यूं कहें कि पहले एमसीडी चुनाव और इस बार होने वाले चुनाव में क्या अंतर है, आइए हम आपको बताते हैं

एकीकरण के बाद क्या बदला?
केंद्र सरकार ने मार्च महीने में डिप्टी गर्वनर को पत्र लिखकर तीनों नगर निगमों का एकीकरण करने की जानकारी दी थी. जिसके बाद अप्रैल में होने वाले संभावित चुनावों को टाल दिया गया था. इसी के साथ एकीकरण वाला विधेयक लोकसभा और राज्यसभा में पारित किया गया और आखिरकार संसद से इसे एकीकरण की मंजूरी मिल ही गई. 

अगर पुरानी एमसीडी का बात करें तो ये तीन भागों में बंटी हुई थी:- दक्षिणी नगर मिगम, पूर्वी नगर निगम और उत्तरी नगर निगम. दरअसल, 2011 से पहले भी एक ही एमसीडी थी जिसे तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित ने बदलकर तीन हिस्सों में बांटा था. उनका मानना था कि दिल्ली काफी बड़ी है तो एक होने के बजाय अगर इसे तीन भागों में बांटा जाए तो  बेहतर व्यवस्था होगी. हालांकि इस फैसले के बाद नगर निगम को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा और नगर निगम पर वित्तीय जोखिम आन पड़ी. नौबत यहां तक आ गई कि कर्मचारियों को वेतन और उनकी रिटायरमेंट की राशि भी देना मुश्किल हो गया.

परिसीमन के बाद MCD में क्या अंतर आया?
वहीं अगर पुराने एमसीडी चुनावों का जिक्र किया जाए तो नगर निगम तीन भागों में विभाजित थी और कुल 272 वार्ड थे. हालांकि, नए परिसीमन में वार्ड की संख्या घटाकर 272 से 250 कर दी गई है.  2017 के चुनाव में नॉर्थ दिल्ली में बीजेपी ने 64 वार्डों पर अपना शिकंजा कसा था तो आम आदमी पार्टी को 21 वार्ड मिले थे. वहीं कांग्रेस को 16 वार्डों में जीत मिली थी. इसी तरह दक्षिणी दिल्ली में बीजेपी को 70 वार्ड, आम आदमी पार्टी को 16 और कांग्रेस ने 12 वार्डों में जीत हासिल की थी. वहीं  पूर्वी दिल्ली के 47 वार्ड बीजेपी को मिले थे तो 12 वार्ड आप ने हासिल किए थे, इसी के साथ 3 वार्डों के साथ कांग्रेस भी जीत में शामिल थी. वहीं 2012 के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने चुनाव लड़ा था और आम आदमी पार्टी इन चुनावों से बाहर थी.

अब बात करते हैं नए परिसीमन के मुताबिक चुनाव लड़ने की तो इस बार 250 वार्डों पर चुनाव होगा. इन 250 वॉर्ड में 2011 के सेंसेंज के अनुसार से 42 सीट एससी के लिए है तो  वहीं महिलाओं के लिए 21 सीटें रिजर्व की गई हैं. इसके अलावा 104 सीटें अलग से महिलाओं के लिए रिजर्व की गई हैं. कुल मिलाकर 13,665 पोलिंग स्टेशन होंगे और चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल होगा. 

MCD चुनाव जीतने के लिए क्यों होती है मारामारी 
एमसीडी चुनाव को लेकर इसलिए भी इतनी मारा-मारी होती है क्योंकि दिल्ली सरकार और नगर निगम के कुछ अधिकार कॉमन हैं. जिनमें ये चीजें शामिल हैं:-
1- एमसीडी और सरकार दोनों के पास सड़कें और नाले मेंटेन करने का जिम्मा है. लेकिन क्या आपको पता है कि अगर सड़क 60 फीट से कम चौड़ी होगी तो इसकी मैंटेनेस एमसीडी करेगा, लेकिन अगर सड़क 60 फीट से ज्यादा चौड़ी होगी तो इसकी मैंटेनेस दिल्ली सरकार करेगी. 

2- इसके अलावा अगर लाइसेंस की बात करें तो बड़े वाहनों को लाइसेंस देने का जिम्मा सरकार का है जबकि साइकिल-रिक्शा, और छोटे वाहन एमसीडी देखता है. वहीं स्कूलों में हायर एजुकेशन के लिए दिल्ली सरकार को दायित्व मिला हुआ है तो वहीं एमसीडी के जिम्मे प्राइमरी स्कूल आते हैं. 

3- वहीं स्वास्थ्य की बात की जाए तो एमसीडी डिस्पेंसरी और कुछ अस्पताल चलाता है तो दिल्‍ली सरकार बड़े और नामी अस्पतालों को मैनेज करती है.

4- इसी के साथ एमसीडी को दिल्‍ली सरकार और केंद्र से भी मदद मिलती है. वहीं एमसीडी सीमाओं पर लगने वाला टोल टैक्स, सर्विस टैक्‍स और वैल्‍यू एडेड टैक्‍स से भी कमाई करता है.

दिल्ली में जीतने के लिए इसलिए ही सभी पार्टियां लगातार कोशिश में लगी रहती है क्योंकि MCD को दिल्ली की छोटी सरकार भी कहा जाता है. यानी अगर दिल्ली में मुख्य सरकार जिस पार्टी की हो अगर वही पार्टी MCD चुनाव भी जीतती है तो काम सुचारु रूप से हो सकता है नहीं तो टकराव की स्थिति बनी रहती है.

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