लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार कुछ बाहुबली प्रत्याशी जीतने में कामयाब रहे, लेकिन जनता ने ज्यादातर बाहुबली उम्मीदवारों को नकार दिया.
निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित परिणामों के मुताबिक बाहुबली उम्मीदवारों धनंजय सिंह (मल्हनी), विजय मिश्रा (ज्ञानपुर), यश भद्र सिंह मोनू (इसौली) और पूर्वांचल के बाहुबली नेता रहे, उम्रकैद की सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी (नौतनवा) को जनता ने नकार दिया. वहीं, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया (कुंडा) और अभय सिंह (गोसाईगंज) को जीत हासिल हुई.
इनको बाहुबलियों को मिली हार
जौनपुर की मल्हनी सीट से जनता दल (यूनाइटेड) के बाहुबली उम्मीदवार धनंजय सिंह को सपा प्रत्याशी लकी यादव के हाथों 17,527 मतों से पराजय का सामना करना पड़ा. पूर्व में सांसद रह चुके धनंजय चुनाव से पहले काफी विवादों में रहे. उन पर हत्या के एक मामले में लखनऊ की पुलिस ने 25,000 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया था. हालांकि, बाद में हुई जांच में उन्हें क्लीनचिट मिल गई थी.
ज्ञानपुर सीट से वर्ष 2002 से लगातार विधायक बनते आ रहे बाहुबली विजय मिश्रा को इस बार चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. वह वर्ष 2017 में निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर पार्टी के एकमात्र विधायक बने थे. मगर इस बार उन्हें निषाद पार्टी ने टिकट नहीं दिया और वह प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और तीसरे स्थान पर रहे.
विजय मिश्रा वर्ष 2002, 2007 और 2012 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे, जबकि 2017 में वह निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे.
सुल्तानपुर की इसौली सीट से दो बार चुनाव लड़ चुके बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बाहुबली उम्मीदवार यश भद्र सिंह मोनू को एक बार फिर पराजय का सामना करना पड़ा. वह इससे पहले भी बसपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ चुके हैं.
इसी तरह, हत्या के मामले में पूर्व में जेल जा चुके अमनमणि त्रिपाठी को नौतनवा सीट से पराजय का सामना करना पड़ा. वह वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इसी सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते थे. इस बार उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन वह जीत नहीं पाए. अमनमणि, मधुमिता शुक्ला हत्याकांड मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्वांचल के माफिया राजनेताओं में शुमार अमरमणि त्रिपाठी के बेटे हैं.
इन बाहुबलियों को मिली जीत
चुनाव जीतने वाले बाहुबलियों की बात करें तो रघुराज प्रताप सिंह लगातार आठवीं बार कुंडा सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. वह आमतौर पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ते थे, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी पार्टी जनसत्ता पार्टी लोकतांत्रिक गठित की और उसी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीते. वह वर्ष 1993 से लगातार प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से विधायक चुने जा रहे हैं.
आमतौर पर समाजवादी पार्टी राजा भैया के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारती थी, लेकिन इस दफा सपा ने यहां से उन्हीं के पूर्व सहयोगी गुलशन यादव को टिकट दिया और राजा भैया का मुख्य मुकाबला गुलशन से ही हुआ.
समाजवादी पार्टी के बाहुबली प्रत्याशी अभय सिंह गोसाईगंज सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. वह वर्ष 2012 में भी सपा के ही टिकट पर इसी सीट से विधानसभा पहुंचे थे. हालांकि, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था.
माफिया राजनेताओं के रिश्तेदारों की बात करें तो पूर्वांचल के माफिया राजनेता बृजेश सिंह के भतीजे सुशील से सैयदराजा सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. सुशील चौथी बार विधानसभा पहुंचे हैं. इससे पहले, वह वर्ष 2007 में बसपा के टिकट पर धानापुर सीट से चुनाव जीते थे जबकि वर्ष 2012 में वह सकलडीहा सीट से विधायक चुने गए थे.
मऊ सदर सीट से कई बार विधायक रहे माफिया राजनेता मुख्तार अंसारी इस बार चुनाव नहीं लड़े लेकिन इस सीट से उनके बेटे अब्बास अंसारी चुनाव जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे.
अब्बास समाजवादी पार्टी के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के टिकट पर मऊ सदर सीट से विधायक चुने गए. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के अशोक कुमार सिंह को 38 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया.
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